Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/क्यों-सुलगता-है-बोडोलैंड-संजय-हजारिका-6831.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | क्यों सुलगता है बोडोलैंड- संजय हजारिका | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

क्यों सुलगता है बोडोलैंड- संजय हजारिका

असम के बोडो क्षेत्रीय परिषद इलाके में हाल ही हुई हत्याओं और भय के माहौल की खबरें अखबारों के मुखपृष्ठ और टेलीविजन की हेडलाइंस से उसी तेजी से गायब हुईं, जिस तीव्रता से उन्होंने देश का ध्यान खींचा था। चुनावी गहमागहमी में ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं है। मगर लोग इससे परेशान थे कि मीडिया में इस घटना पर त्वरित टिप्पणियों की तो कमी नहीं थी, पर जिन जवाबों की उन्हें संजीदगी से तलाश थी, वे उन्हें नहीं मिले। बहुत कम लोग असम से जुड़े बुनियादी सवालों को जानते होंगे। मसलन, बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद है क्या? या पिछले दशक में असम समेत पूर्वोत्तर में सरकार के खिलाफ हुए तमाम सशस्‍त्र विद्रोहों को बेहद नाटकीय ढंग से रोकने के बावजूद वहां हिंसा खत्म क्यों नहीं होती?

बोडो दरअसल ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है। ब्रह्मपुत्र घाटी में धान की खेती उन्होंने ही शुरू की। 1960 के दशक से वे पृथक राज्य की मांग करते आए हैं। राज्य में इनकी जमीन पर दूसरे समुदायों को अनाधिकृत प्रवेश और भूमि पर बढ़ता दबाव ही इनके असंतोष की वजह है। 1980 के दशक के बाद बोडो आंदोलन हिंसक होने के साथ तीन धाराओं में बंट गया। पहले का नेतृत्व नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) ने किया, जो अपने लिए अलग राज्य चाहता था। दूसरा समूह बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स (बीटीएफ) है, जिसने ज्यादा स्वायत्तता की मांग की और गैर-बोडो समूहों को निशाना बनाने का कोई मौका भी उसने नहीं चूका। तीसरी धारा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन यानी एबीएसयू की है, जिसने मध्यमार्ग की तलाश करते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की। 1993 से पहले तक बोडो और मुसलमानों के रिश्ते इतने तल्‍ख नहीं थे। उसी वर्ष बीटीएफ ने दूसरी जनजातियों और मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू किया, और उसी के बाद असम में हिंसा का सिलसिला शुरू हो गया। बोडो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधन पर वर्चस्व चाहते थे, जो उन्हें 2003 में मिला। तब बोडो लिबरेशन टाइगर्स यानी बीएलटी ने हिंसा का रास्ता छोड़ बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट नामक राजनीतिक पार्टी बनाई। 2009 से जेल में बंद एनडीएफबी के नेता भी 2015 के बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के चुनाव में अपनी संभावना तलाशने में लगे हैं।

बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद ने उग्रवादी संगठनों और उनके समर्थकों को राजनीतिक ताकत के साथ आर्थिक लाभ प्रदान किया। लेकिन इसका लाभ उठाने वाले ज्यादातर सशस्त्र उग्रवादियों ने अपने हथियार लौटाए ही नहीं। यही नहीं, वहां कई पीढ़ियों से रह रहे बहुसंख्यक बंगाली मुस्लिम, असमिया और बंगाली हिंदू और आदिवासी, संथाल तथा कोच-राजबंशी जैसे दूसरे आदिवासी समूहों के हितों की रक्षा के लिए भी परिषद ने कुछ नहीं किया।

1993 से 2014 के बीच वहां पांच लाख से भी ज्यादा लोग विस्‍थापित हुए और सैकड़ों की मौतें हुईं, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम थे, हालांकि बोडो और गैर-मुस्लिम भी प्रभावित हुए। 2012 के दंगे के बाद वहां से हुआ पलायन विभाजन के बाद का सबसे बड़ा विस्थापन है। उस हिंसा से प्रभावित अनेक लोग अभी तक शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। जो लोग घर लौटे, वे फिर विस्थापित हुए। इससे उनमें हताशा है। उनके क्षोभ की वजह यह भी है कि राज्य की कांग्रेस सरकार ने, जिसका बीटीएफ के साथ गठबंधन है, अब तक भय के माहौल में कमी लाने का प्रयास नहीं किया है।

पिछले दिनों की हिंसा के पीछे कई वजहें थीं। एक तो इकलौते बोडो उग्रवादी संगठन (संगबिजित) के खिलाफ चल रही सैन्य कार्रवाई ने हथियारबंद संगठनों को हताश कर दिया है। फिर बोडो नेता गैरबोडो लोगों से इसलिए भी नाराज थे, क्योंकि यह सूचना थी कि उन्होंने चुनाव में विपक्ष को एकमुश्त वोट दिया है।

असम और पूर्वोत्तर में हर समस्या के लिए बांग्लादेशियों को ही जिम्मेदार क्यों ठहराया जाता है, जबकि वे हमेशा भुगतते ही हैं? 20वीं सदी की शुरुआत में तत्कालीन पूर्वी बंगाल से बड़ी तादाद में विस्थापित किसान असम में बस गए। मगर हाल के दशकों में हिदू दक्षिणपंथी, बोडो नेताओं, असमिया समाज की मुख्यधारा वाले बड़े हिस्से और मीडिया व राजनीति से जुड़े वर्ग की धारणा बन गई है कि असम समस्या की वजह बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ है। जो मुस्लिम समाज वहां के राजनीतिक दलों के लिए बड़ा वोट बैंक है, वह अपनी ही जमीन पर विदेशी कहलाए जाने को मजबूर है!

1980 में घुसपैठ-विरोधी आंदोलन ने असम को हिला दिया था और वह समस्या अब भी अनसुलझी है। घुसपैठ हालांकि अभी जारी है, पर शोधार्थी बताते हैं कि बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति सुधरने से घुसपैठ का आंकड़ा कम हुआ है। जबकि असम और पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में समृद्धि नहीं आई है, जहां के लाखों लोग शिक्षा और रोजगार के लिए देश के दूसरे हिस्सों में चले गए हैं।

दरअसल असम जैसे राज्य के जटिल मुद्दों को सांप्रदायिक चश्मे से देखने की प्रवृत्ति से बाज आना होगा। वहां की मूल समस्या बांग्लादेशियों की घुसपैठ नहीं, बल्कि सजा न मिलने के कारण अराजक समूहों का बढ़ता दुस्साहस और इस कारण हुआ अविकास है। इससे खेती की जमीन पर दबाव बढ़ा है, क्योंकि बोडो आबादी सिर्फ खाने के लिए उपजाना चाहती है, जबकि एक दूसरा वर्ग मुनाफे की खेती का इच्छुक है। ऐसे में, असम हिंसक क्यों न हो?

जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज के निदेशक