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एक साथ कैसे पढ़ेगे अमीर-गरीब बच्चे?

पंचकूला [राजेश मलकानिया]। 'द राइट आफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट 2009' को भले ही केंद्र सरकार ने एक अप्रैल को मंजूरी दे दी है, परतु इसकी सफलता पर सवालिया निशान लगा हुआ है। सरकार द्वारा पारित इस कानून में बीपीएल राशन कार्ड होल्डरों के बच्चों को पढ़ाना प्राइवेट स्कूलों को अनिवार्य कर दिया गया है।

देश में सरकारी स्कूलों से ज्यादा प्राइवेट स्कूल हो गए है। प्राइवेट स्कूल संचालक अपने रोजगार पर सरकार की थोपी गई जिम्मेदारी निभाएंगे, यह कहना मुश्किल है। प्राइवेट स्कूलों को आदेश जारी किए गए है यदि उनके स्कूल की एक कक्षा में 100 बच्चे है तो उसमें से 25 बच्चे गरीब परिवार के होंगे। इन 25 बच्चों को उन्हीं बच्चों के साथ बिठाने के आदेश दिए गए हैं जिनके माता-पिता भारी-भरकम फीस भरकर अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में मुश्किल से मुश्किल टेस्ट दिलवाकर दाखिल करवाते है। सरकार के फैसले से प्राइवेट स्कूल चालक काफी असमंजस की स्थिति में है।

एक अप्रैल 2010 को जिस दिन सरकार द्वारा हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार दिया गया था, उसी दिन इसकी सफलता पर अंगुलिया उठनी शुरू हो गई थीं। प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों का उनका कहना है कि पढ़ने का अधिकार सभी को होना चाहिए, लेकिन इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए था कि जो बच्चे कभी स्कूल नहीं गए, उन्हे छह वर्ष की आयु में सीधा स्कूल में डाल दिया जाएगा तो इसके लिए अध्यापकों को अलग से ध्यान देना पड़ेगा, जिससे पहले से पढ़ रहे बच्चों की पढ़ाई सफर करेगी।

उनका कहना है कि वे सरकार के निर्णय का विरोध नहीं करते, बल्कि इस कानून में जो प्रावधान है वे गलत है। सरकार को इन बच्चों के लिए अतिरिक्त स्कूलों की व्यवस्था करनी चाहिए थी और यदि प्राइवेट स्कूलों में भी इन बच्चों को पढ़ाना है तो उनके लिए अलग से कक्षाओं की व्यवस्था करनी चाहिए थी। इससे उन बच्चों के शैक्षणिक विकास पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है। दो साल की उम्र से इंग्लिश में पढ़ रहे बच्चों के बीच में ये गरीब परिवारों के बच्चे पिस कर रह जाएंगे।

इन अभिभावकों का कहना है कि यद्यपि इनके सर्वागीण विकास के लिए प्राइवेट स्कूल बेहतर है, लेकिन इनकी कक्षाओं की अलग व्यवस्था की जानी चाहिए। कुछ बीपीएल परिवारों का कहना था कि सरकार के निर्णय के बारे में अभी उन्हे पूरी जानकारी ही नहीं है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने यदि ऐसा कोई नियम बनाया है तो अच्छा प्रयास है, लेकिन इससे ज्यादा मारी जरूरत दो वक्त की रोटी है। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे छोटी उम्र में ही कामकाज में लग जाते है, जिससे उनके घर का गुजर-बसर चलता है। उनका कहना है कि सरकार को पहले उनके रोजगार का प्रबंध करना चाहिए, ताकि ठीक प्रकार से खाना तो नसीब हो जाए तभी पढ़ने की सोच सकते है।

नाम न छापने की शर्त पर कुछ प्राइवेट स्कूल संचालकों ने कहा कि सरकार का यह फैसला ठीक नहीं है। इससे प्राइवेट स्कूल संचालकों को आने वाले समय में काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि कालोनियों में पानी और बिजली की व्यवस्था नहीं है, यदि सुबह पानी नहीं आएगा तो ये नहाकर कैसे स्कूल में आएंगे। यदि शाम को बिजली नहीं होगी तो स्कूल से मिलने वाला काम कैसे करेगे।

उनका कहना है कि सरकार ने बीपीएल राशन कार्ड को आधार बनाया है, लेकिन जो बीपीएल राशन कार्ड के असली पात्र है उनके नाममात्र ही कार्ड बने है। यह कार्ड तो कालोनियों में राजनीति करने वालों के बने हुए है, जो हजारों में खेलते है। एक स्कूल संचालक ने बताया कि उनके पास एक बीपीएल बच्चे का अभिभावक आया, उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि कोई लखपति अपने बच्चे का दाखिला करवाने आया है।

स्कूल संचालकों ने पिछले दिनों शिक्षा विभाग के निदेशक से हुई बैठक में अपील की थी कि वे बीपीएल बच्चों को अवश्य पढ़ाएंगे लेकिन इसके लिए उन्हे अलग कक्षाएं लगाने की इजाजत दी जाए। परतु उन्होंने केंद्र सरकार की पालिसी के आगे अपने हाथ खड़े कर दिए। अब देखने वाली बात ये होगी कि सरकार की यह पालिसी कितनी कारगर सिद्ध होती है।