Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/कौन-ठगवा-नगरिया-लूटल-हो-गोपालकृष्ण-गांधी-4314.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | कौन ठगवा नगरिया लूटल हो : गोपालकृष्ण गांधी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो : गोपालकृष्ण गांधी

‘लूट’ शब्द जो है, ठेठ हिंदी का है। उर्दू में भी उसकी अपनी जगह है। यानी उसका घर हिंदुस्तानी में है, बोलचाल की मिली-जुली जुबान में। और अफसोस, अब उसका घर हमारी हर जुबान में है, हर दिमाग में, हमारी निराशा में, हमारे गुस्से में, हमारे आक्रोश में। आजकल हम लूट, लुट जाने और लुटेरों के बारे में इतना पढ़ते, देखते और सुनते हैं कि लगता है ‘लूट’ शब्द हमारे लिए और हमारे इस जमाने के लिए ही बनाया गया है। लेकिन बात ऐसी नहीं। लूट-रीति पुरानी है।

इस शब्द की सही व्युत्पत्ति अजूबी है, धुंधली है। मेहमूद गजनवी इतिहास के लुटेरों में बड़ा नाम रखता है। लेकिन ‘लूट’ अरबी-फारसी से आया हुआ लफ्ज नहीं है। उसका स्रोत संस्कृत में देखा जा सकता है, पर उसका सहज निवास अन्यत्र मिलता है। शब्द-सागर को पलटें तो ‘लूट’ के तरह-तरह के उपयोग मिलेंगे। और ‘लूट’ अब अंग्रेजी शब्दकोश में भी प्रवेश कर गया है, मानो वहां एक पीआईओ की भूमिका निभा रहा है। लेकिन इस शब्द का कुल-वंश कितना भी अनिश्चित हो, उसका मायना बिल्कुल निश्चित है। इंतेहा साफ। लूट उस ठगी या दगाबाजी को कहते हैं, जो लुट जाने वाले को बरबाद कर छोड़ती है, उसको चौंका देती है, उसको ऐसा धक्का पहुंचाती है कि वह स्तंभित हो जाता है : क्या..कैसे..मुझे किसने..क्यूं.?

‘लूट’ के साथ जुड़े कई वाक्यांश हैं, जैसे कि ‘लूट का माल’, ‘लूट मचाना’, ‘लूट मारना’, ‘लूट-खसोट’, ‘लूट-पाट’, ‘लूट-मार’। कुल मिलाकर वे सारी सूक्तियां उस दृश्य को दिखाती हैं, जिनमें बलात अपहरण हो, जबर्दस्ती हो, जिसमें भय और धोखे का बेशर्म इस्तेमाल हो, दूसरे को बरबाद और तबाह कर देने के लिए और खुद अनुचित और अवैध रीति से फायदा उठाने के लिए। लूट और चोरी में फर्क है।

चोर उतना ही चुराता है, जितना उसके दो हाथ उठा सकें, दो-एक जेबें छिपा सकें। चोर चुराता है क्षणिक रस-भोग के लिए। अगर चोर एक नहीं दो हों, तो समझिए कि यह हिसाब दुहरा हो जाता है, बस। चोरों की सोच तेज हो सकती है और उनकी अंगुलियां दक्ष, लेकिन उनका दायरा सीमित होता है।

हाथ-सफाई से दो-चार ताले खोले, संदूक-अलमारियां खाली करीं, जेबें भरीं और इससे पहले कि कोई उन्हें पकड़ ले, भाग निकले। लुटेरों का सिलसिला कुछ और है। जरूरी नहीं कि वे अपने हाथों का इस्तेमाल करें। जरूरी नहीं कि वे लूट का माल खुद उठाएं या छिपाएं। लूट पैरों पर नहीं चालाकी पर चलती है, चतुराई उसका वाहन है, छल उस वाहन का तेल। अंधेरा उसका अखाड़ा है, छिपाव उसका खेल।

आजादी के बाद दो-तीन दशकों में हमने सामाजिक चोरियां देखीं। एकाध नहीं, कई। उन्नीस सौ अट्ठावन में मूंदड़ा कांड इन चोरियों में अग्रणी था। एक करोड़ या सवा करोड़ की बात थी। कितनी छोटी रकम लगती है वह आज! तब छोटी न थी। पर रकम से भी ज्यादा गंभीर बात थी, वफा की, ईमान की। निर्भीक कांग्रेस सांसद फीरोज गांधी की अनथक प्रश्नावलियों का असर हुआ, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कार्यवाही शुरू की, जस्टिस चागला और जस्टिस विवियन बोस द्वारा जांचें हुईं और तब के वित्त मंत्री ने त्यागपत्र दिया।

उन्नीस सौ साठ और उन्नीस सौ सत्तर के दशकों में लूट-जगत ने कई नाटक देखे। उन्नीस सौ नब्बे के दशक में हर्षद मेहता के ५क्क्क् करोड़ वाले प्रतिभूति घोटाले ने लूट-युग का उद्घाटन किया। फिर अदालत बोली। उस ही दशक में हवाला कांड ने लूट को एक गगनचुंबी ऊंचाई दी। अब आंकड़े रुपयों में नहीं, अमरीकी डॉलर्स में गिने जाने लगे। अठारह मिलियन डॉलर्स का खेल था। सुप्रीम कोर्ट की आवाज उठी, देश की इज्जत बची।

हमारे जमाने में लूट ने नए रूप, नए हुनर दिखलाए हैं। नई तरकीबियां, नए जादू। लूट बहुमुखी बन चली है। खेलों को भी नहीं छोड़ा है लूट ने। खानों में लूट जमी है। भूगर्भो से खनिज पदार्थो को, जनता की भावी संपत्ति को लूटती है लूट। भूमि में, वनों में अगर लूट है तो अब आसमान में भी है, टेलीकॉम के वायुमार्गो में भी है। लूट भूगोल में है, खगोल में है, चौरस में है, गोल में है। स्वार्थ ज्यामिति लांघ गया है।

मेरे निवेदन पर हिंदीविद् डॉ रूपर्ट स्नेल ने मुझे कबीर के बीजक में और अन्य मध्यकालीन काव्यों में ‘लूट’ के भिन्न उपयोग दिखाए हैं। उदाहरण के लिए, गोरखनाथ से : ब्रrांड फूटिबा नगर सब लुटिबा। आधुनिक काल में, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कदम कदम मिलाए जा से हम वाकिफ हैं। उसमें भी ‘लूट’ का प्रयोग है, पर उसके दूसरे मायने में। जो कौम से मिला तुझे वो कौम पर लुटाए जा.. काश हमारे लुटेरे कौम पर, वतन की भलाई पर और अवाम की खुशहाली के लिए अपनी बुद्धि, अपना हुनर लुटाते, न कि उसके धन को लूटने के लिए!

हां, हम निराश हैं, मायूस हैं, नाराज हैं। लेकिन स्मरण रहे, हम बेसहारा नहीं। हिंद की अदालतों ने बार-बार लूट को रंगे-हाथ पकड़ा है। कैग और सीवीसी सक्रिय रहे हैं। हममें यह विश्वास होना है कि भारत की न्यायपालिका और ये संस्थाएं अपनी भूमिकाएं निभाती रहेंगी। हम सियासते-हिंद को जानते हैं, हुकूमते-हिंद को भी। लेकिन हम यह भी जान लें कि जमीरे-हिंद करके भी एक बड़ी हकीकत है। जमीरे-हिंद में न्यायपालिका आती है, कैग, सीवीसी, हमारे मुख्य सूचना आयुक्त आते हैं। वे स्वतंत्र हैं और अपना कर्तव्य जानते हैं। लोकपाल और लोकायुक्त जब नियुक्त होंगे, वे भी, सीबीआई के साथ, जमीरे-हिंद की बोली बोलेंगे।

और यह भी हमें जानना चाहिए : राजनीति और राजनेताओं से निराशा हो सकती है, लेकिन उनसे दूर रहना गलत है। भारत प्रजातंत्र है। कोई प्रजातंत्र राजनीति के बिना नहीं चलता। हर सरकार में और हर विपक्ष में ईमानदार राजनीतिज्ञ हैं। हमारे स्वायत्त मीडिया के साथ वे भी उस जमीर में शामिल होते हैं।

जमीरे-हिंद नगर सब लुटिबा के किस्से को बदल रहा है, अपनी ऊर्जा कौम पर लुटा रहा है, लूट को चुनौती दे रहा है। - लेखक पूर्व प्रशासक, राजनयिक व राज्यपाल हैं।