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Resource centre on India's rural distress
 
 

किराये की कोख और नागरिकता का प्रश्न--ऋतु सारस्वत

केंद्र सरकार ने कहा है कि वह विदेशियों के लिए किराये पर कोख (सरोगेसी) के कारोबार पर रोक लगाने के पक्ष में है। केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर कहा कि वह देश में 'कमर्शियल सरोगेसी' के चलन को अवैध घोषित करने की तैयारी कर रहा है। हाल में विदेश व्यापार निदेशालय ने 2013 का अपना वह नोटिफिकेशन वापस ले लिया था, जिसमें सरोगेसी के लिए भू्रण के मुफ्त आयात को इजाजत दी गई थी। बीते कुछ वर्षों में सरोगेसी के जरिये बच्चा पाने वालों की तादाद में बढ़ोतरी भी हुई है।

शुरुआती दौर में सरोगेसी उन मांओं का सहारा बनी थी, जो चिकित्सकीय कारणों के चलते गर्भधारण नहीं कर पाती थी, पर धीरे-धीरे यह व्यवसायीकरण की उस स्थिति में पहुंचा कि आज देश में सरोगेसी का कारोबार नौ अरब डॉलर के पार पहुंच चुका है। आईवीएफ क्लिनिक तमाम चिकित्सकीय सुविधा देने का वादा करते हैं। जिनके बच्चे नहीं हो रहे हैं, उनके सामने ढेर सारे विकल्प रखे जाते हैं। बावजूद इसके डीएनएन के न मिलने और बच्चे छोड़ देने के कई मामले सामने आ रहे हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के 2012 के अध्ययन के अनुसार, फिलहाल भारत में ऐसे 3,000 प्रजनन क्लिनिक हैं। फिर एक मामले में यह भी उजागर हुआ कि दिल्ली के 300 क्लिनिक्स में सिर्फ 39 पंजीकृत हैं। इस पूरे मसले में सबसे ज्यादा तकलीफ किराये की मां को सहनी पड़ती है। न तो उन्हें प्रक्रिया की जानकारी होती है, न ही वे मोल-भाव करने की स्थिति में होती हैं। सफलता की चाह में चिकित्सालय उनकी जिंदगी दाव पर लगा देते हैं। अध्ययन बताते हैं कि ग्राहक से ज्यादा पैसे लेकर सरोगेट मां को कम दिया जाता है।

 

सरोगेसी के व्यवसाय ने बच्चे के सुरक्षित भविष्य का सवाल भी खड़ा किया है। वह विदेशी दंपत्ति, जो भारतीय महिला की कोख से अपने बच्चे को जन्म देते हैं और अगर उस अवधि में किन्हीं कारणों के चलते और अलग हो जाते हैं, तो बच्चे का उत्तरदायित्व किसका होगा? अगर दोनों ने ही उसे लेने से मना कर दिया, तो उस बच्चे के भविष्य का क्या होगा? सस्ती तकनीक, अच्छे डॉक्टर और स्थानीय महिलाओं के उपलब्ध होने के कारण भारत उन देशों में है, जहां महिला बिना कानूनी अड़चनों के दूसरे के बच्चे को जन्म दे सकती है। शोध यह बताते हैं कि गर्भावस्था में मां की मानसिक और शारीरिक स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव बच्चे के विकास पर पड़ता है। सीधे शब्दों में बच्चे की शारीरिक व मानसिक पृष्ठभूमि कोख में निर्मित होती है, ऐसी परिस्थिति में क्या यह सुनिश्चित कर पाना संभव है कि मां के गर्भ से स्वस्थ संतान उत्पन्न होगी, क्योंकि आर्थिक कारणों के चलते जो महिलाएं अपनी कोख किराये पर देने का निर्णय लेती हैं, उनका मानसिक दबाव समझा जा सकता है। यह घोर व्यवसायीकरण किसी के हित में नहीं है। 
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)