Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/किसके-हक-में-वंदना-शिवा-4127.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | किसके हक में- वंदना शिवा | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

किसके हक में- वंदना शिवा

तमिलनाडु के कुडनकुलम में बन रहे परमाणु बिजली संयंत्र के विरोध ने एक बार फिर परमाणु ऊर्जा को लेकर पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने संयंत्र को पूरी तरह सुरक्षित बताया है, लेकिन परमाणु सुरक्षा का मसला सिर्फ विशेषज्ञों द्वारा तय किया जाने वाला मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक लोकतांत्रिक मुद्दा है। यह पारिस्थितिकी से जुड़ा ऐसा मुद्दा है, जिसमें प्रकृति की अनिश्चितता और उसकी शक्ति पर गौर करना जरूरी है।

दरअसल कुछ महीने पहले हुए जापान के फुकुशिमा संयंत्र में हुए हादसे ने मानवीय भ्रम और मानवीय कमजोरी से संबंधित सवालों को उठाया है। इसके बाद से प्रकृति और मनुष्य के संबंधों को लेकर बहस तेज हुई है। इसने जलवायु और ऊर्जा संकट के समाधानों के रूप में कथित ‘परमाणु पुनर्जागरण’ के विचार पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) का कहना है कि परमाणु पुनर्जागरण संभव है, लेकिन यह रातोंरात नहीं हो सकता। परमाणु परियोजनाओं को कई अहम समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें निर्माण में देरी और उससे जुड़े जोखिम, लाइसेंसिंग की लंबी प्रक्रिया और जनशक्ति की कमी के अलावा कचरा निष्पादन, परमाणु प्रसार और स्थानीय लोगों के विरोध से जुड़े मुद्दे शामिल होते हैं। नए परमाणु बिजली संयंत्र के लिए धन की व्यवस्था, खासकर उदारीकृत बाजार व्यवस्था में हमेशा चुनौतीपूर्ण रही है और वित्तीय संकट हमेशा बना रहता है।

परमाणु पुनर्जागरण के लिए प्रति सप्ताह 300 रिएक्टर और हर वर्ष दो से तीन यूरेनियम संवर्द्धन संयंत्र की आवश्यकता होगी। यदि इस्तेमाल किए गए ईंधन को पृथक किया जाए, तो इससे प्रतिवर्ष 90 हजार प्लूटोनियम बम बनाए जा सकते हैं। इसके लिए प्रतिदिन एक से दो करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होगी। वास्तव में जीवाश्म ईंधन, कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और मौसम परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित होने के कारण अचानक ‘स्वच्छ’ और ‘सुरक्षित’ ईंधन के रूप में परमाणु ऊर्जा की ओर ध्यान बढ़ा है।

पूरे देश भर में नए और पुराने परमाणु ऊर्जा संयत्रों के खिलाफ आंदोलन बढ़ रहे हैं। हरिपुर (पश्चिम बंगाल), मिठी विरदी (गुजरात), मधबन (महाराष्ट्र), पित्ति सोनापुर (उड़ीसा), चुटका (मध्य प्रदेश) और कवाडा (आंध्र प्रदेश) में परमाणु ऊर्जा संयंत्र प्रस्तावित हैं। महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के मधबन गांव का छह परमाणु रिएक्टरों वाला 9,900 मेगावाट का जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र अगर बनकर तैयार हो गया, तो यह दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र होगा।

दूसरी ओर हम देखें तो, जैतापुर का इलाका भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील है। संयंत्र द्वारा हर वर्ष निकलने वाले 300 टन परमाणु कचरे के निपटारे की कोई योजना नहीं है। इस संयंत्र के लिए पांच गांवों की 968 हेक्टेयर उपजाऊ कृषि भूमि की जरूरत होगी। सरकार जमीन के ‘बंजर’ होने का दावा कर रही है। रायगढ़, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिले की तटीय उपजाऊ भूमि पर प्रस्तावित कई परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में से एक है जैतापुर संयंत्र। इसकी संयुक्त ऊर्जा उत्पादन क्षमता 33,000 मेगावाट होगी। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे भारत सरकार यूनेस्को के मानव एवं जैवमंडल कार्यक्रम के तहत विश्व विरासत क्षेत्र घोषित करने वाली है।

परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञ डॉ सुरेंद्र गडावर का कहना है कि परमाणु ऊर्जा एक ऐसी तकनीक है, जो भारी मात्रा में विषैला पदार्थ उत्पादित करती है, जिसे वातावरण से अलग करने में काफी समय लगता है। परमाणु कचरे के रूप में उत्पादित प्लूटोनियम की हाफ लाइफ (किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के नष्ट होने का पैमाना) 2,40,000 वर्ष है, यानी इतने वर्षों तक इसके विकिरण का खतरा होता है, जबकि परमाणु रिएक्टरों की औसत आयु मात्र 21 वर्ष है। परमाणु कचरे के निपटारे के लिए कोई सुरक्षित प्रणाली नहीं है। इस्तेमाल किए गए परमाणु ईंधन को लगातार ठंडा करना पड़ता है औैर अगर कूलिंग सिस्टम (शीतलन प्रणाली) नाकाम होता है, तो परमाणु हादसा हो जाता है।

फुकुशिमा के चौथे रिएक्टर में इसी वजह से हादसा हुआ था। प्लूटोनियम केवल परमाणु कचरा ही नहीं है, बल्कि यह परमाणु हथियारों का सामरिक संसाधन भी है। दुनिया भर में असैन्य प्लूटोनियम का भंडार 230 टन से भी ज्यादा है। जबकि एक परमाणु हथियार बनाने के लिए कुछ ही किलोग्राम प्लूटोनियम पर्याप्त है।

यदि इस्तेमाल किए गए ईंधन के शीतलन पर खर्च ऊर्जा का हिसाब लगाया जाए, तो परमाणु ऊर्जा उत्पादन से ज्यादा ऊर्जा खपत करने वाली तकनीक है। भारत में परमाणु ऊर्जा की लागत इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए भूमि अधिग्रहण और लोगों का विस्थापन होता है। भारत में परमाणु ऊर्जा की कीमत लोकतंत्र और सांविधानिक अधिकारों के हनन से जुड़ी है। इसे हम भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के सिलसिले में संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कैश फॉर वोट कांड के रूप में देख चुके हैं।

भौतिक विज्ञानी सौम्या दत्ता हमें याद दिलाती है कि दुनिया के पास 17 टेरा वाट परमाणु ऊर्जा, 700 टेरावाट पवन ऊर्जा और 86,000 टेरावाट सौर ऊर्जा की क्षमता है। परमाणु ऊर्जा के ये विकल्प हजार गुना ज्यादा और लाखों गुना जोखिम रहित हैं।