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कितने स्मार्ट हो पायेंगे हमारे शहर-- नारायण कृष्णमूर्ति

टेक्नोलॉजी, खासकर इंटरनेट ने हमारे कामकाज का रवैया बदल दिया है। अब घर बैठे स्मार्ट ग्रिड के जरिये निर्बाध इंटरनेट, गैस, बिजली और पानी प्राप्त करने की कल्पना सपना नहीं है। इस लिहाज से स्मार्ट सिटी का स्वागत करना चाहिए, जहां हर कोई एक-दूसरे से जुड़ा रहेगा और तमाम नागरिक सुविधाएं हासिल कर पाएगा। सोच यह है कि इन स्मार्ट नगरों को ऐसे बनाया जाए कि वे शिक्षा, रोजगार और मनोरंजन के मामले में आत्मनिर्भर हों। स्मार्ट सिटी की शुरुआत बीस शहरों से होगी।

इन नगरों में न तो बदबू होगी, न शोर, न धूल और न ही भीड़-भाड़-एक तरह से ये आदर्श नगर होंगे। अगर आप ऐसी संभावना पर हैरान हो रहे हैं, तो उनमें से एक धोलेरा पहले से ही कागजों पर मौजूद है और यह उस प्रयोग का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे आप 21वीं सदी के भारत का काल्पनिक शहर कह सकते हैं। बढ़ती हुई शहरी आबादी और इसके बोझ से कराहते कुछ बड़े शहरों के कारण हमें कुछ नए शहरों की जरूरत है। मैकेंजी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, हमें अगले एक दशक में ही 20 से 30 नए शहरों की जरूरत होगी। इस रिपोर्ट के आधार पर ही कदम उठाए गए हैं।

पिछले करीब सात दशकों में नए राज्यों एवं शहरों के निर्माण से भारत का मानचित्र बदल गया है। भिलाई, जमशेदपुर या बोकारो की सफलता के साथ इन शहरों के औद्योगिकीकरण के कारण आर्थिक मॉडल बदल रहा है। ये शहर योजनाबद्ध शहरों में शुमार किए जाते हैं, क्योंकि संयंत्रों की स्थापना से पहले वहां रोजगार एवं बुनियादी संरचनाओं का विकास हुआ।

लेकिन स्मार्ट सिटी परियोजना के बारे में ठीक यही बात नहीं कही जा सकती। इसकी सूची में शीर्ष पर भुवनेश्वर है, जिसके बाद पुणे, जयपुर, सूरत, कोच्चि, अहमदाबाद,जबलपुर विशाखापट्टनम, शोलापुर, दावनगेरे, इंदौर, नई दिल्ली, कोयंबटूर, काकीनाड़ा, बेलगाम, उदयपुर, गुवाहाटी, चेन्नई, लुधियाना और भोपाल का नंबर आता है।

इन तमाम शहरों के पास अभी एक संरचना मौजूद है। यह सफल हो सकता है, पर इसका मतलब है कि मौजूदा संरचना एवं सुविधाओं में काफी कुछ परिवर्तन करना जरूरी होगा। यदि आप दिल्ली में रहते हैं, तो आपने पुरानी दिल्ली के इलाके को नए ढंग से बनाने की योजना के बारे में सुना होगा। हालांकि यह योजना छिटपुट कार्रवाई के बाद धरी रह गई। पुराने शहर को आधुनिक संरचनाओं से लैस करने के लिए उसे पूरी तरह बदलने की जरूरत है, और जरूरी नहीं कि यह कामयाब हो ही।

गुड़गांव एवं नोएडा इसके ज्वलंत उदाहरण हैं कि कैसे योजनाएं गलत हो सकती हैं। कागज पर इन दोनों शहरों का इन्फ्रास्ट्रक्चर बहुत अच्छा है। इन दोनों नए शहरों का विकास योजनाबद्ध तरीके से हुआ है, पर उन योजनाओं का निष्पादन बेतरतीब ढंग से हुआ। इसलिए कई विचार समय से आगे होने के बावजूद उनका तत्काल कोई उपयोग नहीं हुआ, नतीजतन उनका प्रभावी ढंग से इस्तेमाल नहीं हो रहा है। मसलन, नोएडा में ट्रैफिक सिग्नल पर सौर संयंत्र का संचालन या गुड़गांव में व्यावसायिक क्षेत्र की स्थापना कल्पना के अनुरूप नहीं हो सकी। हालांकि योजनाओं की विफलता के लिए सिर्फ इन्हीं बिंदुओं को ही नहीं गिनाया जा सकता।

