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किसानों के अच्छे दिन कब आएंगे- बाबा मायाराम

इन दिनों किसान अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रहे हैं। एक तरफ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद नहीं हो रही है, किसानों को बोनस नहीं मिल रहा है, तो दूसरी तरफ गेहूं की फसल के लिए खाद-बीज उपलब्ध नहीं हो रहा। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसान मंडी और सोसाइटियों के चक्कर काट रहे हैं। जगह-जगह धरना, प्रदर्शन और चक्का-जाम के रूप में उनका असंतोष सामने आ रहा है। मध्य प्रदेश में तो कई जगह पुलिस की निगरानी में खाद का वितरण हो रहा है। कुछ जगह से खाद के ट्रक लूटने की खबरें भी आ रही हैं। महाराष्ट्र के विदर्भ से लगातार किसानों की खुदकुशी के समाचार आ रहे हैं। अच्छे दिनों का वायदा करके सत्ता में आई नई सरकार के राज में किसानों की मुसीबतें कम होने के बजाय बढ़ती जा रही हैं। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किसानों को उनकी लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत लाभ देने का वायदा किया था, पर अब उनकी उपज समर्थन मूल्य पर भी खरीदी नहीं जा रही है। साथ ही केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया है कि इस साल गेहूं व धान पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बोनस की घोषणा न करें।

छत्तीसगढ़ में धान का एक-एक दाना खरीदने का वायदा करने वाली भाजपा सरकार ने किसानों से पल्ला झाड़ लिया है। सरकार ने निर्णय लिया है कि इस वर्ष प्रति एकड़ दस क्विंटल धान की खरीद होगी। जब इस निर्णय का व्यापक विरोध हुआ, तो इसे बढ़ाकर प्रति एकड़ 15 क्विंटल धान कर दिया गया। लेकिन उसकी भी पूरी खरीदारी नहीं हो रही है। इसी तरह, मध्य प्रदेश में इस वर्ष सामान्य धान प्रति क्विंटल 1,360 रुपये में और ग्रेड ए धान 1,400 रुपये में खरीदने का निर्णय लिया गया। यही नहीं, समर्थन मूल्य पर पूरी खरीदारी भी नहीं हो रही है। नतीजतन, मंडी में धान के भाव गिर गए हैं।

असल में, अब देश भर में किसानों पर चौतरफा हमला हो रहा है। पानी-बिजली का गहराता संकट, आधुनिक खेती में खाद-बीज की बढ़ती मात्रा, बिजली की बढ़ती लागत, जहरीली और बंजर होती जमीन और खुले बाजार में माटी के मोल बिकती फसलों ने किसानों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। पिछले कुछ वर्षों से मौसम के बदलाव ने भी किसानों का संकट बढ़ाया है। इस कारण किसान लगातार कर्ज में डूबते जा रहे हैं। और सरकार उसे बाजार के हवाले छोड़कर उसकी पीड़ा और बढ़ा रही है। जिस विश्व व्यापार संगठन से भारत सरकार का एजेंडा तय हो रहा है, उसके सदस्य धनी देश अपने किसानों को भारी सब्सिडी दे रहे हैं, मगर इसके उलट वे भारत समेत तीसरी दुनिया के देशों में सब्सिडी खत्म करने पर जोर डाल रहे हैं।

कुछ लोग किसानों के संकट को प्राकृतिक कहते हैं। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। सच यह भी है कि जब किसान की फसल बिगड़ती है, तब तो वह नुकसान में रहता ही है, लेकिन जब उसकी फसल अच्छी होती है, तब भी बाजार में दाम गिरने से वह नुकसान में रहता है। आधुनिक खेती में लगातार लागतें बढ़ते जाना और फसलों का सही दाम न मिलना किसानों के संकट का बड़ा कारण है। नकदी फसलें भी इससे अछूती नहीं हैं। लिहाजा जरूरत इस बात की है कि इस संकट को गंभीरता से समझकर किसानों की बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाए।