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एनजीओ ने दो हजार लोगों से करोड़ों ठगे

नई दिल्ली.राजधानी में गरीबों को सस्ता राशन उपलब्ध कराने के नाम पर एक एनजीओ द्वारा दो हजार से ज्यादा लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी करने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। इतने बड़े घोटाले से दिल्ली पुलिस भी सकते में आ गई है।

पुलिस ने इस बाबत ठगी, आपराधिक षड्यंत्र रचने आदि धाराओं के तहत चार लोगों को खिलाफ मामला दर्ज किया है। मामले की जांच दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा कर रही है।

खास बात यह है कि दो हजार पीड़ितों में से अधिकतर संगम विहार इलाके के रहने वाले हैं। इनमें से तो कई ने एनजीओ के बहकावे में आकर अपने गहने व मकान गिरवी रखकर अपना सब कुछ लुटा दिया।

आर्थिक अपराध शाखा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस मामले के मुख्य शिकायतकर्ता एमके खुराना हैं, जो वरिष्ठ नागरिक हैं। वह एलआईजी डीडीए फ्लैट्स में अपना ऑफिस चलाते हैं।

उन्होंने बताया कि इस ठगी की शुरुआत जनवरी 2009 से शुरू हुई। संगम विहार के रतिया मार्ग पर स्थित अत्रा कॉम्पलेक्स के भू-तल स्थित जी-8, 27 व 28 में जीएसटी नामक एक एनजीओ का ऑफिस है।

ऑफिस को चलाने वाले दो युवकों अवधेश सागर व संजय कुमार राजपूत ने इलाके के लोगों को बताया कि वे एमबीए कर चुके हैं और सरकार की मदद से एनजीओ चलाते हैं। उनकी एनजीओ की शाखाएं देश के तमाम हिस्सों में हैं।

वे सरकार की मदद से गरीब लोगों को सस्ता व बढ़िया राशन उपलब्ध कराते हैं, जिसे अन्नपूर्णा स्कीम के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं, उनके द्वारा बनाए गए सदस्यों को सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि भी मिलती है।


उन्होंने यह भी बताया कि उनकी संस्था एक व्यक्ति के नाम पर तीन माह के लिए 750 रुपए में राशन कार्ड तैयार कराएगी, जिसमें से 500 रुपए सरकार द्वारा उन्हें वापस कर दिए जाएंगे। इसके साथ ही, पहले महीने पांच किलो चीनी, एक लीटर रिफाइंड ऑयल व आधा किलो चाय दी जाएगी।

दूसरे महीने में कार्ड धारक को 10 किलो आटा, एक लीटर रिफाइंड व पांच किलो चावल तथा तीसरे माह दो लीटर रिफाइंड, 10 किलो आटा, पांच किलो चीनी, पांच किलो चावल व आधा किलो चाय पत्ती दी जाएगी।

कुछ महीने तक जब लोगों को अच्छी क्वालिटी का राशन मिला तो लोगों का उन पर विश्वास जम गया। इसके बाद हजारों लोगों ने एनजीओ की योजना में निवेश कर दिया। लेकिन, उनके पांच सौ रुपए वापस नहीं मिले।

इसके लिए उनसे कहा गया कि सरकार जल्द ही वह राशि वापस दे देगी। राशन कार्ड के अलावा इस एनजीओ ने कैश कार्ड नामक एक स्कीम के बारे में भी प्रचार किया। यह स्कीम उन लोगों के लिए बताई गई जो बेरोजगार हैं। उनसे कहा गया कि वे मात्र 2300 रुपए एनजीओ के माध्यम से निवेश करें।

इस राशि से सरकार भारी मात्रा में अनाज खरीदेगी, जिससे देश में अनाज की कीमतों को न सिर्फ काबू किया जाएगा, बल्कि कालाबाजारी पर भी रोक लगेगी। निवेशक को सरकार द्वारा हर माह 39 सौ रुपए दिए जाएंगे।

इस बार भी एनजीओ पर विश्वास कर लोगों ने कैश कार्ड योजना में भी निवेश किया। कई लोग तो ऐसे भी थे जिन्होंने कैश कार्ड योजना में अपने गहने व जमीन आदि भी गिरवी रख कर न सिर्फ अपने नाम पर, बल्कि पूरे परिवार के लोगों तथा अन्य रिश्तेदारों के नाम भी निवेश कर दिया।

इस एनजीओ ने अपनी फ्रेंचाइजी बांटने के नाम पर भी लोगों से लाखों रुपए ठगे। लेकिन, इन ठगों ने किसी को रसीद नहीं दी। इसकी जगह एक रजिस्टर पर बही खाते की तरह हर निवेशक का नाम व उसके द्वारा दी गई राशि लिखी जाती थी।

इसके बाद सितंबर 2010 को अचानक ही एनजीओ के ऑफिस पर ताला लटका पाया गया, जिससे लोगों को शक हुआ। जब एनजीओ चलाने वालों से फोन पर संपर्क किया गया तो फोन उठाकर कहा गया कि उन्हें 50 लाख रुपयों के साथ पुलिस ने पकड़ लिया है।इसके बाद मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया गया।

इसके बाद मामले की शिकायत पुलिस से की गई। एनजीओ की योजनाओं में निवेश करने वाले लोग तो पहले संगम विहार थाना पुलिस के पास गए, लेकिन पुलिस ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की और मामले को आर्थिक अपराध शाखा के पास भेज दिया गया।

आर्थिक अपराध शाखा ने भी शिकायत पर पहले जांच की तो तथ्यों में कुछ सत्यता पाई और यह भी पाया कि संजय कुमार के पिता राजेंद्र सिंह राजपूत तथा अवधेश के पिता जनार्दन सागर भी इस जालसाजी में लिप्त हैं।

इसके बाद इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई। पुलिस का मानना है कि इस एनजीओ की आड़ में देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी बड़ी ठगी की आशंका है। अब पुलिस आरोपियों की तलाश कर रही है।