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काले धन के खिलाफ लंबी है लड़ाई - संजय कपूर

पिछले दिनों जब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान यह घोषणा कर रहे थे कि सरकार की आय घोषणा योजना-2016 (आईडीएस-16) के तहत देशभर में 65,250 करोड़ रुपए का खुलासा हुआ, तो वहां मौजूद मीडियाकर्मियों के अलावा इसे लाइव देख रहे लोगों के चेहरे पर हैरानी काभाव साफ नजर आया। 4 महीने की इस एमनेस्टी स्कीम के तहत देशभर में उन लोगों ने अपनी अघोषित आय का खुलासा किया, जिन्होंने अब तक इसे छुपाकर रखा था। इस रकम पर 45 फीसदी की दर से करारोपण से सरकार को 35,000 करोड़ की आय हो सकती है, जो वाकई भारीभरकम रकम है। इससे सरकार को बजटीय घाटा नियंत्रित करने में काफी मदद मिल सकती है। यह सब सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन कुछ सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं।

कई लोग इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश में काले धन की बुराई को दूर करने के संकल्प की सफलता मान इसकी सराहना कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जैसे कुछ ऐसे लोग भी हैं जो यह सवाल उठा रहे हैं कि मोदीजी द्वारा किए गए वादे के मुताबिक क्या गरीबों के खाते में 15 लाख रुपए पहुंचेंगे, जिनका मोदी के पीएम बनने के बाद महज 1 रुपए से खाता खोल दिया गया था। गौरतलब है कि वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान मोदी ने अपने प्रचार अभियान के दौरान यह कहा था कि यदि विदेशों में जमा तमाम काला धन किसी तरह देश में वापस लाया जा सके तो हरेक के खाते में 15 लाख रुपए जमा हो सकते हैं। मोदी की ऐसी बातों से प्रभावित होकर अधिसंख्य मतदाताओं ने उनके और उनकी पार्टी भाजपा के पक्ष में मतदान किया। लेकिन जब महीनों के इंतजार के बाद लोगों ने पाया कि उनके खाते में जमा रकम एक रुपए से आगे नहीं बढ़ी है तो वे खीझने लगे। यहां तक कि कई लोग तो बैंक मैनेजरों पर भी यह तोहमत लगाने लगे वे उनके फंड्स रोककर बैठे हैं। यह सब देखकर आखिरकार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को कहना पड़ा कि 15 लाख रुपए की बात तो दरअसल एक 'जुमला" थी। इस पर हालांकि केंद्र में बैठी भाजपानीत सरकार की मलामत भी की गई कि वह लोगों की भावनाओं से खेलती है। बहरहाल, देशभर में 65,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की अघोषित आय के खुलासे से केंद्र सरकार को देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में जरूर कुछ मदद मिलेगी।

यदि कोई इंटरनेट पर जाकर वित्त मंत्री द्वारा प्रफुल्लित मन से की गई इस घोषणा से पहले की चीजों को खंगाले तो आपको ऐसी कई रिपोर्ट्स मिलेंगी, जिनमें सरकार की इस एमनेस्टी स्कीम की सफलता पर संदेह जताया गया था। एक अग्रणी अंग्रेजी दैनिक अखबार ने तो यहां तक कहा था कि ये आंकड़ा 1000 करोड़ से ऊपर नहीं जाएगा। यह आंकड़ा वाकई बेहद कम था, यदि हम यह देखें कि देश में किस कदर काला पैसा घूमता है और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में तो इसकी बड़ी भूमिका है। 'एम्बिट कैपिटल" नामक एक कंपनी का तो आकलन है कि देश में तकरीबन 30 लाख करोड़ रुपए का काला धन है। कुछ ऐसा ही अनुमान पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा काले धन पर लाए गए श्वेतपत्र में भी लगाया गया था। यहां पर अनुमानित काले धन का उल्लेख करने और इसकी मौजूदा स्कीम के तहत देशभर में काले धन के घोषित आंकड़े से तुलना करने का मकसद सिर्फ यह दर्शाना है कि चार महीने के प्रयासों से सरकार को आंशिक सफलता ही मिली है और वास्तव में वे इसकी गहराई तक नहीं पहुंचे।

