Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/क्यों-रूठ-गए-हैं-बादल-हमसे-प्रार्थना-बोराह-12855.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | क्यों रूठ गए हैं बादल हमसे- प्रार्थना बोराह | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

क्यों रूठ गए हैं बादल हमसे- प्रार्थना बोराह

देश के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा की सौगात देने वाला मानसून इस बार बिहार, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों से मानो रूठ गया है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इन राज्यों में सामान्य के मुकाबले कम बारिश हुई है। अगस्त और सितंबर महीने के बारे में भी औसत या कम बारिश की भविष्यवाणी मौसम विभाग और स्काईमेट द्वारा की जा रही है। जाहिर है, कम बारिश का मतलब है, गरमी का बढ़ना।

मैदानी इलाकों में जनवरी और फरवरी कड़ाके की ठंड वाले महीने माने जाते हैं। फिर मार्च आता है, जो अपेक्षाकृत सुकूनदेह होता है, खासकर रात के समय तापमान आराम पहुंचाता है। गरमी की शुरुआत इसी महीने से होने लगती है, जो सितंबर-अक्तूबर तक बनी रहती है। पहले बरसात या मानसून गरमी की इस तपिश को शांत कर देते थे, मगर अब इसका मिजाज भी स्थिर नहीं दिखता। कहीं अधिक बारिश होती है, कहीं सामान्य, तो कहीं औसत से भी कम। यह एक नियमित चक्र सा बन गया है, जो हम वर्षों से देख रहे हैं।

मौसम में हर बीतते साल एक खास बदलाव हो रहा है, जो है ग्रीष्मकाल का जल्दी आना। राजधानी दिल्ली में ही इस साल गरमी फरवरी से शुरू हो गई थी और मार्च आते-आते हम 35-40 डिग्री सेल्सियस तापमान झेलने लगे थे। मुझे नहीं लगता कि जिस मौसम को हम वसंत कहते हैं, उसे हमने इस साल महसूस किया है। जिस तरह गरमी का मौसम अपना दायरा बढ़ा रहा है, चिंता यही है कि दिल्ली जैसे महानगरों में आने वाले वर्षों में कहीं गरमी का मौसम ही न बच जाए। इसकी वजह यही है कि सर्दी का दौर लगातार सिकुड़ता जा रहा है और उसकी ठंडक भी कम हो रही है। दिल्ली में इस साल कंपकपाती सर्दी तो हमारे बच्चे शायद ही महसूस कर पाए होंगे।

इस साल अप्रैल महीने में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कभी-कभी धूल भरी आंधी और तूफान ने भी अनियमित मौसम का एहसास कराया। मई और जून में तो हम बारिश और ठंडक के लिए तरसते ही रह गए। आलम यह रहा कि अच्छी बारिश का इंतजार हमने जुलाई तक किया और अब जाकर मानसून आया भी, तो वह उम्मीद के मुताबिक नहीं बरस सका। जबकि पहले के वर्षों में हम इन दिनों अच्छी बारिश देखते थे, जिससे न सिर्फ तापमान गिर जाता था, बल्कि हमारे ‘दुख भरे दिन' भी बीत जाते थे। साफ है कि जैसे-जैसे साल गुजर रहे हैं, हमें खुद को अधिक से अधिक तीखी गरमी झेलने के लिए तैयार करते रहना होगा।

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? निश्चय ही, इसके लिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, आने वाले वर्षों में मौसम और अधिक खराब होता जाएगा और गरमी के थपेड़ों से देश के कई हिस्से झुलसेंगे। उत्तर भारत के कई शहर तो पहले से ऐसा अनुभव कर रहे हैं। वहां सामान्य से तीन-चार डिग्री अधिक तापमान महसूस किया जा रहा है। ग्रीष्म ऋतु के समय-पूर्व आने का एक अर्थ यह भी है कि गरम थपेड़े जीवन को कहीं अधिक मुश्किल बना रहे हैं। चिंताजनक है कि जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे उत्तर व मध्य भारत में औसत तापमान के बढ़ने की आशंका व्यक्त की गई है। इन हिस्सों में तापमान सामान्य से अधिक रह सकता है।

मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन यूं ही बढ़ता रहा, तो साल 2040 में शहरी क्षेत्रों में औसत तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया जाएगा। बेशक दुनिया के कुछ हिस्सों में आज इतना अधिक तापमान दिख रहा है, मगर उनके पास इससे निपटने के लिए तंत्र मौजूद है। बढ़ता तापमान तब समस्या कहीं अधिक बढ़ा देता है, जब वह उन इलाकों को प्रभावित करने लगता है, जिसने 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान झेला ही नहीं है। इससे वहां रहने वाले जीव-जंतुओं में अनुकूलन की समस्या पैदा हो जाती है। मसलन, ‘एक्स्ट्रीम क्लाइमेट' यानी मौसम की चरम अवस्था आसपास के कमजोर तबकों के लिए स्वास्थ्यगत समस्याएं पैदा करेंगी। यह खाद्यान्न उत्पादन, कृषि और अर्थव्यवस्था पर सीधे चोट करेगी। इसका बड़ा असर उन जातियों-जनजातियों पर होगा, जो पहाड़ों पर प्रकृति के बीच रहते हैं और अपने जीवन-यापन के लिए मौसम पर निर्भर हैं।

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) का एक अध्ययन बताता है कि इस सदी के अंत तक दक्षिण एशिया में मौसम इतना गरम हो जाएगा कि मानव अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसका भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर सबसे अधिक असर होगा। कुछ अध्ययनों में यह भी कहा गया है कि आने वाले वर्षों में शहरों में तापमान मौजूदा स्तर से आठ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। लिहाजा हमें इसका एहसास होना ही चाहिए कि असामान्य रूप से बढ़ती गरमी हमें किस तरह प्रभावित करने लगी है। साथ ही, तमाम संबंधित तंत्रों पर यह दबाव भी डालना चाहिए कि वे इससे निपटने के लिए उचित तैयारी करें। विशेषकर बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर वर्गों को बचाने के लिए हमें खास तैयारी करनी होगी, क्योंकि इन पर बढ़ते तापमान का सबसे ज्यादा असर होगा। सरकार को उचित वित्तीय व बुनियादी संसाधन जुटाने होंगे और समय-पूर्व मोर्चाबंदी करनी होगी। हालांकि आदर्श स्थिति तो यही है कि अपनी कोशिशों और अपने व्यवहार से हम तापमान को नियंत्रण में रखें और उसे बढ़ने न दें।

वक्त का यही तकाजा है कि हम सूचनात्मक और इनोवेटिव रणनीति अपनाएं, ताकि बढ़ते तापमान के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के साथ-साथ उन मानवीय गतिविधियों को भी नियंत्रित रख सकें, जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन व ग्लोबल वार्मिंग की वजह बन रही हैं। मगर इन सबसे पहले तीखी तपिश झेलते लोग बढ़ती गरमी को एक गंभीर समस्या के रूप में देखना शुरू करें, और एयर कंडीशनर (एसी) में इसका हल तलाशना बंद करें। तभी जाकर कुछ बात बन सकेगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)