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'कैसा क़ानून कि पेट की अंतड़ियां ऐंठती रहें?'-- नीरज सिन्हा

निराशो देवी को बाल-बच्चे नहीं हैं, पति कुछ दिन पहले चल बसे, चूंकि राशन कार्ड नहीं इसलिए सरकारी अनाज उन्हें नहीं मिल सकता- स्थिति अब भूखों मरने की है.
सालहन के बंधन नायक के परिवार का ‘पेट नदी-नालों से पकड़ी मछलियों को खाकर भरता है.'
वो भी हर दिन हासिल नहीं हो पाता है.

राजधानी रांची से महज़ 35 किलोमीटर दूर बसे सालहन में दर्जनों और झारखंड में हज़ारों ऐसे ग़रीब परिवार हैं जिन्हें सस्ती दरों में अनाज दिलवा सकने वाला राशन कार्ड नहीं दिया गया है जबकि सूबे के दो साल पहले बने खाद्य सुरक्षा क़ानून के भीतर ये उनका अधिकार है.
सालहन गांव की पूनम का भी कई कोशिशों के बाद राशन कार्ड नहीं बना.
बंधन नायक का सवाल है, "क्या यही खाद्य सुरक्षा क़ानून है, कि पेट की अंतडि़यां ऐंठती रहें?"
दो साल पहले बने भोजन के अधिकार क़ानून के दायरे में राज्य के 2.33 करोड़ लोग आते हैं.
क़ानून के मुताबिक़ अति ग़रीब परिवारों को कुल 35 किलो जबकि प्राथमिकता वाली श्रेणी में आनेवाले परिवार को प्रति सदस्य के हिसाब से पांच किलो राशन मिलेगा.
सभी को अनाज एक रुपए किलो की दर से दिया जाएगा.
लेकिन बहुत सारे परिवारों को राशन कार्ड नहीं मिल पाया है. इनमें से बहुतों को पहले ये हासिल था.
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हालात ये हैं कि हर तीसरे-चौथे दिन झारखंड के गांवों में ग्रामीण सरकारी दफ्तरों का घेराव-प्रदर्शन और सड़कें जाम कर रहे हैं.
कई जगहों पर राशन दुकानदारों और सरकारी मुलाजिमों को घंटों बंधक बनाकर रखा गया है.
खाद्य आपूर्ति और सार्वजनिक मंत्री सरयू राय ने पूरे मामले में जांच के आदेश जारी किए हैं.
शिकायत महज़ राशन कार्ड मिलने की नहीं हैं.
रांची के खीराटोली गांव के फागु उरांव के परिवार में आठ आदमी हैं लेकिन वो कहते हैं कि उन्हें महज़ 10 किलो अनाज ही दिया जाता है.
वो पूछते हैं, ‘इससे कलेबा खायें या बियारी.'

झारखंड के मुख्यमंत्री ने खाद्य सुरक्षा योजना का उद्घाटन किया था.
खूंटी ज़िले के सुदूर गांव के बिजला उरांव कहते हैं, "बहुत लोग इसलिए परेशान हैं कि अक्तूबर का अनाज अभी तक नहीं मिला है."
भोजन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट में झारखंड के सलाहकार बलराम कहते हैं कि एक तो क़ानून को लागू करने से पहले सभी को राशन कार्ड देना सुनिश्चित नहीं किया जा सका. दूसरे सूबे में अनाज वितरण सिस्टम में पारदर्शिता की कमी है.

झारखंड के सोनाहातु ब्लॉक में धरने पर बैठे ग्रामीण
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने भी हाल ही में सूबे में खाद्य सुरक्षा क़ानून की तैयारियों पर सवाल खड़े किए थे.
उन्होंने कहा था कि विलंब से लागू होने के बावजूद क़ानून का लाभ आधे-अधूरे तरीक़े से लोगों को मिल पा रहा है. जबकि सूखे की वजह से लोगों की परेशानी पहले से बढ़ी है.
पंचायत प्रतिनिधि आरती कुजूर का मानना है कि राशन कार्ड बनाने के काम में ग्राम सभा की भूमिका और ज़िम्मेदारी तय की जानी चाहिए.
खाद्य आपूर्ति विभाग के सचिव विनय कुमार चौबे के मुताबकि एक लाख 40 हजार राशन कार्ड ग़लत बन गए हैं जिन्हें डिलीट कराया जा रहा है.

झारखंड की एक पीडीएस दुकान में सरकारी अधिकारी लोगों से बात करते हुए.
साथ ही जिनके नाम छूट गए हैं उन्हें 31 जनवरी तक सूची में शामिल कर लिया जाएगा.