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कृषि की कम होती भूमिका में खाद्य संकट- रवि शंकर

बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण व अन्य कारणों से घटती जमीन, आर्थिक विकास और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के कारण भारतीय कृषि भारी दबाव में है। यह सच है कि देश की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। देश की 52 प्रतिशत  श्रमशक्ति कृषि तथा इससे जुड़े क्षेत्रों से ही अपना जीविकोपार्जन कर रही है। फिर भी संकट का अंदाजा इस तथ्य से  लगाया जा सकता है कि राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। एक समय वह था, जब जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 50 प्रतिशत से अधिक होता था। आजादी के छह दशक बाद अब यह घटकर 14.6 प्रतिशत हो गया है। वर्ष 2008-2009 में जीडीपी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 15.7 प्रतिशत थी और 2004-05 में 19 प्रतिशत। दूसरी तरफ, देश की आबादी एक अरब 20 करोड़ से ऊपर जा चुकी है। पिछले कुछ साल में खाद्यान्न की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटी है। जहां 2002 में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता 495 ग्राम प्रतिदिन थी। वहीं छह साल बाद यानी 2008 में यह घटकर 436 ग्राम पर है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 तक देश की आबादी 130 करोड़ हो जाएगी और इस आबादी का पेट भरने के लिए 3,400 लाख टन अनाज की जरूरत पड़ेगी। जाहिर है, यह काम एक और हरित क्रांति के बिना नहीं हो सकता।

हालांकि हमारा अन्न भंडार किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने में सक्षम है। फिर भी पिछले डेढ़-दो दशकों में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर आबादी की वृद्धि दर से कम हो गई। आर्थिक समीक्षा (2008-09) के अनुसार, 1990-2007 के बीच कृषि उत्पादन की वृद्धि दर सालाना औसतन मात्र 1.2 प्रतिशत रह गई है, जो कि जनसंख्या की सालाना वृद्धि दर 1.7 प्रतिशत से कम है। साफ तौर पर यह रास्ता खाद्य संकट की ओर जाता है। इतना ही नहीं, कई सर्वे बताते हैं कि 40 प्रतिशत किसानों को अगर आजीविका का कोई विकल्प मिल जाए, तो वे खेती को छोड़ने को तैयार हैं। यह स्थिति तब है, जब दुनिया के सबसे अधिक भूखे और कुपोषित लोग भारत में रहते हैं। दुनिया में भुखमरी का शिकार हर पांचवां इंसान भारतीय है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान की वर्ल्ड हंगर रिपोर्ट-2011 के मुताबिक, भूख से लड़ रहे देशों की सूची में भारत का 67वां स्थान है। 81 देशों की सूची में नेपाल, पाकिस्तान, रवांडा और सूडान जैसे देश भारत की तुलना में कहीं बेहतर हैं।

इस भुखमरी और खाद्य संकट से निपटने का एक ही रास्ता है- कृषि उत्पादन को बढ़ाना। इसके लिए खेती लायक जमीन का रकबा तो बढ़ाना ही होगा, साथ ही जमीन की उत्पादकता में बढ़ोतरी भी करनी होगी। कृषि को अच्छे मुनाफे का काम बनाना बेहद जरूरी है, ताकि किसान खुद अपनी कमाई से कृषि में निवेश कर सकें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)