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कड़िया की हवेली बाकी सबके झोपड़े

भले ही कड़िया मुंडा देश की सबसे बड़ी पंचायत (लोकसभा) के उपाध्यक्ष हो, लेकिन उनका गांव चांडीडीह काफी पिछड़ा है. खूंटी लोकसभा क्षेत्र की जनता ने पहली बार 1977 में कड़िया मुंडा को सांसद के रूप में चुना था और इसके बाद वे सात बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. वर्ष 2009 में सांसद चुने जाने के बाद इन्हें लोकसभा का उपाध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद मिला. भाजपा के इस वरिष्ठ नेता के गांव पहुंचने पर वैसी तसवीर नहीं दिखती, जैसी किसी कद्दावर नेता के गांव की होनी चाहिए. गांव में बिजली और सड़क की बात छोड़ दें तो यहां विकास का कोई काम नहीं हुआ है. गांव के लोगों का रहन-सहन और जीवन स्तर खस्ताहाल है. सुरेंद्र मोहन की रिपोर्ट :

खूंटी-चाईबासा मार्ग पर खूंटी शहर से लगभग छह किलोमीटर आगे बढ़ने के बाद बांयी ओर अनिगड़ा गांव के लिए पक्की सड़क है. दो किलोमीटर चलने पर अनिगड़ा गांव मिलता है. इस गांव को पार करने के बाद चांडीडीह टोला है. इसी टोला में कड़िया मुंडा का घर है. टोला बहुत बड़ा नहीं है. टोला में करीब 20 परिवार रहते हैं और आबादी करीब 150 है. यह टोला खूंटी जिले के खूंटी प्रखंड स्थित बारूडीह पंचायत के अंतर्गत आता है. गांव तक पहुंचने के लिए पीसीसी पथ है. टोले में चारों तरफ सड़क बनी है. बिजली की स्थिति भी अच्छी है. विकास के नाम पर बस यही दो चीजें. खपरैल मकानों के बीच एक आलीशान मकान है. यह मकान लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा का है.
चांडीडीह टोला में स्कूल नहीं है. टोला के बच्चे पढ़ने के लिए बगल के अनिगड़ा गांव में जाते हैं. अनिगड़ा में ही राजकीय उत्क्रमित उच्च विद्यायल है. गांव के सिर्फ एक-दो युवकों ने ही बीए तक की पढ़ाई की है. अधिकतर मैट्रिक तक पढ़े हैं. महिलाओं का भी शैक्षणिक स्तर औसत ही है. टोले के लोगों का मुख्य पेशा खेती है. लोगों की आजीविका का साधन कृषि है. कृषि की भी हालत अच्छी नहीं है. गांव में पानी की समस्या है. खेतों के लिए भरपूर पानी का अभाव बना रहता है. सिंचाई के लिए किसी भी प्रकार की कोई सरकारी योजना का लाभ टोला के लोगों को नहीं मिला है. छह सात कुएं है, जिनमें तीन चार ही कारगर. पीने के पानी के लिए टोले में चार चापानल हैं, जिसमें दो खराब हैं. गांव के लोगों को चिकित्सा के लिए अनिगड़ा जाना होता है. अनिगड़ा में एक स्वास्थ्य उपकेंद्र है. गांव में बिजली की स्थिति अच्छी है. करीब 15-20 साल पहले यहां बिजली पहुंची थी. टोले के लोगों का मनरेगा जॉब कार्ड तो बना है, लेकिन काम नहीं मिलता. ग्रामीण बताते हैं कि नक्सलियों की लेवी के कारण कोई अभिकर्ता काम लेना ही नहीं चाहता. टोले में पुस्तकालय की कमी है. ग्रामीणों में भी किसी ने कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं की है. टोले की महिलाओं ने मिल कर चार स्वयं सहायता समूह बनाये हैं. चांडीडीह टोला में सांसद कोष से एक सामुदायिक भवन बना है. इसी भवन में आंगनबाड़ी सेवा केंद्र संचालित किया जाता है. गांव की ही पुड़ुंबी नाग आंगनबाड़ी सेविका हैं. आंगनबाड़ी केंद्र की हालत भी ठीक नहीं है.

