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केदली गांव, जिसे कोसी ने नौ बार उजाड़ा- पुष्यमित्र

केदली पंचायत के कुमर यादव ब्योरा देते हुए बताते हैं कि 1981 तक हमारी जिंदगी सामान्य र्ढे पर चल रही थी. हां, कोसी तटबंध के अंदर रहने की परेशानी जो दूसरे गांव के लोगों को होती थी, वह हमें भी होती थी. मगर उस साल अचानक कोसी नदी हमारे गांव के पास आकर बहने लगी और धीरे-धीरे गांव पर हमलावर होने लगी.

1983 में नदी ने हमारे गांव को पूरी तरह काट दिया. इसके बाद सरकार ने हमारा पुनर्वास तटबंध के बाहर करा दिया. इससे हम बहुत खुश हुए. मगर यह खुशी बहुत दिनों तक नहीं टिकी. 1984 में नवहट्टा के पास जो तटबंध टूटा और बाढ़ आयी, तो फिर सरकार ने एक गाइड बांध बना कर तटबंध को और सुरक्षित करने की कोशिश की. इस दौरान एक बार फिर से हमारा गांव गाइड बांध के भीतर आ गया और हम कोसी के सामने.

वे बताते हैं कि उसके बाद कुछ सालों तक शांति रही, मगर 1996 से कोसी मैया फिर से हमारे गांव पर चोट करने लगीं. 1996, 1999, 2003, 2007, 2008, 20013 और अब 2014. इन सभी सालों में कोसी नदी ने हमारे गांव को काट कर भंसा दिया. हर बार हम कट जाने के बाद ऊंची जगह पर जाकर बसते और हर बार नदी साल दो साल में फिर से हमारे गांव को काट कर अपनी धारा में बहा जाती.

अब तो हमें बसने और उजड़ने की आदत हो गयी है. गांव के ही कैलाश पंजियार बताते हैं कि इन हमलों की वजह से आप पायेंगे कि गांव में अब लोग पक्का मकान बनाने में हिचकते हैं. क्यों कौन हर साल दो साल में मकान बनाने की हैसियत रखता है. गांव के धनी से धनी लोग भी फूस के मकान ही बनाते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि साल दो साल में मकान को कट कर नदी में समाना ही है.

मगर फिर भी सबकुछ आसान नहीं है, किफायती से किफायती फूस का मकान भी 35 हजार से कम में नहीं बनता है. साल दो साल में इतना बड़ा खर्च झे लना भी आसान नहीं. यह तो इसलिए मुमकिन हो पाता है कि गांव के अधिकांश युवक साल के कई महीने मेहनत मजदूरी करने के लिए पंजाब चले जाते हैं और वहां से ठीक-ठाक कमाई करके आते हैं.

क्या सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिलता.. इस सवाल पर लोग कहते हैं कि हां, मिलता है. पहले 500 रुपये मिलता था, फिर एक हजार रुपये और अब घर गिरने का 2000 रुपये मुआवजा मिलता है. यह भी कभी टाइम पर नहीं मिला. आप बताइए इससे क्या हो सकता है. अब तो इंदिरा आवास के लिए भी 75 हजार रुपया मिलने लगा है.

पंचायत की मुखिया जानकी कुमारी बताती हैं हालत तो यह है कि पंचायत के तीन मौजे में स्कूल भी फूस के मकान में चलता है. सरकार भी कितनी दफा पक्का मकान बनाये. जब स्कूल कट जाता है, तो स्कूल के फंड से या गांव के लोग चंदा करके फूस की झोपड़ी बना लेते हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई लिखाई तो चलती रहे. इस बार जब बाढ़ का हल्ला मचा, तो एनडीआरएफ वालों ने उनके गांव को भी खाली करवा लिया.

अब उन्हें कह दिया गया है, खतरा टल गया. मगर वे कैसे मान लें खतरा टल गया है. खतरा दूसरों के लिए टला होगा, उनका खतरा तो सिर पर मंडरा रहा है. गांव के 200 घर इस बार भी कोसी में विलीन हो चुके हैं.

(इनपुट-विकास)

बिहार के अस्सै केदली गांव का नाम कोसी के इलाके में सिहरन के साथ याद किया जाता है. लोग कहते हैं कि दुनिया के किसी गांव को इस गांव जैसी किस्मत नहीं मिले. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि कोसी नदी को ही इस गांव से बैर है. यह गांव जहां बसे कोसी नदी वहीं पहुंच कर उसे उजाड़ देती है. आंकड़े भी इस गांव की बदकिस्मती की कहानी कहते हैं. पिछले तीस सालों में कोसी नदी इस गांव पर कई बार हमलावर हुई है और नौ बार इस गांव को पूरी तरह उजाड़ चुकी है.