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कहां चले गये रोजगार?- डॉ भरत झुनझुनवाला

राज्यों में चल रहे चुनावों में भाजपा ने रोजगार के नाम पर वोट मांगे हैं. रोजगार सृजन के दो उपाय हैं. एक उपाय है कि बड़े उद्योगों पर टैक्स लगा कर छोटे उद्योगों को संरक्षण दिया जाये. छोटे उद्योगों में रोजगार ज्यादा उत्पन्न होते हैं. दूसरा उपाय है कि बड़े उद्योगों को पहले छोटे उद्योगों को नष्ट करने दिया जाये. इसके बाद मनरेगा जैसी योजनाओं से रोजगार उत्पन्न किया जाये. इन दोनों में छोटे उद्योगों को संरक्षण देनेवाला पहला उपाय ही उत्तम है. 

मान लीजिए किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य नरम है. एक उपाय है कि उसके सामने से फास्ट फूड के विज्ञापन हटा लिये जायें. वह सब्जी रोटी खाने लगेगा. दूसरा उपाय है कि उसे प्रेरित किया जाये कि वह अपना खून ब्लड बैंक को बेच कर कुछ धन अर्जित करे और सब्जी रोटी खाये. यह दूसरा उपाय निष्क्रिय होगा, चूंकि खून बेचने से स्वास्थ्य में गिरावट आयेगी. उत्तम यही है कि फास्ट फूड कंपनी पर प्रतिबंध लगा दिया जाये. इसी प्रकार रोजगार भक्षक बड़े उद्योगों पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है. 

आज बड़े उद्योगों द्वारा छोटे उद्योगों पर लगातार प्रहार हो रहा है. रोजगार भक्षक बड़े उद्योगों पर अधिक टैक्स लगाना चाहिए. जैसे आलू चिप्स के पैकेटों पर टैक्स बढ़ा दिया जाये, तो मूढ़ी बेचनेवालों का धंधा चल निकलेगा. वर्तमान सरकार द्वारा इस दिशा में कोई पहल नहीं की गयी है. 

वर्तमान में उद्योगों को ऊर्जा आॅडिट करानी होती है. बताना होता है कि ऊर्जा की बचत को उनके द्वारा क्या कदम उठाये गये हैं? इसी प्रकार सभी निवेश के प्रस्तावों की रोजगार आॅडिट की जानी चाहिए. आलू चिप्स की फैक्टरी को स्वीकृति देने के पहले जांच करनी चाहिए कि कितनी संख्या में मूढ़ी बेचनेवाले बेरोजगार हो जायेंगे. 

इस नीति को लागू करने में समस्या विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की है. अपने देश में आॅटोमेटिक लूम से बने कपड़े पर टैक्स बढ़ाने के साथ ही दूसरे देशों में आॅटोमेटिक लूम से बने कपड़े के आयात पर टैक्स बढ़ाना जरूरी होगा अन्यथा घरेलू छोटे उद्योग पिटेंगे. चूंकि आॅटोमेटिक मशीन से निर्मित सस्ता विदेशी माल हमारे देश के बाजार में प्रवेश करेगा. 

हमारे बड़े घरेलू उद्योग भी पिटेंगे, चूंकि उन पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा. डब्ल्यूटीओ के ढांचे में बेरोजगारी बढ़ रही है, चूंकि आॅटोमेटिक मशीनों से उत्पादन करनेवाली कंपनियों को संपूर्ण विश्व के बाजारों में में प्रवेश की खुली छूट मिल गयी है. अमेरिका में आधे अश्वेत युवक बेरोजगार हैं. अतः डब्ल्यूटीओ के मूल जनविरोधी चरित्र को चुनौती दिये बिना देश के आम आदमी को राहत नहीं मिलेगी. सरकार इस मूल समस्या पर खामोश है. 

सरकार ने मनरेगा पर 38,000 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही है. यह आंकड़ा भ्रामक है. 2009 में लगभग 34,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष इस योजना पर खर्च किया जा रहा था. पिछले छह वर्षों में महंगाई के प्रभावों को जोड़ लें, तो उसी सच्चे स्तर पर बनाये रखने के लिए मनरेगा पर खर्च लगभग 70,000 करोड़ होना चाहिए था. लेकिन, इसे घटा कर 38,000 कर दिया गया है. 

सरकार ने स्किल डेवलपमेंट को प्रोत्साहन दिया है. उसने कहा है कि बीते समय में 76 लाख युवाओं को स्किल ट्रेनिंग की गयी है. लेकिन, इससे देश के युवाओं पर कुछ सुप्रभाव पड़ा हो, ऐसा नहीं दिखता है. पहला कारण है कि स्किल डेवलपमेंट के नाम पर तमाम एनजीओ द्वारा कमाई की जा रही है. फर्जी स्किल डेवलपमेंट किया जा रहा है. दूसरा कारण है कि स्किल का डेवलपमेंट हो जाये, तो रोजगार बढ़ने के स्थान पर घट सकते हैं. तीसरा कारण है कि स्किल डेवलपमेंट में कुशलकर्मी को रोजगार मिल जाता है और कम कुशलकर्मी का रोजगार छिन जाता है. स्किल डेवलपमेंट तभी कारगर होगा, जब साथ-साथ श्रम सघन रोजगारों को टैक्स में छूट दी जायेगी. जैसे आॅटोमेटिक लूम पर अत्यधिक, पावरलूम पर मध्यम और हैंडलूम पर शून्य टैक्स लगाया जाये, तब बुनाई में रोजगार बढ़ेंगे. पहले रोजगार सृजन को लाभकारी बनाने के बाद ही स्किल डेवलपमेंट लाभकारी होगा. 

सरकार ने नये नवोदय विद्यालयों को खोलने की घोषणा की है. देश में एक विशाल शिक्षा माफिया पहले ही कार्यरत है. इन्हें सरकार द्वारा भारी वेतन दिये जाते हैं, जिससे कि ये भारी संख्या में बच्चों को फेल करायें. फिर बच्चे फेल हों यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें यूनिफाॅर्म, किताबें और मध्याह्न भोजन का प्रलोभन दिया जाता है. इस संपूर्ण दुष्ट व्यवस्था को जड़ से समाप्त करके डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के सिद्धांत के अनुसार सभी बच्चों को वाउचर देने चाहिए, जिससे वे मनचाहे विद्यालय में शिक्षा हासिल कर सकें.