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काले धन की जंग में फंस चुके जनधन खाते - अवधेश कुमार

नोटबंदी के बाद जनधन खाता काफी चर्चा में आया है। जो आंकड़े आए हैं, वे चकराने वाले हैं। नौ नवंबर तक इन खातों में जमाराशि थी- 45 हजार, 627 करोड, जो 30 नवंबर को 74 हजार, 322 करोड़ हो गई। जिस खाते में एक पैसा नहीं था या चंद रुपये थे, ऐसे अनेक खातों में 49 हजार रुपये जमा हो गए। 50 हजार या उससे ऊपर जमा करने पर पैन नंबर की जरूरत पड़ती है, इसलिए एक हजार कम कर दिए गए। इससे पहली नजर में यह संदेह स्वाभाविक है कि यह दूसरों का कालाधन होगा। बिहार के आरा के एक जनधन खाते में तो 40 लाख रुपये जमा हुए। इस खाते को सील कर दिया गया है। यह साफ हो रहा है कि बहुत लोगों ने अपना कालाधन सफेद करने के लिए जनधन खातों का सहारा लिया है।

अगर यह सच है, तो इससे कैसे निपटा जाए? इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुरादाबाद रैली में कहा कि आपके जनधन खाते में जो भी रुपये कालाधन रखने वाले अमीरों ने डाले हैं, उनको उसी में रहने दें। मैं कोई रास्ता निकालूंगा। इसके बाद से पूरी स्थिति मानो बदल गई है। इसके अनुसार तो आयकर विभाग को उस खाते को सील नहीं करना चाहिए था, जिसमें 40 लाख रुपये जमा हुए थे। जब तक प्रधानमंत्री ऐसा कोई कानून नहीं बनाते, तब तक आयकर विभाग अपने नियम के अनुसार कार्रवाई करेगा। प्रधानमंत्री अगर अपने कहे अनुसार कार्रवाई करते हैं, तो फिर उनको तुरंत ही कुछ प्रावधान लेकर सामने आना होगा।

हां, यह सवाल जरूर है कि क्या यह उचित होगा? इसके अनुसार किसी अमीर के खाते में अवैध राशि जमा हुई, तो वह कालाधन हो गया और जनधन खाते में जमा हुआ, तो क्या वह कालाधन नहीं होगा? नैतिक दृष्टि से यह निर्णय प्रश्नों के घेरे में रहेगा। प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद वे लोग पछता रहे होंगे, जिन्होंने अपने जनधन खाते में किसी की राशि डालने से मना किया। यह संभव है कि इनमें से कुछ लोग किसी दबाव में, प्रभाव में या मामले को सही तरीके से न समझने के कारण दूसरों के 500 और 1000 रुपये के नोट अपने खाते में डालने को तैयार हुए हों। लेकिन यह भी संभव है कि कुछ लोगों ने लालच में ऐसा किया होगा और उन पर किसी तरह का दबाव, भय या प्रभाव नहीं रहा हो।

दोनों प्रकार के लोगों को एक ही तराजू में रखकर तौल देना कम से कम भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई का हिस्सा नहीं हो सकता। भ्रष्टाचार आचरण से संबंधित माना जाता है। तो लालच में ऐसा करने वाले लोग भ्रष्टाचारी ही हुए। भले वे गरीब हैं। कह सकते हैं कि गरीबी जो न कराए। गरीबी में थोड़े धन की लालच में लोग क्या से क्या करने को तैयार हो जाते हैं और यहां तो केवल खाते में धन डालने का मामला था। यह सोचकर ऐसे लोगों को क्षमा किया जा सकता है। पर इनके खाते में जमा धन यदि किसी का कालाधन का हिस्सा है, तो फिर वह सरकारी खजाने में जाना चाहिए। प्रधानमंत्री यदि यह घोषणा करते कि आपके खाते में जिन लोगों ने रुपये डाले हैं, उनको वापस मत करिए और इसे सरकारी खजाने में जमा करिए, तो बात कुछ और होती। यह नैतिक दृष्टि से भी उचित होता और बेहतर संदेश जाता।

अभी हमें पता नहीं कि प्रधानमंत्री किस तरह का प्रावधान लाएंगे, और जनधन खातों में जमा हुए इन रुपयों क्या होगा? बेशक, इसमें दोराय नहीं कि जनधन खातों का इस्तेमाल कालाधन को सफेद करने के लिए किया गया, लेकिन पहले यह तो तय हो कि किस खाते में जमा धन काला है। इसे कैसे साबित किया जाएगा? कई खातों में 10 हजार से 20 हजार तक की राशि जमा हुई। यह राशि तो बचत की ही होगी। इसका मतलब हुआ कि सारे खातों में कालाधन नहीं डाला गया है। दूसरे, घर में परिवार से बचाकर रखी गई राशि को भी कुछ महिलाओं ने अपने परिचय के अनुसार जनधन खाता में जमा करवाया होगा। हो सकता है, घरों में दाई का काम करने वाली का खाता हो, या मजदूरी करने वाले का। इसे कालाधन नहीं कह सकते। यानी पूरे 28,600 करोड़ को कालाधन मान लेना उचित नहीं है। यह राशि बहुत बड़ी लगती है, लेकिन खातों के हिसाब से देखें, तो यह राशि कतई बड़ी नहीं है। सभी जनधन खातों को बेवजह शक की नजर से देखना मामले को उल्टी तरफ ले जाएगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)