Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/किसान-ही-बना-सकता-है-‘उत्तम-प्रदेश’-3280.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | किसान ही बना सकता है ‘उत्तम प्रदेश’ | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

किसान ही बना सकता है ‘उत्तम प्रदेश’

इलाहाबाद में दो सप्ताह से तनाव है, यहां किसान आंदोलनरत हैं। वे नहीं चाहते कि उनकी खेती की जमीन औने-पौने दाम में लेकर उस पर ‘विकास’ किया जाए। ऐसी ही स्थिति बीते दो सालों के दौरान दिल्ली से सटे नोएडा, गाजियाबाद, अलीगढ़, आगरा आदि में देखने को मिली है। विकास के नाम पर खेत उजाड़ने पर किसान सड़कों पर उतरता है। देश के सबसे विस्तृत राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक केनवस वाले राज्य उत्तर प्रदेश का ताना-बाना गड़बड़ा सा रहा है। विकास के रथ को खींचने की हर नाकाम कोशिश के बाद भी नीति-निर्धारक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ‘उत्तम प्रदेश’ का सपना खेत की हरियाली से होकर गुजरता है , न कि हरे-भरे खेत के बीच कंक्रीट का जंगल या फिर तारकोल की सड़क बिछा कर।


सरकारी आंकड़ों के हिसाब से यदि उत्तर प्रदेश को देखें तो प्रदेश में 2 करोड़ 42 लाख 2 हजार हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से शुद्ध बुवाई वाला रकबा कुल जमीन का 69.5 प्रतिशत है। राज्य में कोई ढाई प्रतिशत जमीन उसर या खेती के अयोग्य भी है। प्रदेश के लगभग 53 प्रतिशत लोग किसान हैं और लगभग 20 प्रतिशत खेतिहर मजदूर। यानी लगभग तीन-चौथाई आबादी इसी जमीन से अपनी रोजी जुटाती है। गौर करने लायक बात है कि 1970-1990 के दो दशकों के दौरान राज्य में नेट बोया गया क्षेत्रफल 173 लाख हेक्टेयर स्थिर रहने के पश्चात अब लगातार कम हो रहा है। एक राज्य जिसकी पूरी अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर हो, वहां खेत घट रहे हैं और किसी को चिंता नहीं है? विकास के नाम पर सोना उगलने वाली जमीन की दुर्दशा इस आंकड़े से दिखती है कि उत्तर प्रदेश में सालाना कोई 48 हजार हेक्टेयर खेती की जमीन कंक्रीट द्वारा निगली जा रही है।

उत्तर प्रदेश की सालाना राज्य आय का 31.8 प्रतिशत खेती से आता है। हालांकि यह प्रतिशत सन 1971 में 57, सन 1981 में 50 और 1991 में 41 हुआ करता था। साफ नजर आ रहा है कि लोगों से खेती दूर हो रही है - या तो खेती ज्यादा फायदे का पेशा नहीं रहा या फिर दीगर कारणों से लोगों का इससे मोहभ्ांग हो रहा है। एक और आंकड़ा चौंकाने वाला है कि राज्य में एक हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों का प्रतिशत 75.4 है, जबकि यह आंकड़ा पूरे देश के स्तर पर 61.6 ही है। यही नहीं प्रति व्यक्ति शुद्ध बोया क्षेत्र का आंकड़ा राज्य में राष्ट्रीय आंकड़े से बेहद दूर है। ये सभी आंकड़े गवाह हैं कि यहां खेती किस तरह उपेक्षा की शिकार है।
देश के अन्न भंडार भरने वाले खेतों पर जो आवासीय परिसर खड़े हो रहे हैं, वे बगैर घर वाले लोगों की जरूरत पूरा करने के बनिस्पत निवेश का काम ज्यादा कर रहे हैं।

वहीं अधिगृहित भूमि पर लगने वाले कारखानों में स्थानीय लोगों के लिए मजदूर या फिर चौकीदार से ज्यादा रोजगार के अवसर नहीं। इन कारखानों में बाहर से मोटे वेतन पर आए लोग स्थानीय बाजार को महंगा कर रहे है।, जो कि स्थानीय लोगों के लिए नए तरीके की दिक्कतें पैदा कर रहा है। राज्य में बड़े या मझोले उद्योगों को स्थापित करने में कई समस्याएं हैं- बिजली व पानी की कमी, कानून-व्यवस्था की जर्जर स्थिति, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और इच्छा-शक्ति का अभाव। इस कटु सत्य से बेखबर सरकार पक्के निर्माण, सड़कों में अपना भविष्य तलाश रही है और खेतों को उस पर खपा रही है। यदि हाल ऐसा ही रहा तो आने वाले पांच सालों में राज्य की कोई तीन लाख हेक्टेयर जमीन से खेतों का नामोनिशान मिट जाएगा। किसान को देर से सही, यह समझ में आ रहा है कि शहर व आधुनिक सुख-सुविधाओं की बातें मृगमरीचिका हंै और एक बार जमीन हाथ से जाने के बाद मिट्टी भी मुट्ठी में नहीं रह जाती है।

दरअसल, ऐसे इलाकों में नई परियोजना, कारखानों आदि को लगाने के बारे में सोचा जाए जो ऊसर हैं। इससे एक तो नए इलाके विकसित होंगे दूसरे, खेत बचे रहेंगे, तीसरा, विकास ‘बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’ वाला होगा। हां, ठेकेदारों व पूंजीपतियों के लिए यह जरूर महंगा सौदा होगा, दादरी, अलीगढ़ या गाजियाबाद की तुलना में। वैसे उत्तर प्रदेश सरकार विश्व बैंक से उसर-बंजर जमीन के सुधार के नाम पर 1332 करोड़ का कर्ज भी ले चुकी है, वहीं दूसरी ओर अच्छे-खासे खेतों को ऊसर बनाया जा रहा है।

जब तक खेत उजडें़गे, दिल्ली जैसे महानगरों की ओर न तो लोगों का पलायन रुकेगा और न ही अपराध रुकेंगे, न ही जन सुविधाओं का मूलभूत ढांचा लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप होगा। यदि सरकार दिल से चाहती है कि लोगों का पलायन न हो तो उसे खेत पर से नजर हटाना ही होगा।