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केंद्र सरकार का [अनु] दान खाता

नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। केंद्र सरकार ने अपने खर्च के नए तरीके से घोटालों को सुविधाजनक कर दिया है। विकास के मदों में सरकार का करीब 79 फीसद खर्च अब अनुदानों के जरिये होता है। अनुदानों के इस्तेमाल को जानने का सरकार के पास कोई भरोसेमंद तरीका नहीं है। इसलिए करदाताओं और कर्ज से मिले इस सरकारी पैसे की लूट सहज हो गई है। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट में घपले से लेकर मनरेगा व स्वास्थ्य मिशन के घोटाले तक, सभी इस अनुदान खाते की ही देन हैं। ग्रामीण विकास, शिक्षा और साक्षरता, महिला एवं बाल विकास जैसे विभागों व मंत्रालयों का शत प्रतिशत बजट अनुदानों के जरिये बांटा जाता है।

अनुदान वित्तीय अनुशासन की दीमक माने जाते हैं, क्योंकि ये सरकारी खर्च की पारदर्शिता के सिद्धांत के ठीक उलटे हैं। सरकार में काम होने के बाद भुगतान की व्यवस्था है, लेकिन अनुदान प्रणाली में खर्च से पहले ही आवंटन हो जाता है। अनुदान हासिल करने वाली एजेंसियां या ट्रस्ट साल के आखिर में एक उपयोग का सर्टिफिकेट देते हैं, जिसकी सत्यता पर हमेशा से सवाल उठते हैं। जाकिर हुसैन ट्रस्ट सहित तमाम तरह की स्वयंसेवी संस्थाओं को मिल रहे पैसे की कहानी भी इसी तरह की है। पिछले कुछ वषरें में केंद्र सरकार का अधिकांश विकास खर्च अनुदानों के जरिये होने लगा है। योजना आयोग वस्तुत: अनुदान आयोग में बदल गया है। वही इन अनुदानों को मंजूरी देता है। पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपये का खर्च अनुदानों के जरिये किया। इसमें मनरेगा, ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, मिड डे मील, आंगनवाड़ी जैसी सभी प्रमुख स्कीमें शामिल थीं। इन स्कीमों के क्रियान्वयन में स्वयंसेवी संस्थाओं की बड़ी भूमिका है, जिन्हें यह अनुदान दिए जाते हैं। इस खर्च में राज्य सरकारों का कोई दखल नहीं है।

बजट खर्च को ठीक करने पर समितियों के सुझाव और ऑडिट सिफारिशों के ठीक विपरीत सरकार बिल्कुल उलटी दिशा में चली है। सरकार के योजना या विकास खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा पाने वाले मंत्रालय इस अनुदान खाते के महारथी हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय को पिछले दस साल में केंद्रीय बजट से सबसे ज्यादा पैसा मिला है। 2010-11 के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस मंत्रालय ने 71,853 करोड़ रुपये का खर्च अनुदानों के जरिये किया। यह इस मंत्रालय के योजना खर्च का शत प्रतिशत है। महिला व बाल विकास विभाग ने 10,582 करोड रुपये के अनुदान बांटे। यही हाल मानव संसाधन मंत्रालय का भी है। केंद्र सरकार में करीब आठ मंत्रालय या विभाग ऐसे हैं, जिनका 80 फीसद से ज्यादा खर्च अनुदानों के जरिये होता है।