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किसान आंदोलन और कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला: सात ख़ास बातें

-बीबीसी,

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसानों के मुद्दे का हल निकालने के लिए बनाई गई कमेटी दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करे.

इस कमेटी की पहली मीटिंग दस दिनों के भीतर करने का भी आदेश दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के प्रमुख बिंदु

1. तीनों कृषि क़ानूनों के अमल पर रोक दी गई है.

2. न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था क़ानून पारित होने से पहले की तरह चलती रहेगी.

3. इन क़ानूनों के तहत की गई किसी भी कार्रवाई के परिणामस्वरूप किसी भी किसान को उसकी ज़मीन से न तो बेदखल किया जाएगा और न ही वंचित.

4. भूपिंदर सिंह मान, प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल घनवंत की सदस्यता वाली कमेटी कृषि क़ानूनों पर किसानों की शिकायतें और सरकार का नज़रिया सुनेगी और उसके आधार पर अपनी सिफारिशें देगी.

5. कमेटी को काम करने के लिए सरकार उसे दिल्ली में जगह मुहैया कराएगी और उसके खर्चे का वहन करेगी.

6. किसान संगठनों के प्रतिनिधि चाहे वे विरोध प्रदर्शन कर रहे हों या नहीं, चाहे वे इन क़ानूनों के समर्थन में हों या विरोध में, वे अपनी बात रखने के लिए कमेटी के सामने पेश होंगे.

7. कमेटी दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट फाइल करेगी. कमेटी की पहली बैठक दस दिनों के अंदर होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि क़ानूनों के लागू होने पर अगले आदेश तक रोक लगा दिया है.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने धरने पर बैठे किसानों से बात करने के लिए चार सदस्यों वाली एक कमिटी का गठन किया है.

चीफ़ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, "अगले आदेश तक इन तीनों कृषि क़ानूनों के लागू होने पर रोक लगी रहेगी."

चीफ़ जस्टिस की अगुवाई में तीन जजों की बेंच इस मामले में दाखिल याचिका की सुनवाई कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर इन याचिकाओं में डीएमके के सांसद त्रिची शिवा और आरजेडी के सांसद मनोज झा की याचिकाएँ भी शामिल हैं.

न्यायिक प्रक्रिया
चीफ़ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, "हम कमिटी का गठन कर रहे हैं ताकि हमारे सामने एक साफ तस्वीर आ सके. हम यह दलील नहीं सुनना चाहते हैं कि किसान कमिटी के सामने नहीं जाएंगे. हम समस्या का समाधान चाहते हैं. अगर आप अनिश्चित समय के लिए विरोध-प्रदर्शन करना चाहते हैं तो कर सकते हैं. "

उन्होंने आगे कहा, "हम क़ानून की वैधता को लेकर चिंतित हैं. साथ ही हम विरोध-प्रदर्शन से प्रभावित हो रहे लोगों की ज़िंदगी और संपत्तियों को लेकर भी फिक्रमंद हैं. हमारे पास जो शक्तियाँ हैं हम उसके अनुरूप ही इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं और हमारे पास क़ानून को निरस्त करने और कमिटी गठित करने का अधिकार है."

उन्होंने कहा, "यह कमिटी हमारे लिए हैं. आप सभी लोग जो इस समस्या का समाधान चाहते हैं, वे कमिटी के सामने जाएंगे. वो कोई आपको सज़ा नहीं देंगे. वे सिर्फ़ हमें रिपोर्ट सौंपेंगे. कमिटी इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है. हम क़ानून को निलंबित करने की योजना बना रहे हैं लेकिन अनिश्चित समय के लिए नहीं."

कोर्ट ने जिस कमिटी का गठन किया है, उसके सदस्य हैं- बीएस मान, प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल धनवंत.

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