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केंद्र कर सकता है एएफएसपीए में संशोधन

नई दिल्ली। फर्जी मुठभेड़ों की खबरों पर आलोचना का सामना कर रही सरकार सेना के विरोध के बावजूद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम [एएफएसपीए] में कुछ संशोधनों की योजना बना रही है, जिसके तहत गलत तरीके से की गई हत्या के आरोपी जवान को प्रदेश अधिकारियों को सौंपने की भी बात शामिल है।

सरकारी सूत्रों का मानना है कि इस अधिनियम पर एक बार फिर नजर डालने और इसे और मानवीय बनाने की जरूरत है।

सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एएफएसपीए की समीक्षा करने और इसे ज्यादा मानवीय बनाने का आश्वासन दिया था। संप्रग सरकार इस आश्वासन को पूरा करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। इसी के तहत विधि और रक्षा मंत्रालय को इससे जुड़ा एक खाका तैयार करके भेजा गया है और उनसे उनकी टिप्पणी मांगी गई है।

उन्होंने बताया कि एक बार एक मत बन जाने पर संशोधनों को मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति के सामने रखा जाएगा।

एएफएसपीए से सेना को यह शक्ति मिली हुई है कि वह बागियों से संघर्ष के दौरान अभियोजन की आशंका से डरे बिना किसी भी संदिग्ध आतंकी को हिरासत में ले सकती है या स्थितियों की मांग के मुताबिक उसे मार भी सकती है। सेना को यह विशेषाधिकार कश्मीर के कुछ इलाकों और उग्रवाद प्रभावित पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों में मिला हुआ है।

दूसरी प्रशासनिक सुधार समिति ने सरकार को सुझाव दिया था कि वह अधिनियम की जगह एक संशोधित कानून लाए, जिसके तहत केंद्र के पास राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे में सेना या अ‌र्द्धसैनिक बलों को तैनात करने का अधिकार हो।

सूत्रों के मुताबिक इन संशोधनों में सेना के ऐसे जवानों को मुकदमा चलाए जाने के लिए स्थानीय पुलिस को सौंपना भी शामिल है, जो कथित तौर पर फर्जी हत्याओं में शामिल हैं।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी चिदंबरम के अलावा कई अन्य केंद्रीय मंत्रियों के सामने इस मुद्दे को उठाया था।

हाल ही में एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में नॉदर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी एस जसवाल ने कहा था कि मैं कहना चाहूंगा कि एएफएसपीए के प्रावधान मेरे लिए बहुत पवित्र हैं और मेरा मानना है कि सेना के लिए भी।

उन्होंने कहा था कि हमारे पास धार्मिक किताबें होती हैं, जिनमें कुछ दिशानिर्देश दिए जाते हैं, लेकिन किसी भी संप्रदाय के सभी सदस्य उन्हें नहीं मानते, वे उन्हें तोड़ भी देते हैं। क्या इसका यह मतलब है कि हम धार्मिक किताब या उस अध्याय को ही हटा दें।

पिछले दिनों कथित तौर पर एक फर्जी मुठभेड़ में सेना ने तीन युवकों को मार गिराया था, जिसके बाद से सेना आलोचनाओं का सामना कर रही है। इस कथित फर्जी मुठभेड़ के आरोपियों में सेना का एक मेजर भी शामिल है।