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किसान आंदोलन: सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को नये साल से क्या उम्मीदें हैं?

-बीबीसी, 

मोदी सरकार के नये कृषि क़ानूनों की मुख़ालफ़त कर रहे हरियाणा-पंजाब के किसानों को नये साल से बहुत उम्मीदें हैं.

किसानों को प्रदर्शन करते हुए महीना भर से अधिक हो चुका है, केंद्र सरकार से जारी बातचीत में उन्हें अब तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है, पर उन्हें विश्वास है कि जीत उन्हीं की होगी.

किसानों की प्रमुख माँग अब यह है कि 'सरकार उन्हें बताये कि वो तीनों कृषि क़ानूनों को कैसे रद्द करने वाली है.' किसान संगठन चाहते हैं कि तीनों क़ानून वापस लिये जायें. इन क़ानूनों को किसान 'काले क़ानून' कह रहे हैं.

अपनी माँगों को लेकर किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं. दिसंबर-जनवरी की ठण्ड में, जब न्यूनतम तापमान 3-5 डिग्री तक जा रहा है, जो खुले में शून्य से भी ज़्यादा ठण्डा महसूस होता है, ऐसी परिस्थिति में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर एक 'टेंट सिटी' बना ली है.

इस 'टेंट सिटी' (सिंघु बॉर्डर) में जैसे-जैसे रात गहराती है, तापमान तेज़ी से गिरता है, मगर अलाव और प्रदर्शन में शामिल लोगों की गर्मजोशी इसके असर को महसूस नहीं होने देती.

साल 2020 हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया है. यह साल ना सिर्फ़ कोरोना महामारी की वजह से, बल्कि भारतीय किसानों के एक अनुशासित और व्यवस्थित आंदोलन की वजह से भी बहुत यादगार रहेगा. हाल के दौर में लोगों ने भारत में ऐसा आंदोलन देखा नहीं होगा.

गुरुवार-शुक्रवार की दरमियानी रात, जब सारी दुनिया साल 2020 को विदा कर रही थी और नये साल का स्वागत कर रही थी, तो सड़कों पर मौजूद किसानों ने कैसे नया साल मनाया, यह जानने के लिए हम सिंघु बॉर्डर पहुँचे.

हमें बताया गया कि प्रदर्शन में शामिल लोगों ने यह तय किया है कि वो नये साल की आमद का जश्न नहीं मनायेंगे क्योंकि उनके बहुत सारे किसान साथी इस आंदोलन के दौरान मारे गये हैं. किसान उन्हें 'शहीद' कहते हैं. लेकिन यहाँ मौजूद किसानों को नए वर्ष से, आने वाले वक़्त से, बहुत सारी उम्मीदें हैं.

ये उम्मीदें किस तरह की हैं? आने वाले वक़्त में वो क्या देख रहे हैं? और क्या उन्हें प्रदर्शन में रहते-रहते कभी कोई नाउम्मीदी होती है? इस तरह के कुछ सवाल हमने प्रदर्शन में शामिल लोगों से किये.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.