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कैसे आएंगे कठघरे में साइबर अपराधी-- जाहिद खान

‘डिजिटल इंडिया' के सरकारी नारों के पीछे हमारी साइबर सुरक्षा कितनी पुख्ता और अभेद्य है, इस बात की पोल एक बार फिर सरकारी वेबसाइटों में सेंध लगने और इन वेबसाइटों के बंद होने की घटना ने खोल दी है। पिछले दिनों अचानक रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट के होम पेज पर चीनी शब्द दिखाई देने लगा। इसके कुछ देर बाद ही गृह मंत्रालय, चुनाव आयोग और श्रम मंत्रालय सहित करीब दस सरकारी वेबसाइटें बंद हो गर्इं। ऐसे में तरह-तरह की आशंकाएं जताई जाने लगीं। वेबसाइट पर दिखाई दे रहे चीनी शब्द का मतलब ‘होम' बताया गया। मीडिया में इस खबर के आते ही पूरे देश में हड़कंप मच गया। हमारी साइबर सुरक्षा को लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जाने लगे। इस गंभीर स्थिति को संभालने के लिए सरकार की ओर से खुद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सामने आर्इं और उन्होंने ट्वीट कर कहा कि रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट के मामले को संज्ञान में लिया गया है और उचित कार्रवाई शुरू कर दी गई है। रक्षा मंत्री ने अपने ट्विटर हैंडल पर यह भी लिखा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए हरसंभव कदम उठाए जाएंगे।


बहरहाल, कई घंटे बंद रहने के बाद अब सभी सरकारी वेबसाइटें सामान्य रूप से काम कर रही हैं। सरकारी वेबसाइटों का रखरखाव करने वाले ‘राष्ट्रीय सूचना केंद्र' से अब सफाई आ रही है कि किसी भी सरकारी वेबसाइट पर साइबर हमला नहीं हुआ और न ही किसी तरह का कोई नुकसान हुआ है। राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक (एनसीएससी) ने सरकारी वेबसाइटों के बंद होने के पीछे साइबर हमलों की रिपोर्टों को खारिज करते हुए कहा है कि हार्डवेयर में गड़बड़ी होने के कारण साइटें बंद हो गई थीं। यानी रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और एनसीएससी दोनों के ही बयानों में विरोधाभास है। अब किसकी बात को सही मानें और किसको गलत? यह पहली बार नहीं है, जब सरकारी वेबसाइट हैकिंग का शिकार हुई हों, बल्कि इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है जब पाकिस्तान और चीन के हैकरों ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार की वेबसाइटों में सेंध लगाने की कोशिश की और उसमें कामयाब भी हुए। पिछले साल जनवरी में पाकिस्तानी हैकरों ने एनएसजी की वेबसाइट हैक कर ली थी। वेबसाइट पर भारत विरोधी टिप्पणियां चस्पां कर दी गई थीं। उसके एक महीने बाद फरवरी, 2017 में केंद्रीय गृह मंत्रालय की वेबसाइट में सेंधमारी की गई। एक आंकड़े के मुताबिक पिछले दस महीने में एक सौ चौदह सरकारी वेबसाइट हैक हुई हैं। सूचना और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री केजे अल्फोंस ने खुद लोकसभा में एक सवाल के जवाब में स्वीकारा था कि अप्रैल, 2017 से जनवरी, 2018 के बीच बाईस हजार दो सौ सात वेबसाइटें हैक की गर्इं। इनमें एक सौ चौदह सरकारी वेबसाइट थीं। जबकि कंप्यूटर इमरजंसी रिस्पांस टीम ने इस अवधि में बड़े थ्रेट्स को लेकर तीन सौ एक सिक्योरिटी अलर्ट जारी किए।

