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कोयला उत्पादन में पर्यावरण का पंगा

नई दिल्ली। [जागरण ब्यूरो] कोयला खनन के रास्ते से गो और नो-गो का अड़ंगा अभी पूरी तरह से खत्म भी नहीं हुआ है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने एक नई अड़चन खड़ी कर दी है। पर्यावरण और वन मंत्रालय [एमओईएफ] ने एक विभागीय आदेश के जरिए वन क्षेत्र में पड़ने वाली सभी कोयला खदानों के लिए पहले वन मंजूरी की बाध्यता लागू कर दी है। इससे उन सभी कोयला खदानों में काम बंद होने के आसार हैं जहां थोड़ी सी भी वन भूमि है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इससे कोयला उत्पादन में 1.15 करोड़ टन की कमी आने की आशंका है।

कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का कहना है कि 31 मार्च, 2011 को पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश की तरफ से जारी यह आदेश आगामी पंचवर्षीय योजना में बिजली उत्पादन की तैयारियों को और ज्यादा धक्का पहुंचाएगा। पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से समय पर मंजूरी नहीं मिलने की वजह से चालू वित्त वर्ष के दौरान कोयला उत्पादन में पहले से ही लगभग चार करोड़ टन गिरावट आने की संभावना बनी हुई है। पर्यावरण मंत्रालय के नए आदेश ने पिछले कई दशकों से कोयला उत्पादन में चल रही परंपरा को पूरी तरह से बदल दिया है। अगर पर्यावरण मंत्रालय का अडं़गा नहीं होता तो वर्ष 2011-12 में पांच करोड़ टन से ज्यादा अतिरिक्त कोयला उत्पादन किया जा सकता था।

जयराम रमेश के इस आदेश से सरकारी व निजी क्षेत्र की कंपनियों में भी हड़कंप हैं। इनका कहना है कि जब कोयला खनन के मुद्दे पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह काम कर रहा है, तब पर्यावरण मंत्रालय के नये आदेश ने मामले को सुलझाने के बजाय और गंभीर बना दिया है। कोयला मंत्री ने जयराम रमेश, वित्त मंत्री मुखर्जी और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को पत्र लिख कर इस मुद्दे को जल्दी सुलझाने का आग्रह किया है।

मौजूदा समय में जब किसी कंपनी को कोयला खदान मिलता है तो वह पहले गैर-वन क्षेत्र के लिए पर्यावरण मंजूरी लेकर खनन शुरू कर देती है। वन क्षेत्र में खनन के समय ही वन विभाग की मंजूरी ली जाती है। अब अगर किसी ब्लॉक में थोड़े से भी जंगल हैं तो कंपनियों को खनन के लिए पहले वन ंिंवभाग की मंजूरी लेनी होगी। वन विभाग मंजूरी देने में औसतन तीन वर्ष का समय लेता है। ंइसके बाद कंपनियों को पर्यावरण मंजूरी लेनी होगी जिसमें पांच वर्ष का समय लगता है।