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किसके अच्छे दिन लाएगा बजट- उपेन्द्र प्रसाद

आगामी बजट सही मायने में नरेंद्र मोदी सरकार का पहला बजट होगा, क्योंकि अरुण जेटली द्वारा पेश किया गया पिछला बजट उनके पूर्ववर्ती यूपीए के वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा कुछ महीने पहले पेश किए गए अंतरिम बजट का ही विस्तार था। इस बजट पर देश और दुनिया की निगाहें लगी हुई हैं और लोग देखना चाह रहे हैं कि मोदी सरकार आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था को किस दिशा में ले जाना चाह रही है। सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने योजना आयोग को समाप्त कर उसकी जगह नीति आयोग का गठन किया है। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, डाइरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर और वैसे ही अनेक जुमले हवा में तैर रहे हैं। इन जुमलों में छिपे उद्देश्यों को जमीन पर उतारने के लिए सरकार क्या करती है, इसका पता अगले बजट से लग जाएगा।

पिछला सत्र समाप्त होने पर केंद्र सरकार ने अनेक कानून अध्यादेशों के मार्फत बना डाले थे। सांविधानिक बाध्यता के कारण उन अध्यादेशों को संसद से छह सप्ताह के भीतर पारित कराना होगा, अन्यथा वे निष्प्रभावी हो जाएंगे। जाहिर है, आज से शुरू हो रहे इस सत्र में बजट के साथ-साथ अन्य आर्थिक कानूनों पर भी राजनीतिक घमासान होगा, और राज्यसभा में केंद्र सरकार का अल्पमत होना विपक्ष को उस पर हावी होने का मौका प्रदान करता रहेगा। भूमि अधिग्रहण कानून सबसे ज्यादा ताप पैदा कर सकता है, क्योंकि अन्ना हजारे ने किसानों से जुड़े इस मसले पर आंदोलन शुरू कर दिया है। लिहाजा संसद से बाहर की राजनीतिक गर्मियां भी सदन के माहौल को गर्म रखने का काम करेंगी।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त का असर आगामी बजट पर पड़ सकता है। सत्ता में आने के बाद एक जन धन योजना को छोड़ सरकार की अधिकांश घोषणाएं कॉरपोरेट क्षेत्र और बड़े व्यावसायिक घराने को लाभ पहुंचाने से ही संबंधित थीं। दिल्ली चुनाव में इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। इसलिए सामान्य समझ तो यही कहती है कि अपनी बन रही इस छवि को तोड़ने का प्रयास करते हुए सरकार एक संतुलित बजट पेश करने की कोशिश करेगी। पर दिल्ली चुनाव हारने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बयान दे डाला था कि उसके नतीजे से केंद्र सरकार का सुधार एजेंडा प्रभावित नहीं होगा। इससे संदेश यही जा रहा है कि बजट में सरकार अपना कथित सुधार एजेंडा लागू करेगी, जो तात्कालिक रूप से अमीरों का पक्ष लेता दिखाई देता है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमत ने वित्त मंत्री का काम आसान कर दिया है। तेल बिल में कमी आई है और राजकोषीय घाटा बेलगाम नहीं हो पाया है, अन्यथा राजस्व उगाही के मोर्चे पर आ रही कठिनाइयां बजट को गड़बड़ा देतीं। शेयर बाजार के ऊंचे सूचकांक और कुछ सरकारी कंपनियों के शेयरों की बिक्री से हुई आमदनी ने भी राजकोष को कुछ सुदृढ़ बनाया है। कच्चे तेल में जारी गिरावट ने थोक मूल्य सूचकांकों के आधार पर तैयार मुद्रास्फीति की दर भी कम कर डाली है। इस कारण वित्त मंत्री कीमतों के मोर्चे पर अपनी बजट तैयारी में संघर्ष करते हुए नहीं दिखाई दे रहे। पर उपभोग की आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में हो रही वृद्धि को ध्यान में रखना जरूरी है।

आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू होने के साथ ही देश में कर व्यवस्था में सरलता लाने के प्रयास चल रहे हैं। आय कर जमा करने के फॉर्म तक का नाम 'सरल' रख दिया गया था। इसके बावजूद कर प्रशासन में सरलता अभी दूर की कौड़ी है। प्रत्यक्ष कर व्यवस्था के लिए डाइरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) और अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के लिए गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के प्रावधानों को लाने की बात पिछले कई वर्षों से चल रही है, पर उनके अमल का इंतजार अभी समाप्त नहीं हो रहा है। डीटीसी से संबंधित कोई बड़ी घोषणा वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में कर सकते हैं।

'मेक इन इंडिया' एक बेहद महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत मोदी सरकार भारत को वैश्विक उत्पादन का एक बड़ा केंद्र बनाना चाहती है, पर यह तभी संभव है, जब यहां उत्पादन लागत कम हो। सस्ता श्रम लागत कम करने का एक कारक हो सकता है, लेकिन अन्य कई कारक हमारे देश में उत्पादन लागत महंगा करने का काम करते हैं, जिसमें सबसे बड़ा फैक्टर भ्रष्टाचार है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक ईमानदार स्वीकारोक्ति की थी कि नई आर्थिक नीतियों के कारण भ्रष्टाचार बढ़ गए। अनेक नीतियों में भ्रष्टाचार के बीज पाए जाते हैं। सवाल उठता है कि क्या भ्रष्टाचार को नीति के स्तर पर ही समाप्त करने की कोशिश इस बजट में सरकार कर पाएगी।

भूमि अधिग्रहण कानून सरकार के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत का कारण है। यदि आप औद्योगिक उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, और दुनिया भर के उत्पादकों को अपने यहां आमंत्रित कर रहे हैं, तो उन्हें उद्योग की स्थापना के लिए जमीन भी देनी होगी। लेकिन पिछली सरकार ने एक ऐसा भूमि अधिग्रहण कानून बना दिया है, जिससे उद्यमियों को जमीन मिलना अत्यंत ही कठिन हो गया। मोदी की स्मार्ट सिटी परियोजना भी जमीन अधिग्रहण कानून के कारण बहुत आगे बढ़ती नहीं दिखाई देती। कानून बदलने के लिए जो अध्यादेश जारी किया गया है, उससे देश की ग्रामीण शांति भी भंग हो सकती है। जाहिर है, उस ओर सरकार को अपने कदम फूंक-फूंककर बढ़ाने होंगे। प्राप्त संकेतों के अनुसार सरकार बीच का रास्ता अपनाना चाह रही है। वह बीच का रास्ता क्या है, इसका पता इस बजट सत्र में लग जाएगा।

अच्छे दिन लाने के वायदे के साथ मोदी सरकार ने सत्ता पाई है। इस बजट में देश के लोग अच्छे दिनों की तलाश करते देखे जाएंगे। अलग-अलग तबकों के लिए अच्छे दिनों की परिभाषा भी अलग-अलग है। एक का अच्छा दिन दूसरे के खराब दिनों का कारण हो सकता है। बजट द्वारा एक साथ सबको खुश कर देना एक असंभव काम है। देखना दिलचस्प होगा कि मोदी सरकार का अगला बजट किसके लिए अच्छे दिनों का पैगाम लेकर आता है।