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कब मिटेगा बाल श्रम का कलंक-- बुद्धप्रकाश

भारतीय संविधान के अनेक प्रावधानों व अधिनियमों में बच्चों की सुरक्षा की खातिर व्यवस्थाएं की गई हैं। समय-समय पर इस उद््देश्य से नए कानून भी बनाए जाते रहे हैं। इस सब के बावजूद बाल श्रम की समस्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई है। बच्चों को भावी कर्णधार और आने वाले कल की तस्वीर कहा जाता है। लेकिन कल के उज्ज्वल भविष्य का वर्तमान पेट की आग बुझाने में इस कदर उलझ गया है कि उसके सारे अधिकार बेमानी साबित हो रहे हैं। आने वाले कल के कर्णधारों का एक बहुत बड़ा हिस्सा भूखा, कुपोषित, शोषित, उत्पीड़ित अशिक्षित और अपने अधिकारों से वंचित है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें इसके प्रति गंभीर दिखाई नहीं दे रही हैं, जिसका परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध के आंकड़े चिंताजनक और किसी भी सभ्य समाज को झकझोरने के लिए पर्याप्त हैं। उनके विरुद्ध बढ़ते अपराध ही आगे चल कर उनके अपराधी बनने का रास्ता खोलते हैं।


उल्लेखनीय है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल साठ हजार से अधिक बच्चे गुम होते हैं। ये गुमशुदा बच्चे बाल व्यापार, वेश्यावृत्ति, बंधुआ मजदूरी, जबरिया भीख, मानव अंग व्यापार आदि ‘धंधों' के लिए महंगी कीमतों पर बेचे जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक हर साल इससे लगभग पैंतालीस अरब डॉलर अर्थात दो लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा काला धन कमाया जाता है। भारत बाल तस्करी का एक बहुत बड़ा केंद्र बनता जा रहा है। बाल श्रम पूरी दुनिया में एक प्रमुख सामाजिक व आर्थिक समस्या बन चुका है, जो बच्चों की शारीरिक व मानसिक क्षमता को प्रभावित करती है। बाल मजदूरों में से एक तिहाई से भी अधिक बच्चे खदानों, खतरनाक मशीनों, खेतों, घरेलू व अन्य प्रतिबंधित कार्यों में लगे हुए हैं।

 

यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में शोषण व भेदभाव के शिकार करोड़ों बच्चे अपने-अपने देश से गायब हो चुके हैं। भारत में भी बच्चों की तस्करी के आंकड़े भयावह हैं। गुम होते बच्चों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। ऐसे बच्चे कहीं बाल वेश्यावृत्ति जैसे घृणित पेशे में झोंक दिए जाते हैं या खतरनाक उद्योगों या सड़क के किनारे किसी ढाबे में जूठे बर्तन धोने में लगा दिए जाते हंै। दुर्भाग्यवश अपने देश में इन बच्चों के यौन शोषण की भी घटनाएं होती रहती हैं। इसका कारण या तो इन व्यवस्थाओं की कमजोरी है अथवा इन व्यवस्थाओं को लागू करने में बरती जाने वाली उदासीनता। आइएलओ यानी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, फिलीपींस आदि ऐसे एशियाई देश हैं जहां बच्चों के शोषण की घटनाएं बढ़ी हैं, जहां बाल मजदूरों की संख्या अधिक है।

 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में चौदह वर्ष से कम उम्र के लगभग बारह करोड़ बाल मजदूर हैं, जो स्कूल जाने के बजाय पेट की भूख मिटाने के लिए कठोर श्रम करने को विवश हैं। शोषित, उत्पीड़ित व घर से भागे हुए बच्चे बाल श्रमिक के रूप में निषिद्ध क्षेत्रों में मजदूरी कर रहे हैं, इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे भारत में बाल श्रम की समस्या अत्यंत जटिल व गंभीर हो गई है।

 

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