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कन्या भू्रण हत्या के मामलों में त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि प्रभावी तरीके से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण परीक्षण कानून लागू करने के लिए कन्या भू्रण हत्या के मामलों में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए। इस कानून के तहत प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध है।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने गैर सरकारी संगठन वालंटियर्स हेल्थ एसोसिएशन आॅफ पंजाब की जनहित याचिका पर सोमवार को सुनाए गए फैसले में कई निर्देश दिए। अदालत ने सरकार को तीन महीने के भीतर सभी अल्ट्रा साउंड क्लीनिकों का विवरण तैयार करने का निर्देश देने के साथ ही निचली अदालतों को इस कानून के उल्लंघन से संबंधित मुकदमों का छह महीने के भीतर निस्तारण करने का आदेश दिया।
न्यायाधीशों ने कहा- राज्य सरकार और संबंधित प्राधिकारियों को इस कानून के तहत सभी पंजीकरण और गैर पंजीकृत अल्ट्रा साउंड क्लीनिकों का विवरण तैयार करने के लिए तीन महीने के भीतर उचित कदम उठाने चाहिए। अदालत ने कहा- देश में विभिन्न अदालतों को इस कानून के तहत लंबित सभी मामलों का छह महीने के भीतर निबटारा करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
अदालत ने इस कानून के तहत अदालतों में लंबित मामलों की प्रगति की निगरानी के लिये राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को विश्ोष प्रकोष्ठ गठित करने और इनके तेजी से निबटारे के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि देश में बड़ी संख्या में सोनोग्राफिक सेंटर, जेनेटिक क्लीनिक, जेनेटिक काउंसलिंग सेंटर, जेनेटिक प्रयोगशालाओं और इमेजिंग केंद्र के स्थापित होने की वजह से प्रशासन को अधिक चौकन्ना और सतर्क रहने की आवश्यकता है। 

देश में 2011 को जनगणना के मुताबिक छह साल तक की बालिका की संख्या का औसत एक हजार लड़कों की तुलना में 914 रह गया है जबकि 2001 की जनगणना में इनकी औसत संख्या 927 थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत गठित केंद्रीय और राज्य स्तर के पर्यवेक्षक बोर्ड की बैठक छह महीने में कम से कम एक बार होनी चाहिए और इस कानून के अमल पर गौर करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि प्राधिकारियों को गैरकानूनी तरीके से और कानूनी प्रावधान का उल्लंघन करके इस्तेमाल में लाए जा रहे उपकरणों को जब्त करना चाहिए। ये उपकरण अपराध प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत जब्त करने के बाद कानूनी प्रावधानों के अनुसार बेचे जा सकते हैं।
बालिका अनुपात में तेजी से आई गिरावट पर चिंता जताते हुए अदालत ने कहा कि समाज के लिए लड़कियों के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने न्यायमूर्ति राधाकृष्णन से सहमति जताते हुए अलग से लिखे फैसले में कहा कि आधुनिक संदर्भ में बालिका की उपयोगिता को समझने के लिए  लोगों में वैज्ञानिक सोच के विकास की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि कन्या भ्रूण की हत्या में लिप्त सभी लोग जानबूझ कर यह भूल जाते हैं कि जब एक कन्या भ्रूण नष्ट किया जाता है तो एक महिला का भविष्य सूली पर चढ़ा दिया जाता है।
दूसरे शब्दों में वर्तमान पीढ़ी खुद ही समस्या को निमंत्रण दे रही है और भावी पीढ़ी के लिए भी कष्ट ही बो रही है क्योंकि इससे आखिरकार लिंग अनुपात प्रभावित होता है और जिसकी वजह से सामाजिक समस्याएं कई गुना बढ़ जाती हैं। (भाषा)।