Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/औरतों-की-दुनिया-का-सच-क्षमा-शर्मा-8686.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | औरतों की दुनिया का सच- क्षमा शर्मा | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

औरतों की दुनिया का सच- क्षमा शर्मा

दुनिया भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए दो अभियान चलाए जा रहे हैं। एक तो है घंटी बजाओ, जिसका अर्थ है कि जिस भी घर से औरतों के रोने, चिल्लाने, पिटने की आवाज आ रही है, उनसे बचकर न निकलें। जाकर फौरन दरवाजे की कॉलबेल या घंटी बजाएं। और ऐसी हिंसा को रोकने के लिए कारगर कदम उठाएं। दूसरा अभियान है, औरतों के प्रति होते अपराध यथा छेड़खानी, पीछा करना, गलत मैसेज, पत्र या संदेश भेजना, छूना आदि के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं। आवाज उठाकर गलत हरकत करने वाले के प्रति अपना प्रतिरोध दर्ज कराएं।

दिल्ली के आनंद पर्वत इलाके में मीनाक्षी नाम की लड़की ने खुद को परेशान करने वालों के खिलाफ आवाज उठाई। पुलिस में शिकायत भी की। लेकिन इसके बदले में उसे मिले चाकुओं के लगातार वार, जिस कारण उसकी मृत्यु हो गई। दूसरी वारदात मुंबई में हुई। वहां भी एक लड़की ने कुछ गुंडों के खिलाफ छेड़खानी की शिकायत की थी। पुलिस ने उन बदमाशों को पकड़ा भी, मगर डांट-डपटकर छोड़ दिया। बाद में बदमाशों ने उस लड़की पर उसके घर के सामने ही हमला बोल दिया। वह लड़की अस्पताल में है।

पहले लड़कियों को छेड़ना, और फिर यदि वे काबू में न आएं, छेड़खानी का विरोध करें, तो उनकी जान लेने की कोशिश करना। इस तरह की जघन्यता हमारे समाज में आए दिन देखने को मिलती है। दोनों ही लड़कियों पर बदमाशों ने अनजान जगह या अकेले में नहीं, उनके घर के आसपास हमले किए। मीनाक्षी बचने के लिए पड़ोसी के घर में घुस गई, तो बदमाशों की मां उसे घसीटती हुई लाई और बेटों को उसकी जान लेने के लिए ललकारा । मीनाक्षी को बचाने कोई नहीं आया। ये दोनों घटनाएं अगर गांवों में हुई होतीं, तो हम कहते कि गांवों में पुलिस देर से पहुंचती है। पर ये दोनों हादसे महानगरों में हुए हैं।

हाल ही में जब बलात्कार के खिलाफ नया कानून बनाया गया था, तो कहा जा रहा था कि इससे अपराधी डरेंगे। पर उनके हौसले अब भी बुलंद हैं। औरतों को काबू में करने और उन्हें दबाकर रखने की चाहत ही उनके खिलाफ अपराधों को जन्म देती है। औरतें इस देश की उतनी ही नागरिक हैं, जितने कि पुरुष। लेकिन हर तरह की आजादी, हर तरह के अधिकार पुरुषों को मिले हैं। जबकि औरतों को कर्तव्यों के नाम पर हर तरह की गुलामी हजारों वर्षों से झेलनी पड़ी है। सच है कि समानता का नारा चाहे हम जितना भी लगाते रहें, हजारों वर्षों की पुरुषवादी सोच एक दिन में नहीं बदलने वाली। चाहे जितने भी कठोर कानून बना दें, जब तक औरतों के प्रति नजरिया न बदले, तब तक औरतों को समझना होगा कि उनकी लड़ाई खत्म नहीं हुई।

यह संघर्ष एक दिन का नहीं है। हमारी दादियों, नानियों, मांओं, बुआओं, मौसियों, बहनों, भाभियों, ननदों और बेटियों के दुखों की गाथा यदि सुनी जाए, तो यह पता लगाना मुश्किल होगा कि किसका दुख किससे बड़ा है। ये ऐसे दुख थे, जो इन्होंने सिर्फ औरत होने के कारण झेले। मीनाक्षी की मौत भी यही बताती है कि हर अपराध को या तो चुप रहकर झेलो, वर्ना मौत तुम्हारे दरवाजे पर ही इंतजार कर रही है। मशहूर कवि शैलेंद्र की ये पंक्तियां याद आती हैं-जुलुम के और चार दिन, सितम के और चार दिन, ये दिन भी जाएंगे गुजर, गुजर गए हजार दिन।