इस योजना की मियाद खत्म होने से कुछ दिन पूर्व तक आयकर विभाग के अधिकारियों का यही कहना था कि यह आंकड़ा 15,000 करोड़ तक पहुंच सकता है। उन्हें लगता था कि इसके प्रति लोगों का रिस्पांस इसलिए सुस्त है क्योंकि कर व जुर्माने की दर बहुत ज्यादा है जो लोगों को अपनी छिपी हुई आय का खुलासा करने के प्रति हतोत्साहित करती है। आशंका यही थी कि इसका हश्र भी पिछले साल लाई गई योजना की तरह हो सकता है। पर संभवत: इस बार आयकर विभाग लोगों को यह समझाने में काफी हद तक कामयाब रहा कि जो लोग योजना की मियाद खत्म होने के बाद पकड़े जाते हैं, उन्हें क्या-क्या दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं। इस सदंर्भ में डिफॉल्टरों के जेल जाने और अंतहीन शर्मिंदगी झेलने संबंधी विज्ञापन भी बार-बार दिखाए गए। दूसरी ओर प्रधानमंत्री भी लोगों को यह बता रहे थे कि वे किस तरह लोगों को आयकर विभाग के छापा-राज से मुक्ति दिलाना चाहते हैं। इस तरह एक ओर फुसलाने और दूसरी ओर दंड का भय दिखाने की तरकीब अपनाने के अच्छे नतीजे मिले। सुनने में तो यह भी आया है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर भी दबाव डाला गया कि वे अपने ग्राहकों को अपनी अघोषित आय के खुलासे के लिए राजी करें।

बहरहाल, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस योजना के जरिए मोदी सरकार द्वारा लोगों से जो काला धन निकलवाया गया है, उसके चलते अर्थव्यवस्था को नुकसान भी हो सकता है क्योंकि अब मांग में काफी हद तक कमी आ सकती है। कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री देश के शहरी इलाकों में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देती है। लेकिन अब उसकी रफ्तार और सुस्त हो सकती है। किसी भी व्यवस्था से काला धन बाहर निकलवाना एक अच्छा विचार है, लेकिन इससे भविष्य में भारीभरकम चुनाव अभियानों पर कितना असर पड़ेगा। ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2014 के चुनावों में भाजपा ने 7 अरब डॉलर और कांग्रेस ने 5 अरब डॉलर की रकम खर्च की थी। क्या अब ये पार्टियां ऐसा खर्चीला चुनाव अभियान चला सकेंगी?

एक और अहम सवाल है, जिसका जवाब हमें नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा इसके बारे में समग्र ऑडिट के बगैर नहीं मिल सकता कि किस व्यक्ति ने अपनी कितनी अघोषित आय का खुलासा किया। क्या अंबानी और अडानी जैसे लोग भी इस सूची में शामिल थे? और सहारा समूह के सुब्रतो रॉय के बारे में क्या कहेंगे? क्या उन्होंने भी अपनी कुछ गुप्त संपत्तियों का खुलासा किया, जिससेउन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी कुछ राहत मिल सके? लेकिन इन स्वैच्छिक खुलासों के बावजूद हमें ऐसा कुछ भी पता नहीं चलेगा क्योंकि वित्त मंत्रालय ने पहले ही यह साफ कर दिया था कि कैग यह नहीं जांचेगा कि इस 'आय घोषणा योजना" के तहत किस व्यक्ति ने अपनी कितनी अघोषित आय की घोषणा की है। फिर हमें इस बात का भी पता नहीं चलेगा कि किस व्यक्ति ने वास्तव में कितने सच्चे खुलासे किए हैं। कैग महज इस स्वैच्छिक खुलासा योजना की प्रक्रिया का ऑडिट करेगा।

बहरहाल, यह तो कहना ही होगा कि मोदी सरकार ने इस योजना के जरिए काले धन के उन्मूलन के साथ-साथ सरकारी खजाने को मजबूती देने के लिहाज से एक अहम कदम उठाया है।

(लेखक हार्ड न्यूज मैगजीन के एडिटर इन चीफ हैं। ये उनके निजी विचार हैं)