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कोसा सिल्क को मिला भौगोलिक पेटेंट

रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कोसा सिल्क को विशिष्ट भौगोलिक पहचान पंजीयन [जीआई रजिस्ट्रेशन] व्यवस्था के तहत पंजीकृत किया गया है। इसके बाद केवल क्षेत्र विशेष में बने कोसा सिल्क को ही इस नाम से बेचा जा सकेगा।

राज्य में कोसा का कपड़ा बनाने वाली सहकारी समिति चांपा-रायगढ़ हथकरघा कोसा बुनकर कल्याण समिति के अध्यक्ष कंवललाल देवांगन ने सोमवार को यहां बताया कि देश भर में कोसा के नाम से प्रसिद्ध तथा छत्तीसगढ़ की पहचान रहे चांपा सिल्क साड़ी एंड फैब्रिक्स को हाल ही में भौगोलिक पहचान पंजीयन पंजीयन [जीई पंजीयन] प्रदान किया गया है।

इस प्रमाण पत्र के बाद कहीं भी इस ब्रांड की नकल नहीं किया जा सकेगी। देवांगन ने बताया कि पंजीयन अब कताई, धागा बनाना, टेक्सटाइल एवं टेक्सटाइल सामग्रियां, कपड़े कढ़ाई, साड़ी बुनना इत्यादि की परंम्परागत विधियों को जिनके लिए चांपा एवं रायगढ़ क्षेत्र जाना जाता है, को भी नकल से सुरक्षित रखने सहयोग प्रदान करेगा। यह प्रमाण पत्र प्रदेश की पुरातन एवं पारंपरिक बुनाई कला को संरक्षित रखने में मील का पत्थर साबित होगा। दूसरे शब्दों में सुरक्षा संबंधी यह प्रक्रिया ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में स्थानीय समुदाय की बौद्धिक उपज को संरक्षण प्रदान करेगी।

उन्होंने बताया कि चांपा सिल्क साड़ी एंड फैब्रिक्स के लिए विशिष्ट भौगोलिक पहचान पंजीयन चांपा-रायगढ़ हस्तकरघा कोसा बुनकर कल्याण समिति छत्तीसगढ़ के नाम पर जारी हुआ है। यह समिति एक स्वयंसेवी संगठन है जिसमें लगभग सभी कोसा उप-सहकारी समितियां, निजी कोसा उत्पादक, व्यापारी एवं निर्यातक शामिल हैं।

देवांगन ने बताया कि चांपा सिल्क साड़ी एंड फैब्रिक्स राज्य का प्रथम हथकरघा उत्पाद है। भौगोलिक उपदर्शन पंजीयन का ब्रांड देश में कहीं भी नकल होने से बचाने के लिए कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा साथ ही प्रभावी ढंग से नकल पर अंकुश लगाते हुए यह प्रमाण पत्र किसी अन्य द्वारा भौगोलिक पहचान पंजीयन के अनाधिकृत उपयोग को रोकेगा।

छत्तीसगढ़ में कोसे के कीड़े से बनने वाला कोसा सिल्क ने अब विश्व में पहचान बना ली है। राज्य के जांजगीर-चांपा और रायगढ़ जिले में कोसा का बडे़ पैमाने में उत्पादन किया जाता है।