गांव में बेटे व बहू रहते हैं
कड़िया मुंडा को चार बेटियां और दो बेटे हैं. सभी बेटियों और एक बेटे की शादी हो चुकी है. हालांकि एक बेटी का निधन हो चुका है. बड़े बेटे जगन्नाथ मुंडा पत्नी के साथ गांव पर ही रहते हैं. इनकी एक छोटी-सी बेटी है. जगन्नाथ मुंडा का पेट्रोल पंप का व्यवसाय है. एक रिश्तेदार के साथ मिल कर गैस एजेंसी का व्यवसाय भी देखते हैं. पत्नी वरदानी परदिया गृहणी हैं. छोटे बेटे अमरनाथ मुंडा दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं.

नहीं हुआ विकास के कोई खास कार्य
लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा के प्रयास से गांव में विकास के लिए कोई खास कार्य नहीं हुआ है. ग्रामीणों में अपने जन प्रतिनिधि के प्रति नाराजगी देखने को मिलती है. इस संवाददाता से बातचीत के दौरान ज्यादातर लोग सांसद नाराजगी प्रकट करते हैं. चूंकि अधिकतर परिवार खेती पर निर्भर हैं. इसलिए सिंचाई व पीने के पानी की सबसे बड़ी जरूरत इस टोला को है, जिसका सांसद ने अबतक कोई हल नहीं निकाला है और ना ही यहां किसी प्रकार की जलापूर्ति योजना संचालित की जा रही है. सांसद के प्रयास से स्वजल धारा योजना के अंतर्गत बगल के अनिगड़ा गांव में एक टंकी बनी है, जिससे पानी की आपूर्ति अभी शुरू नहीं हुई है.

सिंचाई की सुविधा नहीं है. तालाब कारगर नहीं हैं. इसलिए डीप बोरिंग की जरूरत है, जिससे खेतों को पानी मिले. आंगनबाड़ी केंद्र की हालत ठीक है. एक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए.
हरीशचंद्र मुंडा, ग्रामीण

गांव के लड़के पढ़ लिखकर भी बेरोजगार हैं. गांव में कोई काम धंधा नहीं है. एक परिवार के लिए चार-पांच लड़कों को पालना मुश्किल होता है. पानी का बहुत दिक्कत है. ग्रामीण महिलाओं को नहाने के लिए स्नानागार होना चाहिए. बरसात के दिनों में पूरा टोला में कीचड़ भर जाता है. कहीं भी नाली नहीं है. नाली का निर्माण होना चाहिए.
चिरेश्वरी देवी, कड़िया मुंडा की भाभी

गांव के युवाओं के लिए रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां मनरेगा के तहत कोई कार्य नहीं होता. आंगनबाड़ी केंद्र का अपना भवन नहीं है. पानी का समाधान होने से खेती अच्छी होती. पुस्तकालय बन जाने से भी इसका लाभ मिलता.     
पुडुंबी नाग, आंगनबाड़ी सेविका

कड़िया जी 1977 में पहली बार सांसद बने. इसके बाद 35 साल तक सांसद रहे. अभी 2012 है. अब तक गांव में जितना विकास होना चाहिए था, नहीं हो सका है. गांव में मात्र दो लोगों को ही इंदिरा आवास मिला है. सड़क निर्माण में भी अनियमिता बरती गयी है. टोले में पानी की समस्या है. कड़िया जी के प्रयास से टोले के उत्तर में एक बड़ा कुआं बना था, जो अब भर गया है. इसके गहरीकरण की जरूरत है. इससे पूरे टोला के लोगों को खेती में लाभ मिलेगा.
सागू मुंडा, ग्रामीण

चांडीडीह का जितना विकास होना चाहिए, नहीं हो सका है. लोकसभा उपाध्यक्ष का यह गांव है. टोला के करीब 40 लोगों का मनरेगा जॉब कार्ड बना है. टोला में खेल का मैदान होना चाहिए. सांसद ने भी सड़क व बिजली छोड़कर विकास के काम में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखायी है. कई लोगों के पास बीपीएल कार्ड नहीं है. मुखिया को अधिकार नहीं मिलने से हमें भी काम करने में कठिनाई होती है. सांसद भी पूंजीपतियों के लिए हैं.
वालेन मुंडू, मुखिया, बारुडीह पंचायत.