Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/किसके-कब्जे-में-हैं-विश्वविद्यालय-रविभूषण-13008.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | किसके कब्जे में हैं विश्वविद्यालय-- रविभूषण | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

किसके कब्जे में हैं विश्वविद्यालय-- रविभूषण

इस वर्ष आठ फरवरी को पंकज चंद्रा (कुलपति, अहमदाबाद विवि) की पुस्तक 'बिल्डिंग यूनिवर्सिटीज दैट मैटर: ह्वेयर आर इंडियन इंस्टीट्यूशंस गोइंग रॉन्ग' ओरिएंट ब्लैकवासन से प्रकाशित हुई है.


भारतीय विश्वविद्यालयों की कार्य-पद्धति को समझने के लिए और क्या उसे बदलने की जरूरत भी है, इसे जानने-समझने के साथ इस पर विचार करने के लिए यह एक जरूरी पुस्तक है, जिसे प्रत्येक विवि के कुलपति और उसके प्रमुख अधिकारियों को अवश्य पढ़ना चाहिए. पंकज चंद्रा आइआइएमबी के प्रोफेसर, आइआइएम के निदेशक और यशपाल कमेटी के एक सदस्य थे.


अहमदाबाद एजुकेशन सोसाइटी देश के कुछ गिने-चुने निजी एजुकेशन सोसाइटी में है. इस सोसाइटी की स्थापना 1935 में गणेश मावलंकर, कस्तूरभाई लालभाई और अमृतलाल हरगोविंद दास के नेतृत्व में हुई थी.


वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में गुजरात को शिक्षा के स्तर पर विकसित करने की जरूरत समझी थी. उनकी प्रेरणा से इस सोसाइटी ने शिक्षा के क्षेत्र में गुजरात में बड़े कार्य किये. साल 1949 में गुजरात यूनिवर्सिटी की स्थापना में इसकी बड़ी भूमिका थी. इस सोसाइटी ने आर्ट्स, साइंस, कॉमर्स, इंजीनियरिंग, फार्मेसी, आर्किटेक्चर, मैनेजमेंट आदि कई कॉलेजों की स्थापना की. अभी इस ट्रस्ट के द्वारा छह स्कूल, दस कॉलेज, चार प्रमुख संस्थानों के अतिरिक्त अन्य शैक्षिक संस्थाएं कार्यरत हैं.


अहमदाबाद एजुकेशन सोसाइटी द्वारा स्थापित अहमदाबाद विवि एक निजी विवि है, जिसकी स्थापना 2009 में हुई थी. इसका देश के विश्वविद्यालयों में 236वां रैंक है.


भारत के कई निजी विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रोफेसर हैं, उनकी कल्पना राज्य विश्वविद्यालयों के ही नहीं, कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति भी नहीं कर सकते, जो अपने यहां योग्यता के अतिरिक्त नियुक्ति में, और सब कुछ को महत्व देते हैं.

अहमदाबाद विवि के कई स्कूलों में से एक 'स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड साइंस' में श्रेणिक लालभाई चेयर प्रोफेसर और गांधी विंटर स्कूल के निदेशक के रूप में सुप्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा को कुलपति पंकज चंद्रा ने नियुक्त किया था. 'स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड साइंस' निर्माणावस्था में है.


इसके पांच विभागों में से एक विभाग मानविकी और भाषा का है, जिसमें कुलपति ने रामचंद्र गुहा को नियुक्त किया था. पिछले वर्ष 2017 में इस स्कूल का डीन पैट्रिक फ्रेंच को बनाया गया, जो पहले कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के आर्ट्स, सोशल साइंस और ह्यूमैनिटीज के रिसर्च सेंटर के विजिटिंग फेलो थे और इस वर्ष कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के इमैनुएल कॉलेज के विजिटिंग फेलो हैं.


वे प्रमुख इतिहासकार हैं. 16 अक्तूबर को रामचंद्र गुहा की नियुक्ति की घोषणा अहमदाबाद विवि ने की और मात्र तीन दिन बाद एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) ने विवि के अधिकारियों को इस नियुक्ति पर पुनर्विचार करने को कहा. एबीवीपी के अनुसार, गुहा का लेखन भारतीय संस्कृति और परंपरा के विरुद्ध है. इस नियुक्ति के विरुद्ध प्रदर्शन भी हुआ. एबीवीपी के अनुसार, विवि में बुद्धिजीवियों की जरूरत है, 'देशद्रोहियों' की नहीं. उसके अनुसार, गुहा जैसे लोग 'अर्बन नक्सल' हैं. मुख्य आरोप यह है कि गुहा वामपंथी हैं.


'अगर गुहा को गुजरात में बुलाया जाता है, तो जेएनयू की तरह यहां भी राष्ट्रविरोधी भावनाएं पनप जायेंगी.' उन्हें इस पर एतराज है कि गुहा की किताबें भारत की हिंदू संस्कृति की आलोचना करती हैं. आलाेचना तार्किक और बौद्धिक स्तर पर की जाती है. आलोचना करना न कोई गुनाह है, न अपराध. आलोचना न करनेवाला या तो दास है या गुलाम.


रामचंद्र गुहा सुप्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार हैं, स्तंभ लेखक हैं. 'हिंदुस्तान टाइम्स' और 'टेलीग्राफ' में उनका स्तंभ प्रकाशित होता है. सामाजिक, पर्यावरणीय, राजनीतिक, समकालीन इतिहासकार और क्रिकेट इतिहासकार के रूप में उनकी शोहरत है.


उन्हें भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया है. वे गांधी के आधिकारिक जीवनी लेखक हैं. वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में विजिटिंग पोजिशन पर रहे हैं.


आजादी की 60वीं वर्षगांठ पर (2007) उनकी पुस्तक प्रकाशित हुई थी- 'इंडिया आफ्टर गांधी : द हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी' और इस वर्ष उनकी पुस्तक आयी है- 'गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड, 1914-1948.' रामचंद्र गुहा ने एक नवंबर को ट्वीट कर अहमदाबाद विवि में ज्वॉइन न करने की बात कही है. दो नवंबर को गुहा ने कहा कि गांधी का जीवनी लेखक गांधी के शहर (अहमदाबाद) में गांधी पर कोर्स नहीं पढ़ा सकता है. उन्होंने कहा है कि वे शब्दों से तर्क करते हैं, हथियारों से नहीं. वे किसी से भी संवाद और बहस करने के इच्छुक हैं और किसी से भयभीत नहीं हैं.


आरएसएस, भाजपा और आरएसएस के सभी अानुषांगिक संगठन ही क्या केवल राष्ट्रप्रेमी हैं? क्या इस देश में जो इनके विरुद्ध है, वह राष्ट्रद्रोही है?


विवि क्या किसी एक संगठन, एक राजनीतिक दल और एक राजनीतिक विचारधारा के कब्जे में रहे? जेएनयू में मानद प्रोफेसर के रूप में अभी वहां के कुलपति ने राजीव मल्होत्रा और स्वप्नदास गुप्ता को नियुक्त किया.


जेएनयू में कई छात्र-संगठन हैं. क्या किसी ने एक का विरोध किया? जब निजी विवि में भी दखल है, तो जो भी केंद्रीय और राज्य विवि हैं, उनमें तो दखल ही दखल है. सत्ता सदैव किसी के पास नहीं रहती, इसे सब जानते हैं. शायद समझते भी हों.