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किसान आंदोलन : किसने क्या खोया, क्या पाया?

भोपाल। दस दिन चले हिंसक किसान आंदोलन ने मध्यप्रदेश के साथ-साथ पूरे देश को झकझोर दिया है। इस आंदोलन ने सूबे के मुखिया से लेकर प्रशासन, विपक्ष और जनता को भी कुछ संदेश दिए हैं। पेश है नईदुनिया की रिपोर्ट...

किसान : थम्स अप

फसल की लागत मूल्य और कर्ज माफी के लिए शुरू हुआ आंदोलन कई मुद्दों पर लगभग सफल रहा है। शिवराज ने फसल को समर्थन मूल्य से नीचे नहीं बिकने देने की घोषणा की, जो किसानों के लिए बड़ी सफलता है। इसके अलावा मूल्य स्थिरीकरण आयोग, कर्ज के ब्याज की माफी जैसे फैसले भी किसानों को बड़ी राहत देंगे। हिंसक घटनाओं को छोड़ दें तो किसानों ने अपनी ताकत भी दिखा दी।

सरकार : थम्स डाउन

पूरे आंदोलन में सरकार की किसान हितैषी छवि को बड़ा नुकसान पहुंचा। मप्र्र सरकार पूरे देश में किसानों के नाम पर ढिंढोरा पीटती थी, लेकिन आंदोलन से जमीनी समस्या के साथ-साथ यह भी उभरकर सामने आया कि कहीं न कहीं दोनों पक्षों के बीच संवादहीनता की स्थिति बन गई है। इसके अलावा आंदोलन की गंभीरता को समझने में भी सरकार से बहुत बड़ी चूक हो गई।

प्रशासन : थम्स डाउन

किसानों के प्रदर्शन से प्रदेश में बुरी तरह चरमरा चुकी प्रशासनिक व्यवस्था भी उजागर हुई। इंटेलीजेंस, पुलिस और जिला प्रशासन स्तर पर कई खामियां सामने आईं। प्रदेश के प्रशासनिक और पुलिस के मुखिया भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं। अधिकारियों ने न मंत्रालय स्तर पर सक्रियता दिखाई और न ही स्थानीय स्तर पर। सबने इसे हल्के में लिया।

भाजपा : थम्स डाउन

जिस इलाके में आंदोलन शुरू हुआ, वहां का कोई भाजपा नेता न तो मैदान में उतरा और न ही पार्टी का कोई बड़ा नेता सामने आया। मुख्यमंत्री अकेले पड़ते दिखे। पूरे आंदोलन में किसान मोर्चा की भूमिका न के बराबर रही। आलाकमान के संदेश के बाद कुछ नेता मुख्यमंत्री के साथ खड़े हुए। संगठन के अंतिम छोर तक मैनेजमेंट की कलई खुल गई, क्योंकि पार्टी नेताओं को भी आंदोलन की गंभीरता का पता नहीं चला।

विपक्ष : थम्स डाउन

इतने बड़े आंदोलन के बाद भी विपक्ष न तो दमदारी से खड़ा दिखाई दिया और न ही सरकार के लिए मुसीबत बन सका। भाजपा और सरकार के नेताओं ने जरूर कांग्रेस का नाम लेकर उसे तवज्जो दे दी। गोलीकांड के बाद राहुल गांधी का दौरा भी विपक्ष में जान फूंकने में नाकाम रहा। सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए कांग्रेस के पास प्लानिंग की कमी साफ तौर पर नजर आई।

प्रदेश : थम्स डाउन

यात्रियों से भरी बसों में जिस तरह पथराव हुए, उससे पूरे देश में मप्र को लेकर एक गलत संदेश गया। मप्र हमेशा शांति का टापू माना जाता रहा है, लेकिन इस हिंसक आंदोलन ने प्रदेश की इस छवि पर बड़ा दाग लगाया है। किसान आंदोलन के नाम पर प्रदेश में असामाजिक तत्व भी सक्रिय हुए। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश बदनाम हुआ।