एक तरफ हमारे देश में लाखों वेबसाइट शुरू हो रही हैं, तो दूसरी ओर वेबसाइट हैकिंग की घटनाएं भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। तमाम सरकारी वादों और दावों के बाद भी देश में साइबर सुरक्षा का ऐसा मजबूत नेटवर्क नहीं बना है, जो इन घटनाओं को रोक सके। यदि दूसरे देशों द्वारा वेबसाइटों की हैकिंग की जाती है, तो किस नीति और कानून के तहत उन्हें सजा के दायरे में लाया जाएगा। किसी कंप्यूटर, डिवाइस, इन्फॉर्मेशन सिस्टम या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से घुसपैठ करना और डेटा से छेड़छाड़ करना हैकिंग कहलाता है। यह हैकिंग उस सिस्टम की भौतिक रूप से पहुंच और दूरस्थ पहुंच के जरिए भी हो सकती है। जरूरी नहीं कि ऐसी हैकिंग के दौरान उस सिस्टम को नुकसान पहुंचा ही हो। अगर कोई नुकसान नहीं भी हुआ है, तो भी घुसपैठ करना साइबर अपराध के तहत आता है, जिसके लिए सजा का प्रावधान है। देश में साइबर अपराध के मामलों में ‘सूचना तकनीक कानून 2000' और ‘सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008' लागू होते हैं। मगर इसी श्रेणी के कई मामलों में भारतीय दंड संहिता (आइपीसी), कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है। साइबर अपराध के कुछ मामलों में आइटी डिपार्टमेंट की तरफ से जारी किए गए आइटी नियम 2011 के तहत भी कार्रवाई की जाती है। आइटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66, आइपीसी की धारा 379 और 406 के तहत अपराध साबित होने पर तीन साल तक की जेल या पांच लाख रुपए तक जुर्माना हो सकता है। बावजूद इसके साइबर अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। खुफिया एजंसियां काफी समय से सरकार को चेतावनी देती रही हैं कि देश के अधिकतर कार्यालयों में साइबर सुरक्षा के प्रति ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिससे खतरा पैदा हो रहा है। सच बात तो यह है कि देश में न तो साइबर सुरक्षा को लेकर सरकार गंभीर है और न ही लोगों में गंभीरता देखी जा रही है। सरकार और जनता दोनों की गंभीरता में कमी की वजह से देश में साइबर अपराध के मामले गुणात्मक रूप से बढ़ते जा रहे हैं। देश में हजारों मामले ऐसे होते हैं, जिन्हें या तो लोग दर्ज नहीं करवाते हैं या स्थानीय पुलिस दर्ज नहीं करती। वरना इस तरह के मामलों की संख्या और भी ज्यादा होती। अगर अब भी सरकार, साइबर सिक्योरिटी को लेकर कोई ठोस पहल या कदम नहीं उठाती, तो देश को इसके गंभीर नतीजे भुगतना पड़ेंगे।

सरकारी वेबसाइटों का रख-रखाव राष्ट्रीय सूचना केंद्र करता है। सूचना केंद्र इन वेबसाइटों के सर्वरों का कामकाज संभालता है। साइबर सिक्योरिटी की भी जिम्मेदारी इसी की है। सरकार और राष्ट्रीय सूचना केंद्र दावा करता है कि सरकारी वेबसाइटों की सुरक्षा अभेद्य है और इन वेबसाइटों को कोई हैक नहीं कर सकता। बावजूद इसके सरकारी वेबसाइटों की हैकिंग की घटनाओं में अगर लगातार इजाफा हुआ है, तो इसकी वजह भी हैं। ये बात सच है कि साल 2000 का ‘इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (आइटी एक्ट)' साइबर सुरक्षा के एतबार से ज्यादा सशक्त था, लेकिन साल 2008 के संशोधन ने इस कानून को बिल्कुल अपाहिज बना दिया है। कानून में संशोधनों ने ज्यादातर साइबर अपराधों को जमानती बना दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि अगर कोई अपराधी जमानत पर बाहर आता है, तो वह सबूतों को नष्ट कर देता है। सबूतों के अभाव में साइबर अपराधी बरी हो जाते हैं।

सरकार अपनी वेबसाइटों और आधार डेटा की सुरक्षा की डींगें हांकती है, लेकिन हमारे यहां न तो आधार डाटा सुरक्षित है, न सरकारी वेबसाइटें। ‘डिजिटल इंडिया' में रक्षा मंत्रालय देश की सीमाएं तो क्या, अपनी वेबसाइट और गोपनीय सूचना तक की हिफाजत कर पाने में नाकाम हुआ है। मौजूदा दौर में किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सीमाओं के साथ-साथ साइबर सुरक्षा बहुत जरूरी है। सरकारी वेबसाइटों में देश से संबंधित सामाजिक, आर्थिक, सुरक्षा और सामरिक आदि महत्त्वपूर्ण जानकारियां होती हैं। अगर ये जानकारियां दुश्मन देशों को मालूम हो जाएं तो वे इन जानकारियों का हमारे खिलाफ नाजायज इस्तेमाल कर सकते हैं। साइबर संसार में नित्य नई-नई क्रांतियां हो रही हैं, ऐसे दौर में डेटा को हैकिंग से सुरक्षित रखना चुनौती जरूर है, लेकिन मुश्किल काम नहीं। सरकारी वेबसाइटों को हैकरों से बचाने के लिए मजबूत सुरक्षा व्यवस्था तो अपनानी ही होगी, साइबर क्राइम करने वालों के खिलाफ सख्त कानून भी लाना होगा, ताकि इस तरह का अपराध करने वाले सजा पाए बगैर न बच सकें।