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किसानों के मसले पर सीएम व कृषि मंत्री आमने-सामने

भोपाल.क्या वन संरक्षण की तरह ही कृषि संरक्षण कानून भी बनना चाहिए? किसानों के हित से जुड़े इस मसले पर भी शिवराज सिंह कैबिनेट में एकराय नहीं है। यही वजह है कि इस मुद्दे पर कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान आमने सामने आ गए हैं।


सरकार ने 2009 में अफसरों के साथ किए मंथन कार्यक्रम और इस साल विधानसभा के विशेष सत्र में कृषि भूमि का गैर कृषि कामों में उपयोग न होने देने का संकल्प लिया था, लेकिन इस पर अमल आज तक नहीं हो पाया है। कृषि संरक्षण कानून बनाने की जिम्मेदारी केंद्र के दायरे में बताकर अफसरसाही ने पूरे मामले को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है।


इस वादे पर अमल में मुख्यमंत्री की सुस्ती को देखते हुए अब कुसमरिया ने नोटशीट लिखकर वन संरक्षण की तरह कृषि संरक्षण कानून बनाने की मांग की है। इसमें उन्होंने यह भी लिखा है कि संविधान के मुताबिक खेती राज्य का विषय है और इसलिए संबंधित कानून बनाना केंद्र का नहीं राज्य का मामला है।


गौरतलब है कि महाराष्ट्र में इस संबंध में कानून बना रखा है कि किसान की खेती की जमीन सिर्फ किसान ही खरीद सकेगा। इस मामले में भारतीय किसान संघ और सरकार पहले ही आमने- सामने हैं।



किसान संघ लंबे समय से खेती की जमीन पर कांक्रीट की इमारतें खड़ी होने, कारखाने, स्पेशल इकॉनामिक जोन और सड़कों के लिए कृषि भूमि दी जाने से खेती पर आए संकट के खिलाफ कानून बनाने की मांग कर रहा है। किसान संघ की शिकायत है कि मल्टीनेशनल कंपनियां तथा अन्य बड़े औद्योगिक घराने आदि मप्र में किसानों से भारी पैमाने पर सस्ते में कृषि भूमि खरीद रहे हैं जिससे आम किसानों की रोजी-रोटी संकट में आ गई है।


"खेती की जमीन बचाने के लिए मैंने मुख्यमंत्री को नोटशीट भेजी है। सीएम जल्दी ही इस मामले में समिति गठित करेंगे।"

- रामकृष्ण कुसमरिया, कृषि मंत्री


"हर साल दो फीसदी कृषि भूमि विकास की भेंट चढ़ रही है। कानून न बना तो 50 साल में आबादी दोगुनी और कृषि भूमि शून्य हो जाएगी।"

- शिवकुमार शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ

"सीएम के इस आश्वासन के बाद कि सरकार उचित कदम उठाएगी, मैंने संकल्प वापस लिया था पर कुछ नहीं हुआ। सीएम को पत्र लिखूंगा।"


-चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, उपनेता,कांग्रेस विधायक दल