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केंद्रीय बजट के मानसिक क्षितिज से बिहार गायब, पढ़ें अर्थशास्त्री डॉ शैबाल गुप्ता को

इस बजट को देखने से लगता है कि सरकार चुनाव की जल्दीबाजी में है. बहुत संभव है कि मार्च, 2019 के पहले ही चुनाव हो जाये. इसकी आहट बजट में सुनायी दे रही है. इस बजट को पॉपुलिस्ट (लोकलुभावन) कह सकते हैं. हालांकि, सरकार के नजरिये से यह सकारात्मक बजट है. सरकार कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में खास कदम उठायेगी. पर, इसका ठीक-ठीक प्रतिफल किस रूप में सामने आयेगा, इस बारे में ठोस आकलन नहीं कर सकते.


आप देखें कि कृषि और हेल्थ सेक्टर को लेकर बड़ी बातें कही गयी हैं. हेल्थ में पांच करोड़ परिवारों के लिए पांच-पांच लाख का बीमा लेकर आ रही है. जाहिर है इस सेक्टर में निजी क्षेत्र का प्रभाव बढ़ेगा, जबकि होना यह चाहिए था कि मौजूदा अस्पतालों को वह सुदृढ़ करती और सार्वजनिक क्षेत्र में अस्पतालों का निर्माण कराती. आम आदमी के लिए निजी अस्पताल उसकी पहुंच से बाहर है. इसे ध्यान में रखते हुए पांच लाख के बीमा कवर की पॉलिसी लायी गयी है. इसके चलते ऐसा लगता है कि आनेवाले दिनों में निजी अस्पताल व्यापक रूप से खुलेंगे.


हेल्थ सेक्टर में किये गये प्रस्तावों को देखने से लगता है कि सरकार इस क्षेत्र में निजी निवेश के प्रति आशावान है और इसीलिए उसने ऐसा रोडमैप तैयार किया है. मेरी समझ से इस सेक्टर में निजी निवेश के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के तहत चीजों को मजबूत करने की जरूरत थी. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हेल्थ सेक्टर में जो आप काम करने जा रहे हैं, उसके लिए पैसा कहां से आयेगा. बजट से ऐसा लगता है कि सोशल सेक्टर में सरकार टुकड़े-टुकड़े में सुधार की दिशा तलाश रही है. समेकित तौर पर इस क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाने की जरूरत थी. ऐसा हम नहीं देख पा रहे हैं.


मसलन, आप कृषि की बात करें. सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का इरादा जाहिर कर रही है. पर, इस आमदनी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि क्षेत्र का ग्रोथ 12 फीसदी से भी ज्यादा होना चाहिए. मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह लक्ष्य असंभव-सा लगता है. आखिर किसानों की आमदनी दोगुनी होगी कैसे? यह बड़ा सवाल है. इसके ठीक उलट, हम देख रहे हैं कि कॉरपोरेट सेक्टर को काफी उदारता के साथ रियायत दी गयी है.


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कॉरपोरेट को छूट देने की जिस तरह नीति पर चल रहे हैं, ऐसा लगता है कि हम उनसे प्रतियोगिता कर रहे हैं. वे अगर 15 फीसदी छूट दे रहे हैं, तो हम 25 फीसदी. जहां तक बिहार की बात है तो ऐसा लगता है कि केंद्रीय बजट के मानसिक क्षितिज से बिहार गायब है.