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कारपोरेट सेक्टर के बचाव में आए पवार

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। लोन घोटाले और भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में कारपोरेट जगत पर कस रहे जांच एजेंसियों के शिकंजे के खिलाफ राकांपा सुप्रीमो शरद पवार खुलकर सामने आ गए हैं। उन्होंने रतन टाटा की 'बनाना रिपब्लिक' वाली टिप्पणी को सरकार से गंभीरता से लेने का आग्रह किया है। साथ ही चेतावनी दी है कि जांच एजेंसियों के जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप से न सिर्फ औद्योगिक विकास बाधित होगा, बल्कि इसके घातक राजनीतिक परिणाम भी होंगे।

सोमवार को संयुक्त संसदीय दल की बैठक में पवार ने कारपोरेट घरानों पर बिना किसी तार्किक कारण के जांच एजेंसियों के ज्यादा दखल पर चिंता जताई थी। उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के कहा था, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई ठीक है, लेकिन कारपोरेट जगत को बेवजह निशाना नहीं बनाना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि जांच एजेंसियों के खेल में वे पिसकर रह जाएं। संप्रग की बैठक में खरी-खरी सुनाने के बाद मंगलवार को उन्होंने मीडिया से भी दो टूक यही बातें दोहराई। फोन टैपिंग के लीक होने से व्यथित रतन टाटा के 'बनाना रिपब्लिक' वाली टिप्पणी को उन्होंने गंभीरता से लेने का आग्रह किया।

पवार ने कहा, 'मैं यह बात इसलिए नहीं कह रहा हूं कि रतन टाटा समृद्ध हैं और उनका 73 अरब अमेरिकी डालर का साम्राज्य है। बल्कि टाटा की देश व दुनिया में जो इज्जत है, उसके मद्देनजर उनकी बात को गंभीरता से लेना जरूरी है।' इसके साथ ही उन्होंने लोन मंजूरी घालमेल में जांच एजेंसियों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल पर भी हैरानी जताई और विरोध किया। उन्होंने सीबीआई की अति सक्रियता के खतरे पर कहा, 'इससे बैंक और उसके अधिकारी लोन देने के मामलों को टालेंगे।' पवार ने कहा, जाहिर है कि इससे नुकसान आम जनता से लेकर उद्योग जगत तक को होगा। इसके साथ ही उन्होंने लोन घोटाले पर हो रही जांच पर हैरानी जताई और कहा, 'मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस मामले में सीबीआइ की क्या जिम्मेदारी है और क्या वित्त मंत्रालय की?'

उन्होंने चेताया कि भ्रष्टाचार की जांच ठीक है, लेकिन यह जरूर ध्यान रखा जाए कि बात इतनी न बिगड़ जाए कि कोई एजेंसी या वित्तीय संस्थान निर्णय ही न ले सके।