Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/क्यों-गायब-हो-रहे-हैं-छोटे-किसान-सुभाष-चंद्र-कुशवाहा-4581.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | क्यों गायब हो रहे हैं छोटे किसान - सुभाष चंद्र कुशवाहा | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

क्यों गायब हो रहे हैं छोटे किसान - सुभाष चंद्र कुशवाहा

आर्थिक उदारीकरण में खेती-किसानी को कहीं भी महत्व नहीं दिया जाता। लेकिन भारत में कृषि नीति के प्रति सरकार की लगातार उदासीनता इसलिए घातक है कि सेवा क्षेत्र के विकास के बावजूद कृषि क्षेत्र आज भी अर्थव्यवस्था की धुरी है। यह हताशाजनक ही है कि सरकार बजट-दर-बजट खेती-किसानी को घाटे का सौदा साबित करने पर तुली है। बाहरी दबावों और कॉरपोरेट हितों के लिए कृषि क्षेत्र को तबाह करने का प्रयास दुर्भाग्यपूर्ण है।

पिछले काफी समय से फसल चक्र को तहस-नहस कर किसानों पर नकदी फसल उगाने का दबाव डाला जा रहा है। उर्वरक कारखानों को बंद करना और गैर खाद्यान्न फसलों के उत्पादन को बढ़ाना कॉरपोरेट सोच की ही कड़ी है। सरकारी नीतियां इतनी दोषपूर्ण हैं कि पिछले दिनों जब पंजाब के कुछ इलाकों और उत्तर प्रदेश के कन्नौज और फर्रूखाबाद में आलू की ज्यादा पैदावार हुई, तो कोल्ड स्टोरेज के अभाव और बिजली की कमी के कारण उसे सड़कों पर फेंकना पड़ा है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। इन्हीं दोषपूर्ण नीतियों के चलते वर्ष 1995 से 2010 के बीच कर्ज में फंसे 2.5 लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार, देश का हर दूसरा किसान कर्जदार है।

परंपरागत बीजों के बजाय हाई ब्रीड बीजों के उपयोग को बढ़ावा देने की सरकारी नीति बदस्तूर जारी है। ज्यादातर कृषि अनुसंधान केंद्रों में ताले पड़े हैं। जो केंद्र सक्रिय हैं, उनकी आर्थिक मदद कम कर दी गई है। दूसरी ओर, कृषि अनुसंधान के लिए अमेरिका के साथ 1,000 करोड़ रुपये का समझौता किया गया है। यानी अब हमारे कृषि वैज्ञानिक अमेरिका से ज्ञान हासिल करेंगे। उसके बदले हमें 400 करोड़ रुपये भी देने होंगे। इस समझौते को लागू करने वाली समिति में वॉल मार्ट और मोनसेंटो जैसी कंपनियां शामिल हैं, जो भारतीय बाजारों पर कब्जा जमाने को बेताब हैं।

जाहिर है, ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने हितों के अनुकूल कृषि वैज्ञानिकों को पाठ पढ़ाएंगी। कृषि क्षेत्र में नई तकनीक के इस्तेमाल न होने को लेकर प्रधानमंत्री ने भी चिंता जताई है। विश्व व्यापार संगठन के दबाव में कृषि क्षेत्र में लगातार सबसिडी घटाती सरकार कभी यह जानने की कोशिश नहीं करती कि अमेरिका, चीन और यूरोप के देश खेती में सबसिडी क्यों बढ़ा रहे हैं।

जमीनों के अधिग्रहण से भी देश में अन्न संकट गहराने लगा है। विगत नवंबर में कृषि मंत्री ने जानकारी दी कि धान की खेती का रकबा घटने के कारण इसका उत्पादन काफी नीचे चला गया है। मुख्य फसलों की उत्पादन लागत बढ़ने से देश के तकरीबन आधे किसान कर्ज में डूबे हैं। लुधियाना कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जनवरी, 2010 में जारी शोध के अनुसार पंजाब के 40 प्रतिशत छोटे किसान या तो समाप्त हो गए हैं या खेत मजदूर बन चुके हैं। सिंचाई के परंपरागत तरीकों से मुंह मोड़कर पंजाब में 15 लाख नलकूप लगे, जिससे भूजल स्तर 20 फुट से 200 फुट नीचे चला गया।

खेती से बैलों की विदाई से दुधारू पशुओं की संख्या तो घटी ही, गोबर खाद की किल्लत भी हुई। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में देसी उर्वरक कारखाने भी बंद किए जाते रहे। आज देश में कुल डीएपी (डाय अमोनियम फास्फेट) मांग का 90 प्रतिशत और कुल एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश) मांग का शत प्रतिशत हिस्सा आयात किया जा रहा है। आयातित डीएपी के मूल्य में विगत साल भर में 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पोटाश के मूल्य में दोगुने से अधिक वृद्धि हुई है। सरकार ने उर्वरकों पर सबसिडी और कम कर दी है। जाहिर है, आने वाले दिनों में उर्वरकों के दाम और बढ़ेंगे।

उदारीकरण की नीतियों के चलते खेती-किसानी को होते नुकसान का पता इससे भी चलता है कि जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान घटकर 14.4 फीसदी रह गया है। जल, जमीन और जंगल से बेदखली के कारण किसानों-आदिवासियों का तेजी से पलायन काफी चिंताजनक है। अगर सरकार अब भी नहीं संभली, तो वह दिन दूर नहीं, जब खाद्य सुरक्षा का सपना, सपना बनकर ही रह जाएगा।