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क्या यह बैंगन जहरीला है?

नई दिल्ली/भोपाल. एक सप्ताह के अंदर ही केंद्र सरकार को फैसला लेना है कि बीटी बैंगन जैसी जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों (जिनकी जीन संरचना में बदलाव किया गया है) की देश में खेती की अनुमति देनी है या नहीं।

इस फैसले से जहां एक ओर उपज में बढ़ोतरी से किसानों को फायदा होने की उम्मीद है, वहीं जीएम खाद्य पदार्थो से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने की आशंका भी जताई जा रही है। क्या तेजी से बढ़ती आबादी का पेट भरने का एकमात्र उपाय जीएम फूड उगाना है? यह तरीका कितना सुरक्षित है और कितना असुरक्षित? या कुछ और तरीके भी हैं फसलों को कीड़ों और रासायनिक कीटनाशकों से बचाते हुए उपज बढ़ाने के?



कैसे हुई बैंगन की उत्पत्ति?



बैंगन देश में ही पैदा हुआ और आज आलू के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाली सब्जी है। विश्व में चीन (54 प्रतिशत) के बाद हम बैंगन की दूसरी सबसे अधिक पैदावार (27 प्रतिशत) वाले देश हैं। यह देश में 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है। इसकी प्रति हेक्टेयर 200 से 350 क्विंटल की उपज होती है और वार्षिक पैदावार 85 लाख मीट्रिक टन है।



हालांकि, कीड़े लगने से बैंगन की 50 से 70 प्रतिशत फसल नष्ट हो जाने के कारण देश को सालाना 1015 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। फसल में लगने वाला मुख्य कीड़े शूट एंड फ्रूट बोरर (एसएफ बी) है। बैंगन उपजाने वाले मुख्य प्रदेश हैं - आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल।



क्या है बीटी बैंगन?



बैंगन की जीन संरचना में एक बैक्टीरिया का जीन डाल दिया जाता है, ताकि वह फल और तने खाने वाले कीड़ों (एसएफ बी) से बच जाए। नया जीन एक अलग प्रोटीन का निर्माण करता है, जिससे बैंगन के मूल गुण बदल जाते हैं। चूंकि बैंगन में प्रत्यारोपित जीन जमीन में मिलने वाले एक बैक्टीरिया, बैसिलस थुरिन्जिएन्सिस (बीटी) से निकाला गया है, इसलिए इसे बीटी बैंगन कहा जाता है। इससे पहले इसी जीन को कपास में डाल कर बीटी कॉटन बनाया गया था, जिसकी खेती देश में पिछले आठ सालों से की जा रही है। बैंगन के बाद जीन में बदलाव करने के लिए शोधकर्ताओं की निगाहें भिंडी, टमाटर, आलू, मक्का, बंदगोभी, फूलगोभी, धान और गेहूं पर है।



कौन बना रहा है?



अमेरिका की कंपनी मोनसांटो ने एक भारतीय कंपनी महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी (मायको) के साथ मिलकर की है रिसर्च। इन्हीं कंपनियों ने देश में बीटी कॉटन भी लांच किया था। 1966 में स्थापित मायको के 26 प्रतिशत शेयर अब मोनसांटों के पास हैं। इस तरह दोनों के बीच भागीदारी में बड़ा शेयर (खुद के 100 प्रतिशत के साथ मायको के 26 प्रतिशत) मोनसांटो के पास है। 2000 में शुरू हुई रिसर्च। 2006 में फील्ड ट्रायल। 14 अक्टूबर को मिली रेग्युलेटरी बॉडी की मंजूरी।



कौन कर रहा है विरोध?



बीटी बैंगन को मानव स्वास्थ्य, पशुओं और पर्यावरण के लिए असुरक्षित बताकर देश के विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों, वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और किसानों ने विरोध किया है। एनजीओ जीन कैम्पेन की अगुवाई में विभिन्न संगठनों ने जीएम उत्पादों को असुरक्षित व खतरनाक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर कर रखी है।



कैसे काम करता है बीटी?



