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किसान आंदोलन: आक्रोश से क्यों उबल रहा है अन्नदाता?

पथरायी आंखों से आकाश की तरफ टकटकी लगाकर देखता किसान और उसके पैरों के नीचे पानी को तरस में टुकड़े-टुकड़े होती जमीन! याद कीजिए कि किसानों की निरीहता की सूचना देती यह तस्वीर आपके जेहन में कितने सालों से दर्ज है?

किसानी की यह तस्वीर आपकी आंखों के आगे कुछ और तस्वीरों को नुमायां करेगी. और बहुत मुमकिन है कि नुमायां होने वाली यह तस्वीर अपने खेत में लगे किसी पेड़ या घर में टंगी किसी खूंटी पर रस्सी बांधकर गले में फंदा डाल आत्महत्या कर लेने वाले किसान की हो.


बीते बीस सालों से ऐसी तस्वीरें बहुतायत में छपी हैं, आंखें ऐसी तस्वीरों को देखने की इतनी अभ्यस्त हो चली हैं कि अब उनको कोई खटका नहीं होता, दिल को पहले सा कोई सदमा नहीं पहुंचता.

निरीहता को झुठलाते किसान

किसानों की निरीहता की झलक दिखलाती ऐसी तस्वीर को महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के किसानों ने फिलहाल झुठला दिया है. दोनों ही सूबों में किसानों का आक्रोश जून की गर्मी की तरह उबाल पर है.

सड़कों पर दूध बहाया जा रहा है, शहर की मंडियों में सब्जियों की आवक ठप्प है. कहीं इसे हड़ताल का नाम दिया जा रहा है जैसे महाराष्ट्र का नासिक और अहमदनगर तो कहीं इसे सड़क-जाम, तोड़फोड़ और आगजनी पर उतारू हिंसक भीड़ के नाम से याद किया जा रहा है जैसे कि मध्यप्रदेश के धार, देवास, झाबुआ, मंदसौर, उज्जैन, रतलाम और नीमच जिले.

खबर आई है कि मध्यप्रदेश में प्रतिरोध पर उतारू 6 किसान मारे गये हैं, वहां शासन सकते में है. उसने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं लेकिन उसे सूझ नहीं रहा कि मारे गये किसानों के बारे में क्या कहे. मध्यप्रदेश की पुलिस कह रही है, फायरिंग हमने नहीं की. सूबे के गृहमंत्री भी यही कह रहे हैं. प्रतिरोध करते किसानों पर फायरिंग चाहे जिसने की हो, एक बात एकदम पक्की है. किसान अपनी हालत को लेकर आक्रोश में उबल रहे हैं.

 फर्स्टपोस्ट पर प्रकाशिच चंदन श्रीवास्तव की इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें