Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/कैसे-भूल-सकते-हैं-चंपारण-सत्याग्रह-के-सी-त्यागी-10047.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | कैसे भूल सकते हैं चंपारण सत्याग्रह- के सी त्यागी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

कैसे भूल सकते हैं चंपारण सत्याग्रह- के सी त्यागी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अतुल्य विरासत को अजर-अमर बनाने की दिशा में जो प्रयास हो रहे हैं, वे न सिर्फ सराहनीय हैं, बल्कि प्रेरणादायक भी हैं। पिछले दिनों बिहार सरकार ने गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सौवीं वर्षगांठ मनाने का फैसला एक सर्वदलीय बैठक में किया। महात्मा के नाम पर राजनीतिक मतभेद न होना, इस बड़े फैसले का सुखद पहलू रहा। 10 अप्रैल, 1917 को पहली बार महात्मा गांधी बिहार आए थे।

यही वह दिन था, जब 48 वर्षीय मोहनदास करमचंद गांधी नील के खेतिहर राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर बांकीपुर स्टेशन (अब पटना) पहुंचे थे। उस समय अंग्रेजों द्वारा जबरन नील की खेती कराई जा रही थी। स्थानीय किसानों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए शुक्लाजी ने गांधीजी से अपील की थी कि वह इस मुद्दे पर आंदोलन की अगुवाई करें। उनकी अगुवाई वाले इस आंदोलन से न सिर्फ नील के किसानों की समस्या का त्वरित हल हुआ, बल्कि सत्य, अहिंसा और प्रेम के संदेश ने फिरंगियों के विरुद्ध भारतीयों को एकजुट किया।

यह सच है कि गांधीजी को देश का बच्चा-बच्चा जानता है, परंतु उनसे और उनके योगदान से जुड़े कई तथ्य ऐसे हैं, जिन्हें हम भुलाते जा रहे हैं। चूकि चंपारण सत्याग्रह की भूमि बिहार से जुड़ी है, इसलिए यह लाजिमी था कि बिहार सरकार पूरी तत्परता, जिम्मेदारी और सम्मान के साथ इसकी शताब्दी मनाने की तैयारी करती। वैसे, इस आयोजन की महत्ता इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यही वह मौका था, जब देश को सत्याग्रह रूपी एक मजबूत हथियार हासिल हुआ था। सत्याग्रह गांधीजी का दिया वह हथियार है, जिसमें दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य से लोहा लेने की ताकत निहित थी। इसने मृण्मय भारत को चिन्मय भारत बनाने के सपने को संजो रखा था।

बीसवीं शताब्दी में भारत समेत दुनिया के कई मुल्कों के लोगों के लिए महात्मा गांधी के सत्याग्रही औजार धर्म, अधिकार व कर्तव्य बन चुके थे। इनके साथ शर्त यह थी कि इन औजारों में सविनय और अहिंसा निहित हों। गंाधीजी के भारत आगमन के बाद चंपारण का सत्याग्रह देश का पहला सत्याग्रह था। सत्य की राह पर चलकर असत्य का विरोध करने जैसी प्रतिज्ञा तो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ही ले ली थी। वैसे, वर्ष 1914 चंपारण के किसानों के लिए काफी अशुभ रहा। वजह यह थी कि औद्योगिक क्रांति के बाद नील की मांग बढ़ जाने के कारण ब्रिटिश सरकार ने भारतीय किसानों पर सिर्फ नील की खेती करने का दबाव डालना शुरू कर दिया। आंकड़ों की मानें, तो साल 1916 में लगभग 21,900 एकड़ जमीन पर आसामीवार, जिरात और तीनकठिया प्रथा लागू थी। चंपारण के रैयतों से मड़वन, फगुआही, दशहरी, सिंगराहट, घोड़ावन, लटियावन, दस्तूरी समेत लगभग 46 प्रकार के 'कर' वसूले जाते थे। और वह कर वसूली भी काफी बर्बर तरीके से की जाती थी।

निलहों के खिलाफ चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल की अगुवाई में चल रहे तीन वर्ष पुराने संघर्ष को 1917 में मोहनदास करमचंद गांधी ने व्यापक आंदोलन का रूप दिया। आंदोलन की अनूठी प्रवृत्ति के कारण इसे न सिर्फ देशव्यापी, बल्कि उसके बाहर भी प्रसिद्धि हासिल हुई। गांधी के बिहार आगमन से पहले स्थानीय किसानों की व्यथा, निलहों का किसानों के प्रति अत्याचार और उस अत्याचार के खिलाफ संघर्ष का इतिहास भले ही इतिहासकारों के दृष्टि-दोष का शिकार हो गया हो, लेकिन चंपारण के ऐतिहासिक दृश्यों में वह इतिहास आज भी संचित है।

15 अप्रैल, 1917 को महात्मा गांधी के मोतिहारी आगमन के साथ पूरे चंपारण में किसानों के भीतर आत्म-विश्वास का जबर्दस्त संचार हुआ। इस पहल पर गांधीजी को धारा-144 के तहत सार्वजनिक शांति भंग करने के प्रयास की नोटिस भी भेजी गई। चंपारण के इस ऐतिहासिक संघर्ष में डॉ राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, आचार्य कृपलानी समेत चंपारण के किसानों ने अहम भूमिका निभाई। आंदोलन के शुरुआती दो महीनों में गांधीजी ने इस क्षेत्र के हालात की गहराई से जांच की। चंपारण के लगभग 2,900 गांवों के तकरीबन 13,000 रैयतों की स्थिति दर्ज की गई। इस मामले की गंभीरता उस समय के समाचारपत्रों की सुर्खियां बनती रहीं। इसे त्वरित परिणाम ही कहा जाएगा कि एक महीने के अंदर जुलाई ,1917 में एक जांच कमेटी गठित की गईर् और 10 अगस्त को तीनकठिया प्रथा समाप्त कर दी गई।

चंपारण के लोगों के लिए यह किसी जीवनदान से कम न था कि मार्च 1918 तक 'चंपारण एगरेरियन बिल' पर गवर्नर-जनरल के हस्ताक्षर के साथ तीनकठिया समेत कृषि संबंधी अन्य अवैध कानून भी, जो तब तक प्रचलन में थे, समाप्त हो गए। इस बड़ी घटना ने राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का रास्ता प्रशस्त्र करने के साथ ही गांधी का कद और बड़ा कर दिया। चंपारण सत्याग्रह का एक बड़ा लाभ यह भी हुआ कि इस इलाके में विकास की शुरुआती पहल हुई, जिसके तहत कई विद्यालय व चिकित्सा केंद्र स्थापित किए गए। चंपारण की पवित्र मिट्टी ने मोहनदास करमचंद गांधी जैसे शख्स को महात्मा बनाया और आम जनों को अपना हक हासिल करने का सहज हथियार (सत्याग्रह) उपलब्ध कराया।

 

उस महान सत्याग्रह के 100वें साल में हम प्रवेश कर चुके हैं। लेकिन हर एक व्यक्ति, जो मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है, आज गांधी की कमी महसूस कर रहा है। देश के किसान सौ वर्ष पूर्व भी परेेशान थे और वे आज भी परेशान हैं। आर्थिक विषमताएं, सामाजिक कुरीतियां और धार्मिक-जातिगत तनाव आज भी देश की कमजोरी बने हुए हैं। सत्य, अहिंसा और प्रेम के जो मंत्र महात्मा गांधी द्वारा हमें प्रदान किए गए, आज अपने ही देश के अंदर अव्यावहारिक साबित किए जा रहे हैं। ऐसे में, चंूकि गांधीजी के नेतृत्व में देश के पहले सफल सत्याग्रह- चंपारण सत्याग्रह की सौवीं वर्षगांठ नजदीक आ रही हैै, उचित होगा कि हम उनके मार्गों की प्रासंगिकता को गहराई से समझें और उनको अपनाने की कोशिश करें। इसमें कोई दोराय नहीं कि बिहार सरकार की यह पहल गांधीवादी ताकतों को फिर से सुदृढ़ करने का काम करेेगी। मगर इस दिशा में अन्य राज्य सरकारों, गांधीजी से जुड़े संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों तथा केंद्र सरकार को भी संकल्प के साथ आगे आना चाहिए। इस तरह की पहल नई पीढि़यों के लिए मार्गदर्शक व अनमोल साबित हो सकती हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)