कीटों के पेट क्षारीय होते हैं। जब वे बीटी बैंगन का रस चूसते हैं तो उसमें मौजूद विषैले प्रोटीन के असर से उनके पेट फट जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है। बीटी बैंगन के इसी गुण के कारण किसानों को कीड़े मारने के लिए अलग से कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा।



यहां प्रतिबंध



* ऑस्ट्रिया, हंगरी, समेत यूरोपीय संघ के 24 में से 20 देश। इनमें जर्मनी, फ्रांस और स्पेन जैसे बड़े और प्रभावशाली देश भी शामिल हैं।



* एशिया में श्रीलंका, थाईलैंड और जापान। अफ्रीका में अल्जीरिया।



यहां अनुमति



* अमेरिका - 625



* अर्जेटीना - 21



* ब्राजील - 158



* भारत व कनाडा - 76



* चीन - 38



* पैराग्वे और द. अफ्रीका - 10



(2008 के उत्पादन आंकड़े) (कृषि भूमि लाख हेक्टेयर में)



कौन दे सकता है मंजूरी



यह मामला केंद्र सरकार के कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य मंत्रालयों के तहत आता है। जीएम उत्पादों के परीक्षण के लिए कृषि मंत्रालय के अधीन बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने दिशा-निर्देश तय किए हैं। इनके अमल पर निगरानी का काम है पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) का। इस सर्वोच्च नियामक संस्था ने बीटी बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन की मंजूरी दी है।



राज्य सरकारों का रुख



अब तक 11 राज्यों- केरल, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तरांचल ने अपने यहां बीटी फसलों पर पूरी तरह से रोक लगाने की घोषणा की है। सभी राज्यों ने बीटी फसलों, खासकर बीटी कॉटन को लेकर किसानों के विरोध और इसके असुरक्षित होने के बारे में विभिन्न वैज्ञानिक रिपोर्टो के आधार पर इन्हें नकारने का फैसला किया है।



क्या है केंद्र का रुख



जीईएसी ने बीटी बैंगन के बारे में मायको के मैदानी परीक्षण की रिपोर्टो पर स्वयंसेवी संगठनों के तमाम विरोधों को देखते हुए विशेषज्ञों की एक सब-कमेटी बनाई थी। लेकिन उसने भी मोनसांटो-मायको के दावों को सही ठहराया। अब मामला पर्यावरण मंत्रालय के अधीन है।



संभावनाएं और आशंकाएं...



खुशहाल होंगे किसान?



* बीटी बैंगन की फसल चूंकि कीड़ों से पूरी तरह से सुरक्षित होने की आशा है, इसलिए किसानों को कीटनाशकों पर खर्च नहीं करना पड़ेगा।



* इससे कीड़ों से फसल की बर्बादी (फिलहाल 70 फीसदी तक) नहीं होगी। इससे सालाना 1000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान नहीं होगा। किसान मुनाफे में रहेगा, क्योंकि कम लागत में डेढ़ गुना ज्यादा फसल पैदा होगी।



* बीटी बैंगन सुरक्षित हैं और यदि किसान जैविक खाद का उपयोग करें तो यह पूरी तरह से जैव उत्पाद बन जाएगा।



इन सवालों का क्या?



* बीटी फसलें मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं हैं।



* शुरुआत में इससे मुनाफा होता है, पर बाद में खाद और कीटनाशकों दोनों का उपयोग बढ़ जाता है।



* बीटी फसलों के बारे में दावों का बिना व्यापक व निष्पक्ष परीक्षण कराए ही इन्हें अनुमति दी जा रही है।



* बीटी फसलों की जगह देश में विकसित गैर बीटी संकर प्रजातियों को बढ़ावा क्यों नहीं मिल रहा, जो सुरक्षित हैं।