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कृषि बिल: न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर डरे हुए क्यों हैं किसान?

-बीबीसी,

रविवार को राज्यसभा में पारित हुए नए कृषि सुधार क़ानूनों को लेकर विपक्ष के बढ़ते विरोध के बीच केंद्र सरकार ने फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाने का फै़सला किया है.

कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने सोमवार को इसके लिए मंज़ूरी दे दी है. कृषि मंत्री ने रबी की छह फ़सलों की नई एमएसपी जारी की है. ये फ़ैसला ऐसे वक़्त में लिया गया है जब कृषि संबंधी नए विधेयकों को लेकर किसान चिंतित हैं कि इससे मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर असर पड़ने वाला है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फ़ैसले को लेकर ट्वीट किया, "बढ़ा हुआ एमएसपी किसानों को सशक्त करेगा और उनकी आय दोगुनी करने में योगदान देगा. संसद में पारित कृषि सुधारों से संबंधी क़ानून के साथ-साथ बढ़ा हुआ एमएसपी किसानों की गरिमा और समृद्धि सुनिश्चित करेगा. जय किसान!"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों की ओर से इस बात के आश्वासन के बावजूद कि नए क़ानून से एमएसपी पर असर नहीं पड़ेगा, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसान इन विधेयकों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

इन तीनों बिलों को लेकर अलग अलग तरह की चिंताएं जताई जा रही हैं. किसानों के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर काफ़ी संवेदनशीलता देखी जा रही है.

बीबीसी ने कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों से बात करके एवं अलग अलग अख़बारों और सोशल मीडिया पर प्रकाशित उनकी टिप्पणियों को यहां जगह दी है.

किसान क्यों कर रहे हैं विरोध
पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन बिज़नेस न्यूज़ वेबसाइट मनीकंट्रोल डॉटकॉम पर एक लेख में लिखते हैं, "कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 का उद्देश्य अनुबंधों के तहत होने वाली कृषि को एक क़ानूनी सुरक्षा कवच देना है. इस विधेयक की मदद से किसान किसी फसल को पैदा करने के लिए पाँच साल तक का अनुबंध कर सकते हैं."

"मुर्गी पालन और बीज उत्पादन के क्षेत्रों में अनुबंध आधारित खेती प्रचलन में आने लगी है, छोटे और सीमांत किसान भी एग्रीगेटर्स के साथ अनुबंध करके मुर्गी पालन इकाइयां लगा रहे हैं. गन्ना किसानों ने पहले ही चीनी मिलों के साथ अनुबंध आधारित खेती शुरू कर दी है. चूंकि अनुबंध वाली खेती करने के लिए किसी तरह की बाध्यता नहीं है. ऐसे में इस मुद्दे पर ज़्यादा चर्चा नहीं हुई है. हालांकि, विपक्ष का दावा है कि इस विधेयक की वजह से किसानों की ज़मीन कॉरपोरेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा."

"ये संभव है कि किसान उत्पादक संगठन कुछ नगदी वाली फसलों के लिए आधुनिक फुटकर विक्रेता, थोक विक्रेता, एग्रीगेटर, प्रोसेसर और निर्यातकों के साथ अनुबंध करेंगे. हालांकि, इस बात की संभावनाएं काफ़ी कम हैं कि किसान बड़े व्यापारियों के साथ अनुबंध करेंगे क्योंकि वे कॉरपोरेट कंपनियों के राजनीतिक प्रभाव से बेहद भयभीत हैं और क़ानूनी रास्ता उनके लिए काफ़ी महंगा साबित होगा. पंजाब और हरियाणा में कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 को किसानों, कमिशन एजेंट्स और मंडी मजदूरों की ओर से भारी विरोध झेलना पड़ रहा है."

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