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कोरबा : 'रोशनी' तिल-तिल समा रही अंधेरे के आगोश में

कोरबा (निप्र)। गर्भ में पल रही बेटी को बचाने देश भर में भले ही अभियान चलाया जा रहा हो, पर इस दुनिया में आ चुकी 5 साल की बेटी को बचाने कोई सुध नहीं ले रहा। रोजी मजदूरी वाले कृष्णा यादव ने बड़े प्यार से अपनी बेटी का नाम रोशनी रखा था, पर उजाला होने से पहले ही वह अंधेरे की आगोश में समाने लगी है। उसके दोनों किडनी एक साथ खराब हो गए हैं। जीवन व मृत्यु के बीच संघर्ष कर रही इस बच्ची को बचाने अब तक शासकीय मदद नहीं मिल पाई है।

नगर पालिक निगम के वार्ड क्रमांक 31 दादरखुर्द में रहने वाले कृष्णा की पुत्री रोशनी (5) की जीवनरक्षा के लिए परिजन दर-दर की ठोकरें खाने मजबूर हैं। परिवार में पत्नी, दो पुत्री और एक पुत्र है। वर्ष 2013 में सबसे पहले एक किडनी के खराब होने की जानकारी सामने आई, तब से वह निजी चिकित्सकों से रोशनी का इलाज कराता रहा। स्थिति में सुधार आने की जगह हालत उस वक्त और बिगड़ गई, जब दूसरी किडनी भी खराब हो गई।

अब स्थानीय चिकित्सकों ने हाथ उठा दिया है। अब बच्ची की कम से कम एक किडनी प्रत्यारोपण करना पड़ेगा। इसमें 5 लाख से अधिक खर्च आने का अनुमान है। इसके साथ ही किडनी डोनर की भी आवश्यकता पड़ेगी। पहले ही इतने दिनों से निजी अस्पतालों में चल रहे इलाज की वजह से कृष्णा का रहा-सहा सब कुछ खत्म हो चुका है। प्रशासन से मदद मिलने की उम्मीद लेकर शनिवार को कलेक्टर रीना बाबा साहेब कंगाले के समक्ष उसने गुहार लगाई।

कलेक्टर ने मानवता का परिचय देते हुए बच्ची को तत्काल जिला अस्पताल में तो भर्ती करा दिया, पर एक बार फिर यहां पसरी अव्यवस्था का शिकार यह पीड़ित परिवार हो गया। सुबह से फिमेल वार्ड में दाखिल मासूम को मुफ्त इलाज के नाम पर रात करीब 12 बजे एकमात्र इंजेक्शन ही लगाया गया। महंगी दवा बाजार से खरीदकर लाने पर्ची थमा दी गई।

आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने की वजह से लाचार पिता बीमार बेटी को अस्पताल से रविवार को घर वापस ले आया। रोशनी अब अपने माता-पिता के साथ घर में ही जिंदगी और मौत से जूझ रही है। बच्ची का पेट लगातार फूल रहा है। पिता ने आमलोगों से भी मदद की गुहार लगाई है। प्रशासन व सामाजिक सहयोग से इस बच्ची की जान बचाकर बेटी बचाओ अभियान को सार्थक साबित किया जा सकता है।

बड़ी बेटी की पढ़ाई हुई बंद

मंझली बेटी रोशनी के बीमार होने से पूरा परिवार बिखरता नजर आ रहा है। रोशनी के अस्वस्थ होने के बाद उसकी बड़ी बहन चंद्रमुखी (7) की भी पढ़ाई बंद हो गई है। वह पोड़ीबहार स्थित शारदा विद्या निकेतन विद्यालय में केजी टू में अध्ययनरत थी। माता-पिता इलाज में व्यस्त हो गए। खर्च का बोझ बढ़ गया और स्कूल की फीस जमा नहीं हो सकी। परिस्थितिवश चंद्रमुखी की पढ़ाई बंद हो गई। वर्तमान में वह अपने सात माह के भाई जय यादव के साथ ही घर में रह कर परिवार के काम में हाथ बंटा रही है।

पात्र होने के बाद भी बीपीएल में नाम नहीं

सरकारी मदद के लिए भटक रहे रोशनी व उसके परिवार के हालात ने सरकारी योजनाओं की कलई खोलकर रख दी है। यूं तो शासन की ओर से बच्चों के उपचार के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है। इसका लाभ लेने के लिए नियम व शर्तें निर्धारित है। बीपीएल परिवार को इसमें प्राथमिकता दी जाती है।

इसके लिए 2002 के सर्वे सूची को मान्य किया जाता है। पात्र होने के बाद भी कृष्णा यादव का नाम गरीबी रेखा सर्वे सूची में नहीं है। अचरज तो यह है कि अपात्र लोग इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं और पात्रों को भटकना पड़ रहा।