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किसान-उपभोक्ता के बीच उलझी कृषि- डा भरत झुनझुनवाला

बताया गया था कि डब्ल्यूटीओ संधि के लागू होने पर कृषि निर्यात बढ़ेंगे और किसानों के लिए नये मौके खुलेंगे. लेकिन आयातों से किसान घरेलू बाजारों से भी वंचित हो रहे हैं. इसलिए डब्ल्यूटीओ संधि नहीं, बल्कि सरकार की कृषि नीति जिम्मेवार है. आगामी चुनाव में किसानों का वोट हासिल करने को पार्टियों में होड़ लगी हुई है. किसानों को ऋण एवं अन्य सुविधाएं देने का वायदा किया जा रहा है. ये सुविधाएं वास्तव में किसानों के लिए भटकाव हैं. किसान के हित का असल मुद्दा कृषि उत्पादों का दाम है. मुद्दा आयात-निर्यात नीति से जुड़ा हुआ है. अब तक की नीति रही है कि जब कृषि उत्पादों के घरेलू दाम ऊंचे होते हैं और इनसे किसानों को लाभ मिलने को होता है तो इनका आयात बंद कर दिया जाता है. 

बाजार में दाम गिर जाते हैं और किसान मिलनेवाले लाभ से वंचित रह जाता है. दूसरी तरफ जब उत्पादन जादा होता है और घरेलू दाम न्यून होते हैं, तो कृषि उत्पादों के निर्यात की छूट नहीं दी जाती है. निर्यात कर दें, तो घरेलू दाम बढ़ जायेंगे और किसान घाटे से बच जायेगा. आगामी चुनाव में किसानों का मुद्दा आयात-निर्यात नीति का होना चाहिए न कि ऋण उपलब्धि जैसे विषय का.

बढ़ती कीमतों को लेकर उपभोक्ता परेशान रहता है. परंतु वह भूल रहा है कि कुल मिलाकर कृषि उत्पादों का आयात-निर्यात उपभोक्ता के हित में है. देश में खाद्य तेल और दाल की उत्पादन लागत ज्यादा आती है. इनका भारी मात्र में आयात हो रहा है, जिससे इनके दाम नियंत्रण में हैं. यदि हम विश्व बाजार से जुड़ते हैं, तो हमे टमाटर प्याज के दाम ज्यादा देने होंगे, जबकि तेल और दाल में राहत मिलेगी. ऐसे में उपभोक्ता के लिए तेल और दाल ज्यादा महत्वपूर्ण है. अत: टमाटर, प्याज के ऊंचे दाम को वहन करना चाहिए. ध्यान रहे कि सब्जियों की मूल्यवृद्घि अल्पकालिक होती है, जबकि तेल, दाल की मूल्यवृद्घि दीर्घकालिक.

सरकार ने कृषि उत्पादों के निर्यात पर बार-बार प्रतिबंध लगाये हैं. साथ-साथ किसानों को कई सब्सिडी दी है. यह नीति आत्मघातक है. इससे हमारी कृषि लगातार अकुशल बनी हुई है और उपभोक्ता महंगा माल खरीदने को मजबूर है. सरकार ने 2007 में गेहूं और 2008 से गैर बासमती चावल पर लंबे समय के लिए प्रतिबंध लगाये हैं. इससे घरेलू दाम नियंत्रण में रहे. परंतु लंबे समय में यह हानिप्रद रहा है, चूंकि किसान आधुनिक तरीकों को नहीं अपना पा रहा है. पुराने तरीकों से खेती से देश में उत्पादन लागत लगातार ऊंची बनी हुई है. सरकार द्वारा फर्टीलाइजर, बिजली और सिंचाई पर सब्सिडी दी जा रही है. इससे अल्पकाल में दाम न्यून बने हुए हैं, परंतु प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है.

आर्थिक सुधारों को लागू करते समय सोच यह थी कि कृषि सब्सिडी में कटौती करके बुनियदी सुविधाओं या रिसर्च में निवेश बढ़ाया जायेगा. दोनों तरह से मूल्य नियंत्रण में आते हैं. निवेश का परिणाम आने में समय लगता है, परंतु यह सुधार टिकाऊ होता है. जैसे किसान ने उन्नत बीज से खेती की, तो उत्पादन हर वर्ष अधिक होगा. 

तुलना में सब्सिडी का प्रभाव अल्पकालिक होता है. सब्सिडी हटा लेने के साथ दाम पुन: चढ़ने लगते हैं. जैसे बच्चा पढ़ाई में कमजोर हो, तो दो उपाय हैं. एक यह कि मास्टरजी से सिफारिश करके अंक बढ़वा लिये जायें. दूसरा यह कि उसकी पढ़ाई के लिए टेबल और लाइट की व्यवस्था कर दी जाये. 1991 के सुधारों के बाद सब्सिडी पर खर्च दोगुना हो गया है, जबकि बुनियादी सुविधाओं में निवेश में कटौती हुई है. सरकार की इस आत्मघाती नीति से देश में कृषि उत्पादों के दाम ऊंचे बने हुए हैं और उपभोक्ता परेशान हैं.

आनेवाले समय में दो समस्याएं उत्पन्न होने को हैं. देश में बिजली और पानी की कमी बढ़ती ही जा रही है. मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आनेवाले समय में वर्षा तेज परंतु कम समय के लिए होगी. ऐसी वर्षा का पानी धरती में कम समायेगा और समुद्र में जादा बहेगा. इससे ट्यूबवेल के माध्यम से सिंचाई प्रभावित होगी. कम भूमि व कम पानी से अधिक उत्पादन लेने के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा लेना होगा.

इन तमाम समस्याओं के बावजूद हमारे कृषि उत्पाद बढ़ रहे हैं. साथ ही हमारे कृषि आयात तेजी से बढ़ रहे हैं. हमें बताया गया था कि डब्ल्यूटीओ संधि के लागू होने पर कृषि निर्यात बढ़ेंगे और हमारे किसानों के लिए नये अवसर खुलेंगे. 

लेकिन आयातों से हमारे किसान घरेलू बाजारों से भी वंचित हो रहे हैं. इसलिए डब्ल्यूटीओ संधि नहीं, बल्कि सरकार की कृषि नीति जिम्मेवार है. सरकार का ध्यान कृषि के तकनीकी उच्चीकरण के स्थान पर सब्सिडी देकर अपनी राजनैतिक नैया को आगे बढ़ाना मात्र रह गया है. बुनियादी सुविधाओं में निवेश करते तो हमारे निर्यात बढ़ सकते थे. हमें निम्न कदम उठाने चाहिए. कृषि उत्पादों के आयात-निर्यात को सर्वथा खोल कर घरेलू मूल्यों को वैश्विक मूल्यों के अनुरूप होने देना चाहिए. बुनियादी सुविधाओं और तकनीकी उच्चीकरण में निवेश करना चाहिए. विकसित देशों पर दबाव बनाना चाहिए कि वे कृषि सब्सिडी समाप्त करें, जिससे हमारे किसानों के लिए निर्यात के अवसर खुलें. यही किसान का चुनावी एजेंडा होना चाहिए.