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कम वेतन में अधिक काम के बोझ से दबे थे मारुति कर्मी

चंडीगढ़ [जागरण ब्यूरो]। गुड़गांव के मानेसर स्थित मारुति सुजुकी प्लांट में पिछले साल जुलाई में हुई हिंसा प्रबंधन की ही साजिश का हिस्सा थी। मारुति कर्मियों और प्रबंधन के बीच आक्रोश की चिंगारी कई सालों से सुलग रही थी। मारुति कर्मचारियों को कम वेतन देकर उनसे रोबोट की तरह अधिक काम लिया जा रहा था। मारुति वर्कर इस स्थिति पर बार-बार मैनेजमेंट से बातचीत करना चाहते थे, लेकिन उनकी बात को अनसुना करने और कर्मचारियों की यूनियन को तोड़ने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया।

पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स [पीयूडीआर] दिल्ली के पदाधिकारियों ने आज यहां जारी अपनी एक रिपोर्ट में इन तथ्यों का खुलासा किया है। मारुति में मजदूरों के संघर्ष पर यह संगठन 2001 और 2007 में भी रिपोर्ट जारी कर चुका है। 44 पेज की यह रिपोर्ट कार्रवाई के लिए हरियाणा के श्रम मंत्री और फिर केंद्रीय श्रम मंत्री को भेजी जाएगी।

पीयूडीआर के सचिव डी मंजीत, आशीष गुप्ता, सदस्य शहाना भंट्टाचार्य और रंजना ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि मारुति सुजुकी के उन सभी 546 नियमित कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया है, जो कर्मचारियों के हक के लिए आवाज बुलंद कर रहे थे। 1800 कांट्रेक्ट कर्मचारियों को हटाया गया है। इन आंदोलनकारियों में मारुति प्रबंधन ने कर्मचारियों की वर्दी में अपने बाउंसर भी बीच में शामिल कर रखे थे, ताकि हिंसा भड़काई जा सके।

पीयूडीआर की सदस्य शहाना भंट्टाचार्य और रंजना ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि एचआर मैनेजर अवनीश देव की मृत्यु भी संदेह के घेरे में है, क्योंकि यह मैनेजर मारुति कर्मचारियों की मांगों के प्रति सहानुभूति रखते थे। हरियाणा पुलिस ने पूरी तरह से कर्मचारियों की अनदेखी और मारुति प्रबंधन का खुलकर साथ दिया है। इसलिए पूरे प्रकरण की दूसरे राज्य की किसी निष्पक्ष और स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए।

शहाना और रंजना के अनुसार पुलिस ने पहले से सोच बना रखी थी कि दोषी कौन है और घटना के बाद इसी सोच के आधार पर काम किया गया है, क्योंकि मारुति प्रबंधन द्वारा दी गई लिस्ट के आधार पर मुकदमे दर्ज किए गए और इन्हीं कर्मचारियों को हटाया गया। उन्होंने बताया कि कंपनी की उत्पादन क्षमता 1.26 मिलियन यूनिट प्रति वर्ष है लेकिन उत्पादन 1.55 मिलियन यूनिट हुआ है। ऐसा कर्मचारियों को कम वेतन देकर अधिक काम लेने की वजह से हुआ तथा कर्मचारियों को मात्र 30 मिनट का ब्रेक दिया जाता था। चाय पीने के लिए उन्हें मात्र 7-7 मिनट के दो ब्रेक मिलते हैं। मजदूरों को अपनी शिफ्ट शुरू होने के 15 मिनट पहले रिपोर्ट करना होता है और शिफ्ट खत्म होने के बाद 15 मिनट तक काम करना होता है। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त पैसा नहीं मिलता है।

शहाना, रंजना और आशीष ने सर्वे रिपोर्ट के आधार पर बताया कि मजदूरों को यूनियन बनाने के अधिकार से वंचित रखने के लिए हरियाणा के श्रम विभाग ने प्रबंधन से मिलीभगत कर रखी है। उन्होंने इस रिपोर्ट में एचआर मैनेजर की मृत्यु के कारणों की जांच कराने, 18 जुलाई 2012 को हुई इस हिंसा की बाहरी राज्य की एजेंसी से जांच कराने, किराए के बाउंसरों की भूमिका का पता करने, गिरफ्तार लोगों को जमानत दिलाने, बर्खास्त व हटाए गए कर्मचारियों को वापस काम पर लेने और पूरे प्रकरण में पुलिस व श्रम विभाग के अधिकारियों की भूमिका की जांच कराने की मांग की गई है।