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कैग ने की शीला सरकार की खिंचाई, पैसों के बावजूद खर्च नहीं हो सकी रकम

नई दिल्ली. नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) ने चुनावी साल में आई दिल्ली सरकार के 2011-12 की रिपोर्ट में सरकारी खजाने के कुप्रबंधन पर कड़ी टिप्पणी की है।

सरकार की तमाम योजनाओं से अपेक्षित नतीजे न मिलने और जनता के पैसे की बर्बादी के लिए विभिन्न विभागों में खाली पड़े पद, काम की धीमी गति, प्रोजेक्ट के लागू न होने, वसूली में लापरवाही, योजना का अभाव और मंजूरी मिलने लेटलतीफी को जिम्मेदार ठहराया है।

मंगलवार को दिल्ली विधानसभा के पटल पर रखी गई कैग रिपोर्ट में सरकार के जिन विभागों, प्रोजेक्ट्स व स्कीम के खातों की जांच की गई, उन पर अपनी टिप्पणियों में कैग ने कुछ इसी तरह के कारण गिनाए हैं।

जांच किए बिना अनुमान तैयार कर लिए गए : कैग को 243 मामले ऐसे मिले जहां आवंटित की गई कुल राशि का 20 फीसदी से ज्यादा या 5 करोड़ रुपए से अधिक का इस्तेमाल नहीं हुआ। 22 मामलों में तो 50-50 करोड़ से अधिक राशि बच गई। 9 अनुदानों की 42 योजनाओं में 100 फीसदी राशि जस की तस बच गई।

ऐसी कुछ योजनाओं में नगर सुधार के लिए 300.93 करोड़ रुपए की सहायता राशि, पावर स्टैबलाइजेशन फंड के लिए इक्विटी के लिए 200 करोड़ रुपए का प्रावधान, जल बोर्ड को सीवेज व जलापूर्ति विकास कार्यों के लिए 70 करोड़ रुपए, सड़क निर्माण के लिए निगम को 50.6 करोड़ रुपए का ऋण और जिला व अन्य सड़कों के लिए 50 करोड़ रुपए के प्रावधान शामिल हैं। इन योजनाओं पर 2011-12 वित्त वर्ष खत्म होने तक एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ था।

नहीं हो सकी 2310 करोड़ की कर वसूली : कर वसूली प्रणाली में कम आकलन, छूट के अनियमित दावों व अन्य खामियों के चलते सरकारी खजाने को 2300 करोड़ रुपए से अधिक नुकसान का नुकसान हुआ। कैग का कहना है कि दूरदर्शिता के अभाव के चलते यह नुकसान हुआ।

जीटीबी में सीटी स्कैनर 20 महीने पैक ही धरा रहा

जीटीबी व लोकनायक अस्पतालों में एंबुलेंस का मरीजों के बजाए अन्य कार्यों में इस्तेमाल हो रहा है। एंबुलेंस में जीवन रक्षक प्रणाली का अभाव है। जीटीबी अस्पताल में 7.17 करोड़ रुपए की लागत से सीटी स्कैनर इमरजेंसी में खरीदा गया लेकिन उसे लगाने में 20 महीने का समय लग गया।

बिजली कंपनियों को अनुचित लाभ देने से नुकसान

दिल्ली ट्रांसको लिमिटेड (सरकार की कंंपनी) निजी वितरण कंपनियों से करार की शर्तों का सही-सही पालन न करने के चलते 700 करोड़ रुपए से अधिक की बकाया राशि लंबे समय से नहीं वसूल कर पाई है। मार्च 2012 तक बीआरपीएल पर 431.11 करोड़ और बीवाईपीएल पर 274.59 करोड़ रुपए की राशि बकाया थी जो 15 दिसंबर 2012 तक बढ़कर 754.83 करोड़ रुपए हो गया। इसके अलावा विभिन्न योजनाओं के लागू करने में देरी के चलते 287.09 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। फैसलों में देरी के चलते ग्रिड में भी गंभीर परेशानी पैदा हुई और 5.35 करोड़ का नुकसान हुआ।

सुरक्षा उपाय न होने के चलते 2.31 करोड़ रुपए के ट्रांसफॉर्मर जल गए और 18.46 करोड़ रुपए के नए खरीदने पड़े। ट्रांसको के गलत योजना व प्रबंधन के चलते सरकारी खजाने को कुल मिलाकर 1248 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

40 को मिलता है पानी का बिल, 3951 करोड़ का नुकसान

दिल्ली में बीते तीन वर्षों के दौरान जितनी पानी की आपूर्ति की गई, उसके सिर्फ 40 फीसदी को बिल भेजे गए। इस वजह से सरकारी खजाने को 3951 करोड़ रुपए की चपत लगी। कैग ने कहा है कि पानी की मात्रा बढ़ाने के लिए 1994 में यमुना पर दो बांध बनाने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन 18 साल बाद इनका निर्माण नहीं हो सका और इसके लिए आवंटित 214 करोड़ रुपए खर्च भी हो गए।