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एनआरएचएम में छाया ‘कंपनी राज’

नेशनल रूरल हैल्थ मिशन (एनआरएचएम) की ओर से रूरल क्षेत्र को मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराने की एक और महत्वाकांक्षी योजना ‘कंपनी राज’ की भेंट चढ़ रही है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में अत्याधुनिक एंबुलेंस सेवाओं से जुड़ी है। ‘राजीव गांधी ग्रामीण मोबाइल मेडिकल यूनिट’ के नाम से जारी इस मोबाइल यूनिट में मौके पर ही बीमारी की जांच संबंधी सभी उपकरण शामिल किए गए हैं, ताकि ग्रामीण जनता को बीमारी की हालत में भागदौड़ की बजाय मौके पर ही इलाज और मेडिकल जांच संबंधी सुविधा मिल सके।

योजना को लागू करने की दिशा में हैदराबाद की फर्म को अक्टूबर-08 में 52 एम्बुलेंस सौंपने का टेंडर दिया गया। नियमानुसार फर्म को यह सभी गाड़ियां तकरीबन सालभर पहले ही सौंप देनी थीं, लेकिन अभी तक लाख जतन के बाद भी फर्म की ओर से महज 31 गाड़ियां सौंपी गई हैं। इन हालात में कई जिलों में इस योजना की जल्द शुरुआत करना नामुमकिन हो रहा है। इस लेटलतीफी की वजह फर्म और एनआरएचएम के बीच अग्रिम भुगतान को लेकर उपजा बवाल बताया जाता है।

विभाग के ही अफसर बताते हैं कि दो साल पहले आनन-फानन में इस योजना की शुरुआत की गई और वाहवाही लूटने या अन्य फायदों की वजह से फर्म पर जल्द से जल्द गाड़ियां बनाकर सौंपने के लिए दबाव बनाया गया। इस दबाव के चक्कर में फर्म को भारी-भरकम अग्रिम भुगतान भी कर दिया गया। इसके बाद कुछ अफसरों ने फर्म को गाड़ियां सौंपने के लिए रखी गई शर्तो का उल्लंघन करते देख अग्रिम भुगतान पर आपत्ति क्या दर्ज कराई, मानो जैसे सारा खेल ही बिगड़ गया।

अग्रिम भुगतान नहीं मिलने से फर्म ने गाड़ियां बनाकर सौंपने से हाथ पीछे खींच लिए। उधर, अब विभाग है कि यह सारा तमाशा जैसे चुपचाप देख रहा है। योजना को लागू करने वाले अफसरों की गद्दी बदल गई, तो कभी अन्य व्यस्तताओं के बहाने यह विवाद सुलझने की बजाय टलता रहा.. जैसा यहां अमूमन होता है। वहीं इसके पीछे अगर कोई सफर कर रहा है तो वह है, आम आदमी। जिसके इर्द-गिर्द इस सारी योजना का तानाबाना बुना गया।

पहले जोड़-तोड़, फिर मनमर्जी

यह कोई पहला ऐसा मसला नहीं है, जहां जिम्मेदारों की लापरवाही, ढुलमुल रवैये और खराब प्रबंधन के चलते किसी महती योजना पर पानी फिर रहा हो। 108 एम्बुलेंस, लेप्रोस्कोप की खरीद और अस्पतालों की अन्य छोटी-बड़ी खरीद के मामलों में कुछ ऐसा ही हाल नजर आता है। कंपनियां पहले तो काम लेने के लिए सारे जोड़-तोड़ लगाती हैं। फिर काम मिलते ही मुनाफे के चक्कर में कोई नकुना निकालकर काम अटकाती जाती हैं। कमाल यह है कि कंपनियों की इस मनमर्जी पर विभागीय अफसर भी त्वरित निर्णय लेकर कोई समाधान निकालने की बजाय, मसले को टरकाते रहते हैं।

नेक उद्देश्य, नीयत में खोट

राजीव गांधी ग्रामीण मोबाइल मेडिकल यूनिट एक चलता-फिरता मिनी हॉस्पिटल है, जिसमें करीब 7 लाख रुपए के मेडिकल उपकरण लगे हैं। इनमें एक्सरे, ईसीजी, सोनोग्राफी, सेमी ऑटो एनालाइजर, माइक्रोस्कोप आदि शामिल हैं। इनकी बदौलत ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाले कैंपों में मौके पर ही मरीजों की जांच करके उन्हें ऑपरेट करने जैसी सुविधाएं शामिल हैं। इस एक गाड़ी की कीमत तकरीबन 17-18 लाख रुपए तक है और उपकरण लगाने के बाद इसकी लागत 24 लाख रुपए तक पहुंचती है। रूरल क्षेत्र में मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए यह अभिनव प्रयोग माना जा रहा है।