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एहू साल अंगना में नाव चली बबुआ

मुजफ्फरपुर [जाटी]। एहू साल अंगना में नाव चली बबुआ, खेत पथार डूबी, जानो बची कि ना, भगवाने मालिक बारन। यह दर्द है गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, कोसी, भुतही और अधवारा समूह की नदियों के किनारे बसे उन सैकड़ों गांवों के हजारों ग्रामीणों का, जिनके बचाव के लिए कभी कुछ नहीं किया गया। इस बार भी वे खुद को लावारिस ही पा रहे हैं। वैशाख में ही जेठ की तपती गरमी के बावजूद लोग संभावित बाढ़ के खौफ से दहशतजदा हैं।

पिछले कई वर्षो से बाढ़ की तबाही झेल रहे गंडक के तटीय इलाकों के लोगों का भय जल संसाधन विभाग की उदासीनता ने बढ़ा दिया है। गंडक नदी के कटाव से पिछले साल पश्चिमी चंपारण के योगापट्टी का बैसिया गांव बुरी तरह प्रभावित हुआ। यहां के अधिकतर लोग विस्थापित हो चुके हैं। लोगों की मांग के बावजूद कटाव निरोधी कार्य नहीं कराए जा सके। लिहाजा, इस बार इस गांव के वजूद के ही खत्म होने की आशंका है। यही हालत योगापट्टी स्थित मंगलपुर, सिसवा, मदारपुर आदि गांवों की है। बैरिया में कई जगह कटाव शुरू हो चुका है।

उधर, पूर्वी चंपारण में यह खतरा 50 से अधिक स्थलों पर तथा 40 लाख से अधिक की आबादी पर मंडरा रहा है। रामगढ़वा पंचायत की जोगवलिया पंचायत के बैरिया, चंपारण तटबंध के खटैया टोला, चटिया-बड़हरवा, संग्रामपुर प्रखंड के पुछरिया व केसरिया के मझरिया गांव पर तो यह सर्वाधिक है। सिकरहना डिवीजन की 18 जगहों फुलवार, पकड़ीदयाल, अहिरौलिया, सुंदरपट्टी में भी यही खौफ है।

बागमती की गोद में बसे बेलसंड प्रखंड का सौली सिरसिया गांव हो या रुन्नीसैदपुर का तिलकताजपुर, सीतामढ़ी के कई प्रखंडों के दर्जनों गांवों के डूबने का खतरा बरकरार है। प्रशासनिक व्यवस्था की शक्ल में अधूरा बांध काला साया बन कर लोगों के सामने बाढ़ से तबाही की दस्तक दे रहा है। कई गांवों में लोग अभी से बचाव के उपायों में लग गए हैं।

मधुबनी में तटबंध व महाराजी बांध दर्जनों बिन्दुओं पर कमजोर हैं। समय रहते कमजोर बिंदुओं का सुदृढ़ीकरण नहीं हुआ तो इन इलाकों के सैकड़ों गांवों में बाढ़ के दौरान नाव का चलना तय है। समस्तीपुर में नून नदी के जमींदारी बांध और डुमैनी बांध पर तथा गंगा नदी पर कटाव निरोधी बंडाल कार्य अब तक शुरू नहीं हो सका है। इससे रसलपुर, डुमरी, मोहनपुर आदि स्थानों पर बाढ़ से तबाही की आशंका बढ़ गई है। कल्याणपुर की 11 पंचायतों के डूबने का खतरा है। रोसड़ा एवं खानपुर प्रखंड में मुरादपुर, ठाहर, हसनपुर, खंजापुर, समना, धायध विशनपुर आदि गांवों में बागमती नदी के तटबंध की जर्जरता को देखकर लोग मानने लगे हैं कि ऐहू बेर अंगना में ऐतई पानी हो रामा।

दरभंगा के कुशेश्वरस्थान [पूर्वी और पश्चिमी प्रखंडों] में करेह, कोसी, कमला और भुतही का तांडव रोकने का कोई उपाय इस बार भी नहीं दिख रहा है।

उधर, मुजफ्फरपुर के डुमरिया व महम्मदपुर के निकट बूढ़ी गंडक नदी के तटबंध टूटने की हमेशा आशंका रहती है। 2007 में तो डुमरिया के निकट तटबंध टूटने की आशंका की खबर से शहर खाली होने लगा था। इसी नदी पर टूटने के लिए कुख्यात रहा है महम्मदपुर गांव के पास का तटबंध। 2004 के बाढ़ में इस जगह पर टूटे बांध ने इस क्षेत्र में प्रलय का दृश्य उपस्थित कर दिया था। खतरा अब भी यहां मौजूद है, क्योंकि ग्रामीणों के मुताबिक यहां बांध निर्माण में डाली गई रेत हवा और पानी के झोंके बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं हैं।

उधर, औराई, कटरा, बंदरा में बांध का ही पता-ठिकाना नहीं होने से यहां के सैकड़ों गांवों में इस बार भी तबाही तय है।

कुछ ऐसा है यहां की नदियों का मिजाज

उत्तर बिहार से होकर गुजरने वाली विभिन्न नदियों से बाढ़ के बारे में अब तक के जो अध्ययन हैं, उसके मुताबिक बागमती, कोसी और कमला नदियां मई व जून में ही रौद्र रूप दिखाने लगती हैं, जबकि बूढ़ी गंडक में बाढ़ का समय जुलाई का दूसरा-तीसरा सप्ताह रहता है। इन महीनों में गंगा आमतौर पर शांत रहती है, लेकिन सितंबर तक इसकी मुख्य धारा उफनाने लगती है। तब बाढ़ की विभीषिका भी बढ़ जाती है।

आठ बड़ी नदियों का क्रीड़ास्थल उत्तर बिहार

आठ बड़ी नदियों घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, अधवारा समूह, कमला, कोसी और महानंदा का क्रीड़ास्थल है उत्तर बिहार। घाघरा व महानंदा क्रमश: यूपी और पश्चिम बंगाल से होकर बिहार में प्रवेश करती हैं, जबकि बूढ़ी गंडक को छोड़कर अन्य सभी नदियां नेपाल से आती हैं। बूढ़ी गंडक का उद्गम स्थल बिहार ही माना जाता है, पर इसका काफी बड़ा जलग्रहण क्षेत्र नेपाल में है। गंगा पूरे राज्य के लिए मास्टर ड्रेन का काम करती है, जो पश्चिम से पूर्व राज्य के बीचोबीच बहती है।