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कामयाब रहा नोटबंदी का मकसद - अरुण जेटली

भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में 8 नवंबर, 2016 का दिन बेहद निर्णायक माना जाएगा। यह दिन इस सरकार द्वारा काले धन पर प्रहार की याद दिलाता है। देश की जनता भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर 'चलता है वाले रवैये को झेलने पर मजबूर थी और इसकी सबसे ज्यादा मार मध्यवर्ग और समाज के निचले तबके को झेलनी पड़ती थी। यह जनता की लंबे अरसे से आकांक्षा थी कि भ्रष्टाचार व काले धन के खिलाफ जंग छेड़ी जाए। 2014 के जनादेश पर जनता के इस भाव की छाप भी बखूबी नजर आई। हमारी सरकार ने भी कमान संभालते हुए सबसे पहले काले धन पर विशेष जांच दल यानी एसआईटी के गठन को मंजूरी दी। इस सरकार ने तीन साल के दौरान तमाम फैसलों के जरिए काले धन के खिलाफ मुहिम छेड़ी है। एसआईटी गठन हो या विदेशी संपत्तियों के लिए जरूरी कानून, नोटबंदी हो या जीएसटी, सरकार ने फैसले लेने में हिचक नहीं दिखाई।

 

 

जब आज देश 'काला धन विरोधी दिवस मना रहा है तो एक बहस भी शुरू हुई है कि क्या नोटबंदी की कवायद से अपेक्षित नतीजे हासिल भी हुए? इस पर कुछ चर्चा जरूरी है। रिजर्व बैंक के अनुसार इस साल 30 जून तक उसके पास 15.28 लाख करोड़ रुपए के पुराने नोट जमा हुए। वहीं 8 नवंबर, 2016 को कुल 15.44 लाख करोड़ रुपए के 500-1000 के नोट चलन में थे। वैसे 8 नवंबर, 2016 को कुल 17.77 लाख करोड़ रुपए राशि के नोट चलन में थे। देश में नकदी के चलन को घटाना भी नोटबंदी का एक प्रमुख मकसद था ताकि तंत्र में काले धन के प्रवाह को कम किया जाए। ऐसे में तंत्र में मौजूद कुल मुद्रा में आई कमी से यह मकसद भी पूरा हुआ। इस साल सितंबर तक के आंकड़े दर्शाते हैं कि तंत्र में नकदी के पैमाने पर 3.89 लाख करोड़ रुपए की कमी आई है।

 

हमें वित्तीय तंत्र से अतिरिक्त नकदी क्यों हटानी चाहिए? नकद लेन-देन क्यों घटाने चाहिए? नकदी का एक तरह से कोई सुराग नहीं होता। नकदी के मालिकों की पहचान करना भी नोटबंदी की एक मंशा थी। चूंकि 15.28 लाख करोड़ रुपए अधिकृत बैंकिंग तंत्र में आ गए हैं तो अब नकदी का एक सिरा भी मिल गया है। इसमें भी 1.6 से 1.7 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन संदिग्ध है। अब कर प्रशासन और प्रवर्तन एजेंसियां इन आंकड़ों के जरिए संदिग्धों की धरपकड़ कर सकती हैं। इस दिशा में कदम उठा भी लिए गए हैं। डाटा एनालिटिक्स के आधार पर आयकर विभाग ने छापेमारी के जरिए 2015-16 की तुलना में 2016-17 में दोगुनी नकदी जब्त की। साथ ही लोगों ने 15,497 करोड़ रुपए की अघोषित आमदनी स्वीकार की, जो इससे पिछले साल की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक रही। वहीं सर्वे के दौरान 2016-17 में 13,716 करोड़ रुपए की अघोषित आय का पता चला जो 2015-16 की तुलना में 41 फीसद अधिक रही। छापेमारी व स्वघोषणा को मिलाकर कुल 29,213 करोड़ रुपए मिले, जो संदिग्ध लेन-देन के 18 प्रतिशत के बराबर हैं। 31 जनवरी, 2017 से चल रहे 'ऑपरेशन क्लीन मनी से ये अभियान और परवान चढ़ेगा। नकदी के तिलिस्म को तोड़ने का ही नतीजा है कि इस साल 5 अगस्त तक 56 लाख नए करदाताओं ने आयकर रिटर्न दाखिल किया, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा महज लगभग 22 लाख था।

 

 

