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कितने जानवरों को टीके लगे, विभाग को पता नहीं

पटना: पशुओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एएससीएडी या ऐसकैड (पशु में बीमारियों के नियंत्रण के लिए राज्यों को सहायता) प्रोग्राम के तहत बड़ी मुहिम चलाने की योजना है. इसमें पशु टीकाकरण के अलावा पशु अस्पतालों का निर्माण, कर्मचारियों का प्रशिक्षण समेत कई अन्य महत्वपूर्ण कार्य कराने हैं. पशुओं को एचएसबीक्यू (लंगड़ी और गलाघोंटू), एफएमडी (खुरहा व मुंह पका) और पीपीआर (खासतौर से बकरियों में होनेवाली जानलेवा बीमारी) जैसे गंभीर रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण करना है.

जानवरों को इनका वैक्सीन देने के लिए बड़ी संख्या में दवाओं की खरीद की जाती है. लेकिन, इस प्रोग्राम की वास्तविक स्थिति यह है कि दो साल 2012-13 और 2013-14 के दौरान किन-किन जिलों में कितने जानवरों को कौन-कौन से टीके लगे, इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है.

टीकाकरण के बारे में 16 बिंदुओं पर स्पष्ट विवरण उपलब्ध कराने के लिए सभी पशुपालन पदाधिकारियों को पशुपालन निदेशक ने अक्तूबर में पत्र भी लिखा था, लेकिन पांच-छह जिलों को छोड़ कर अन्य किसी जिले ने आंकड़ा उपलब्ध नहीं कराया है. इसको लेकर के बाद निदेशक ने कई पत्र लिखे, लेकिन आंकड़ा मुहैया नहीं करानेवाले जिलों की संख्या अभी भी दो दर्जन से ज्यादा है. जिलों से वैक्सीन की खपत का सही हिसाब नहीं मिलने से इसकी सप्लाइ करनेवाली दो कंपनियों का पेमेंट भी दो साल से रुका हुआ है. वैक्सीन कहां-कहां, कितने पशुओं को लगाये गये, इसका स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है और जो उपलब्ध है उसके अनुसार मौजूदा पशुओं की संख्या से मेल नहीं खाता है.

हर साल करीब 10 हजार पशुओं की मौत

राज्य में एचएसबीक्यू, ऐनथ्रैक्स और एफएमडी से हर साल करीब 10 हजार पशुओं की मौत हो जाती है. इस साल कैमूर, नवादा, अरवल, पटना समेत अन्य कई जिलों से इन रोगों से पशुओं के बड़ी संख्या में पीड़ित होने की खबर आयी थी.

दो साल में मिले 84 करोड़ रुपये

ऐसकैड प्रोग्राम के तहत 2013 में 39 करोड़ और 2014 में 45 करोड़ रुपये केंद्र से आवंटित हुए हैं. यानी दो वर्ष में कुल 84 करोड़ रुपये मिले. इसमें 25 फीसदी हिस्सेदारी राज्य सरकार भी देती है. दोनों साल में कुल आवंटित राशि में से करीब 16 करोड़ रुपये टीकाकरण के लिए दिये गये हैं. इसका सटीक आंकड़ा जिलों से एकत्र करने के लिए विभाग पुरजोर कसरत कर रहा है. पिछले वर्षो में टीकाकरण के लिए आवंटित रुपये का यूटीलाइजेशन सर्टिफिकेट (यूसी) उपलब्ध नहीं कराने के कारण भी केंद्र से अतिरिक्त रुपये मिलने में देरी हो रही है. कुछ जिला पशुपालन पदाधिकारियों का कहना है कि जब वैक्सीन की खरीद का टेंडर करने से लेकर तमाम प्रक्रिया सचिवालय स्तर पर होती है, तो जिलों से इसका हिसाब मांगने का क्या मतलब है.