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कैसे कोरोना वायरस ने यूरोपीय देशों को भी राष्ट्रवाद का झंडा पकड़ा दिया है

-सत्याग्रह,

यूरोपीय संघ का विशेष कोरोना शिखर सम्मेलन इसके ब्रसेल्स स्थित मुख्यालय में शुक्रवार 17 जुलाई को शुरू हुआ था. अगले ही दिन उसे समाप्त हो जाना था. पर चला दो के बदले पांच दिन. पूरे 90 घंटे. संघ के 27 सदस्य देशों के राष्ट्रपतियों-प्रधानमंत्रियों के बीच राष्ट्रीय स्वार्थों का टकराव ऐसा था कि तीन दिनों तक गतिरोध बना रहा. यहां तक कि उनके बीच अच्छी-ख़ासी गर्मा-गर्मी भी रही.

कई बार लगा कि सम्मेलन अब विफल हो जायेगा. वे इस बात पर सहमत नहीं हो पा रहे थे कि कोरोना वायरस की मार से सर्वाधिक पीड़ित इटली, स्पेन और पुर्तगाल जैसे यूरोप के देशों की सहायता कैसे की जाये. उनकी अर्थव्यवस्था के उद्धार के लिए कितना पैसा उन्हें ऋण के रूप में और कितना ऐसे अनुदान के रूप में दिया जाये, जिसे उन्हें लौटाना नहीं पड़े.

जर्मनी की चांसलर (प्रधानमंत्री) अंगेला मेर्कल सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही थीं. यूरोपीय संघ को अपने सदस्य देशों के अब तक के सबसे बड़े उद्धार कार्यक्रम के लिए 750 अरब यूरो जुटाना और उसके न्यायसंगत वितरण का फ़र्मूला ढूंढना था. साथ ही संघ के 2027 तक के बजट के लिए भी सदस्य देशों का अनुमोदन प्राप्त करना था. यह बजट एक खरब 74 अरब यूरो के बराबर है. एक यूरो की कीमत इस वक्त लगभग 88 रूपये है.

जुड़वां इंजन नहीं चला

यूरोपीय संघ को 27 देशों की कई बार एक ऐसी रेलगाड़ी कहा जाता है, जर्मनी और फ्रांस जिसके जुड़वां इंजन हैं. अब तक प्रायः यही दोनों देश तय किया करते थे कि रेलगाड़ी कहां और कैसे जायेगी. इस बार भी जर्मनी की चांसलर अंगेला मेर्कल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने सोचा था कि 750 अरब यूरो वाले सहायता कोष में से 500 अरब यूरो कोरोना की मार से सबसे अधिक पीड़ित इटली और स्पेन जैसे देशों को ऐसे अनुदान के रूप में दिये जायेंगे, जिस पर उन्हें न तो कोई ब्याज देना होगा और न उसे लौटाना होगा. यूरोपीय संघ यह पैसा व्यावसायिक बैंकों आदि से ऋण लेकर जुटायेगा. शेष 250 अरब यूरो ब्याजधारी ऋण के रूप में सभी देशों को वितरित किये जायेंगे.

लेकिन इस बार चार छुटभैये देशों  ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, डेनमार्क और स्वीडन – ने विद्रोह कर दिया. वे मीडिया में ‘मितव्ययी चार’ या ‘ कंजूस चार’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये. ऑस्ट्रिया के मात्र 36 वर्ष के युवा चांसलर (प्रधानमंत्री) सेबास्टियन कुर्त्स और नीदरलैंड के 53 वर्षीय प्रधानमंत्री मार्क रुटे इस विद्रोही चौकड़ी के प्रवक्ता हैं. फ़िनलैंड की इस समय मात्र 34 साल की संसार की सबसे युवा प्रधानमंत्री साना मरीन भी इस गुट के साथ हो ली हैं. यह गुट अड़ गया कि ब्याज-रहित और लौटाने की शर्त से मुक्त 500 अरब यूरो वाले अनुदान में अच्छी-ख़ासी कटौती की जाये, वर्ना वे इस कोष को बनने नहीं देंगे. उनका तर्क था कि संघ की संधियों के अनुसार उसे बाज़ार से ऋण लेने का अधिकार ही नहीं है, क्योंकि इसका अर्थ संघ के सभी सदस्य देशों को सामूहिक रूप से कर्ज़दार बनाना होगा.

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