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एक साल में 38 हजार बच्चे 28 दिन भी नहीं जी पाते, 5 साल में इतना बढ़ गया शिशु मृत्यु दर

पटना : शिशु मृत्यु दर में अव्वल रहने वाले बिहार में बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है. नीति आयोग और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य की दयनीय स्थिति बताती है. बच्चों की मृत्यु दर कम नहीं हो पा रही. यही वजह है कि प्रदेश में एक साल में 38 हजार बच्चों की मौत हो रही है.

5 साल में ये हुए बदलाव

प्रसव 2010-11 में संस्थागत प्रसव 37.2 प्रतिशत था, जो अब बढ़ कर 78.6 प्रतिशत हो गया है
नवजात को जन्म के पहले
घंटे में मां का दूध पिलाने के मामले 23.3 प्रतिशत से 38.8 प्रतिशत हो गये हैं
विटामिन ए की खुराक पांच साल पहले 23.5 प्रतिशत बच्चों को मिल पाती थी, जो बढ़ कर 48.3 हो गयी है
आयरन फॉलिक एसिड के टेबलेट 12 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को दी जा रही थी, जो बढ़ कर 21 प्रतिशत तक पहुंच गयी है.
12 % इजाफा हुआ है, गर्भवती की पूर्ण जांच के प्रतिशत में

मृत्यु दर कम करने का है लक्ष्य

स्वास्थ्य विभाग भले ही शिशु मृत्यु दर कम करने की बात कह रहा है. जिम्मेदार अधिकारी लक्ष्य के अनुसार यहां एक हजार में 9 बच्चों की मौत का आंकड़ा तय करने की बात कर रहे हैं. लेकिन हकीकत आज भी इससे अलग है. यहां एक साल में 29 नवजात बच्चों की आज भी हो रही है. यह पड़ोसी राज्य झारखंड से काफी अधिक है.

23 हजार बच्चे पहला जन्मदिन नहीं देख पाते

फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में पटना सहित पूरे बिहार में 18.07 लाख बच्चों का जन्म हुआ. बड़ी बात तो यह है कि इनमें 38 हजार बच्चों की मौत हो गयी. यह मौत 28 दिन के अंदर ही हो गयी. इसके अलावा करीब 23 हजार बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं देख पाये. रिपोर्ट के अनुसार इन बच्चों की मृत्यु का कारण डॉक्टरों ने निमोनिया, डायरिया, पीलिया आदि रोगों को बताया है.

क्या कहते हैं अधिकारी

बिहार में शिशु मृत्यु दर में काफी सुधार आ रहा है. अन्य पड़ोसी राज्यों की तुलना में यहां मृत्यु दर में काफी कमी आयी है. स्वास्थ्य विभाग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मेडिकल कॉलेज, जिला आदि अस्पतालों में टीका से लेकर कई दवाएं व जागरूकता कार्यक्रम
आदि की सुविधा दे रही है. हालांकि इसको लेकर लोगों में भी जागरूकता की जरूरत है.

डॉ पीके झा, सिविल सर्जन पटना

योजनाओं पर खर्च के बाद भी मौत

प्रदेश में शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए दर्जन भर योजनाएं चलायी जा रही हैं. पोलियो से लेकर अन्य टीका योजनाएं हैं, जिन्हें सरकारी अस्पतालों में मुफ्त देने का दावा किया जा रहा है. बावजूद बच्चों की मृत्यु का सिलसिला कम नहीं हो रहा है. ऐसे में योजनाओं पर सवाल खड़ा हो गया है.