हमारे देश का सामाजिक ढांचा कुछ ऐसा है कि स्मार्ट सिटी से संबंधित मौजूदा योजना अमीरों के लिए ही अच्छी लगती है, जहां गरीबों के लिए विशेष आकर्षण नहीं है। इससे लोगों के बीच संभवतः असमानता बढ़ेगी ही और समाज का वंचित तबका खुद को और हाशिये पर पाएगा।

देश के मौजूदा 50 शीर्ष शहरों की अगर ईमानदारी से देखरेख की जाए, तो वे आबादी के एक बड़े हिस्से को आरामदायक जीवन का माहौल प्रदान करने में सक्षम होंगे। अगर एकजुटता होती है, तो सही तकनीकी समाधान का प्रवाह सहज होता है। इस अर्थ में प्रौद्योगिकी स्मार्ट सिटी की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। हालांकि अभी मौजूदा स्मार्ट सिटी के प्रबंधन से संबंधित दिशा-निर्देश का खुलासा नहीं हुआ है, पर एक बार जब वे सामने आएंगे, तो इस सपने को साकार करने में उपयोगी होंगे।

एक स्मार्ट सिटी वह है, जहां एक ही क्षेत्र में रिहायशी और व्यावसायिक भवन हैं और सतत गतिशीलता है। यह एक ऐसी जगह है, जहां दूरदृष्टि तकनीकी से पहले आती है और मौजूदा सरकार नए शहर में से प्रत्येक में बदलाव लाने के लिए एक दूरदृष्टि वाली योजना के साथ आगे बढ़ रही है। स्मार्ट वह है, जो आज यूरोप में हो रहा है, जहां शीर्ष 50 शहरों को समृद्ध बुनियादी ढांचे या सार्वजनिक एवं गैर-मोटर चालित परिवहन व्यवस्था के बनाया जा रहा है। इसमें सही तकनीकी का चुनाव भी शामिल है, लेकिन यह केंद्र और राज्य की दृढ़ एकजुटता के आधार पर स्मार्ट दृष्टि से प्रेरित होता है।

धन की व्यवस्था, जो आम तौर पर बड़ी परियोजनाओं के लिए एक बड़ी बाधा होती है, अभी कोई बड़ा मुद्दा नहीं दिख रही है। भारत दौरे पर आए सिंगापुर के विदेश मंत्री के शणमुगम ने एक स्मार्ट सिटी बनाने का प्रस्ताव दिया। ब्रिटिश चांसलर जॉर्ज ऑसबोर्न ने भी भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश करने वाली ब्रिटिश कंपनियों के एक अरब पाउंड के क्रेडिट लाइन का विस्तार किया है। अच्छी बात है कि कई अन्य देशों से भी स्मार्ट सिटी विकसित करने के प्रस्ताव आ रहे हैं।

बेशक स्वास्थ्य सेवा, खाद्य, बिजली, शिक्षा के मोर्चे पर काफी कुछ करने की जरूरत है, पर स्मार्ट सिटी इन सभी को संभव बनाने में अग्रणी भूमिका निभा सकती है। इसलिए स्मार्ट सिटी परियोजना को विवेकपूर्ण ढंग से तैयार करना चाहिए, जिसमें स्थानीय आबादी का ख्याल रखना महत्वपूर्ण है। इस बारे में भी सजग रहना होगा कि पहले से ही ग्रामीण एवं शहरी वर्ग के बीच की खाई और चौड़ी न हो। जिस तरह स्मार्टफोन ने नगरों एवं छोटे शहरों के लोगों का जीवन बदल दिया, हो सकता है कि स्मार्ट सिटी भी देश के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।

-लेखक आउटलुक मनी के संपादक हैं