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कोयले से मिटती है भूख

धनबाद. जिले में एक-दो नहीं लगभग पचास हजार ऐसे लोग हैं जिनके पेट की आग मालगाड़ियों से बुझती है। कोयले से लदी मालगाड़ियां से कोयला चोरी कर बेचना इनका मुख्य पेशा है। गंदा है,अवैध है, पर यही इनका धंधा इनकी रोजरोटी का माध्यम है। इनके लिए मनरेगा कोई मायने नहीं रखता।

इनका साफ कहना है कि आठ घंटे काम करने पर के बाद भी न्यूनतम मजदूरी से मनरेगा में अधिक नहीं मिलता, जबकि मालगाड़ी की मदद से वे दिनभर में हजारों की कमाई कर लेते हैं। रेल पुलिस, आरपीएफ और सीआईएसएफ की मेहरबानी इन पर हमेशा बनी रहती है।

सुबह मालगाड़ी आते ही वह अपने काम में जुट जाते हैं। मालगाड़ी से कोयला गिराकर उसे अपने ठिकाने पर ले जाया जाता है। वहां भट्ठा जलाकर कोयले को पकाया जाता है। फिर उसे बोरे में भर कर प्रति बोरा एक से डेढ़ सौ रुपये बेचा जाता है।

मालगाड़ियों के सहारे पेट की आग बुझाने वालों की जिंदगी दांव पर लगी रहती है। रेलवे लाइन के उपर से गुजरती हाईटेंशन तार इनके लिए जानलेवा है। दो साल पूर्व गोमों और तेलों स्टेशन में इसकी चपेट में आने से दो लोगों की मौत हो गई थी।

कहां कहां होती है चोरी

धनबाद रेल मंडल के हर रेल खंड पर इनका एक संगठित गिरोह है। धनबाद- कतरास, धनबाद -गया, धनबाद - सिंदरी, भोजूडीह- गोमो और गोमो-रांची रेलखंड। जिले में भूली, निचितपुर तेतुलमारी, मतारी, गोमो, कुसुंडा, बसेरिया, बांसजोड़ा, तेतुलिया, कतरास, सोनारडीह, टुंडू,लोयाबाद, मलकेरा, टाटा सिजुआ, खरखरी, खनूडीह, भागा, करकेन्द, प्रधानखंता, मुगमा समेत दर्जनों स्टेशनों के आस-पास।

धंधे से जुड़े कतरास तेतुलिया के रहने वाले रामू भुइयां, गोरख भुईया, रामचंद्र दास और कमली मुसम्मात का कहना है कि रोजी रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं रहने के कारण ही उन्हंे यह सब करना पड़ता है। उनके धंधे में औरत, मर्द और बच्चे सभी शामिल हैं।

मालगाड़ियों से हो रही कोयले की लूट को रोकने के लिए रेल पुलिस गंभीर है और इसके लिए एक विशेष टीम भी बनाया गया है। टीम में चुनिंदा पुलिस अधिकारियों को लिया गया है। मालगाड़ी के चालक, गार्ड , कंट्रोलर और आरपीएफ की मिलीभगत से ही कोयले की लूट हो रही है।
प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, धनबाद के रेल एसपी