नोटबंदी के दौरान मिले सुराग से 2.97 लाख मुखौटा कंपनियों की भी पहचान हुई। इन कंपनियों को नोटिस जारी करने के बाद कानूनी कार्रवाई के जरिए 2.24 लाख कंपनियों का पंजीयन रद्द किया गया। इन कंपनियों के बैंक खातों में लेन-देन को रोकने के लिए आगे भी कार्रवाई की गई। इन 2.97 लाख कंपनियों में 28,088 कंपनियों के 49,910 बैंक खातों में 9 नवंबर से पंजीकरण रद्द होने तक करीब 10,200 करोड़ रुपए की राशि का लेन-देन हुआ। इनमें से तमाम कंपनियों के सौ से भी अधिक बैंक खाते और एक कंपनी के तो 2,134 खाते निकले। साथ ही आयकर विभाग ने 1,150 से अधिक मुखौटा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की जो 22,000 संदिग्ध लाभार्थियों के मार्फत 13,000 करोड़ रुपए से अधिक की धांधली में लिप्त थीं।

 

 

नोटबंदी के बाद सेबी ने भी स्टॉक एक्सचेंजों में एहतियाती कदम उठाए। करीब 800 से अधिक प्रतिभूतियों पर इन्हें लागू किया गया। निष्क्रिय कंपनियां अक्सर खुराफाती लोगों के हाथ का खिलौना बन जाती हैं। यह सुनिश्चित करने हेतु कि कहीं ये कंपनियां शेयर बाजार में काले धन की शरणगाह न बन जाएं, लगभग 450 संदिग्ध कंपनियों की सूचीबद्धता समाप्त की गई और उनके प्रवर्तकों के डीमैट खातों पर रोक लगाने के साथ किसी भी कंपनी में बतौर निदेशक उनकी नियुक्ति पर भी प्रतिबंध लगा दिया। पुराने क्षेत्रीय एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध ऐसी 800 कंपनियों को भी गुमशुदा कंपनी करार दिया गया, जिनका कोई ओर-छोर नहीं मिल रहा था।

 

 

बचत को वित्तीय बाजार की ओर मोड़ने में भी नोटबंदी ने अहम भूमिका निभाई। इसके साथ ही वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की ओर कदम बढ़ाने से भी अर्थव्यवस्था का स्वरूप और अधिक औपचारिक होता गया। तमाम आंकड़े इसकी पुरजोर पुष्टि करते हैं। कॉर्पोरेट बांड बाजार से लेकर म्यूचुअल फंड बाजार में तेजी दर्शाती है कि लोग बचत के लिए पारंपरिक माध्यमों के बजाय इन वित्तीय उत्पादों का रुख कर रहे हैं। केवल म्यूचुअल फंडों में वित्तीय प्रवाह की बात करें तो 2016-17 में ही पिछले साल की तुलना में 155 प्रतिशत की अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज हुई और यह आंकड़ा बढ़कर 3.43 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। नकदी पर कम निर्भरता से भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ऊंची छलांग लगा चुका है। 2016-17 के दौरान के्रडिट कार्ड के जरिए 3.3 लाख करोड़ रुपए के 110 करोड़ लेन-देन, तो डेबिड कार्ड के माध्यम से 3.3 लाख करोड़ रुपए के 240 करोड़ लेन-देन हुए। इससे पिछले साल में डेबिट कार्ड से 1.6 लाख करोड़ रुपए तो क्रेडिट कार्ड से 2.4 लाख करोड़ रुपए के लेन-देन हुए थे। नेटबैंकिंग में भी खासी तेजी आई।

 

 

अर्थव्यवस्था के संगठित, औपचारिक बनने से निर्धन वर्ग के लोगों को भी वे फायदे मिलने लगे हैं, जिनसे वे अब तक वंचित थे। बैंक खातों के खुलने और ईपीएफ से जहां उन्हें राहत मिली है तो भुगतान एवं मजदूरी अधिनियम में संशोधन उनके लिए सोने पर सुहागा साबित हुआ है। नोटबंदी के फायदे केवल आर्थिक एवं सामाजिक मोर्चे पर ही नहीं हुए, बल्कि जम्मू कश्मीर में विरोध-प्रदर्शन और पत्थरबाजी पर विराम लगने के साथ ही नक्सल गतिविधियां भी घटीं, जाली नोटों की बीमारी का भी इलाज हुआ। नोटबंदी के बाद देश अधिक साफ-सुथरे, पारदर्शी और ईमानदार वित्तीय तंत्र की ओर बढ़ा है। भले ही कुछ लोगों को ये फायदे नहीं दिख रहे हों, किंतु भावी पीढ़ियां जरूर कहेंगी कि इसने उनके लिए पारदर्शी आर्थिक परिवेश की बुनियाद रखी।

 

(केंद्रीय वित्त मंत्री की फेसबुक पोस्ट के संपादित अंश)