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खतरे में हिल स्टेशन: शिमला और मनाली की तबाही के लिए दोषी कौन?

डाउन टू अर्थ, 3 नवम्बर

हिमालयी राज्यों में पर्यटन का केंद्र बने पहाड़ी शहरों में बढ़ रही आपदाओं की पड़ताल करती यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ, हिंदी पत्रिका की आवरण कथा की दूसरी कड़ी हैत्र इससे पहले की कड़ी में आपने पढ़ा: आवरण कथा, खतरे में हिल स्टेशन: क्या जोशीमठ के 'सबक' आ सकते हैं काम?    

माना जाता है कि शिमला शहर 18वीं शताब्दी में एक घना जंगल था। 1864 में शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया और बाद में यह पंजाब की राजधानी बना। शिमला की आबादी तेजी से बढ़ी है। वहनीय क्षमता से कई गुना आबादी बढ़ी है और इसके बुनियादी ढांचे का विकास भी तेजी से हुआ है। लेकिन विकास अवैज्ञानिक और अवैध तरीके से हुआ है। सबसे नाजुक पारिस्थितिकी में ईंट और कंक्रीट के ढांचे बनाए गए हैं। 13 से 16 अगस्त, 2023 के बीच मूसलाधार बारिश से यह शहर पूरी तरह हिल गया।

एशियन डेवलपमेंट बैंक और यूके स्थित फॉरेन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेट ऑफिस (एफसीडीओ) के सीनियर क्लाइमेट चेंज अडवाइजर डॉक्टर वीरेंद्र शर्मा कहते हैं कि शिमला के प्राचीन इकोसिस्टम बनाने वाले डेढ़ सदी पुराने देवदार पलभर में ध्वस्त हो गए। शिमला का प्रतिष्ठित रिज हो या मॉल या फिर ऐतिहासिक वाइसरीगल लॉज सभी प्रभावित हुए। कई जगह सड़कें धंस गईं। वाइसरीगल लॉज को राष्ट्रपति निवास भी कहा जाता है। कहा जाता था कि 1880 में बनी इस इमारत पर भूकंप का भी कोई असर नहीं होगा लेकिन वह भी प्रभावित हुई। शर्मा आगे कहते हैं कि शिमला के हेरिटेज जोन और उसके आस-पास दरारें दिखाई देने से पता चलता है कि शहर पर मंडराती आपदाओं का खतरा कितना ज्यादा है। जलवायु परिवर्तन ने इस खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि शिमला में इमारतों का गिरना और भूस्खलन बड़े पैमाने पर अव्यवस्थित निर्माण, स्थलाकृति के क्षरण, प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को अवरुद्ध किए जाने और खड़ी पहाड़ी ढलानों पर अधिक बोझ के कारण मानव प्रेरित आपदा है। शर्मा कहते हैं कि पहाड़ी शहरों की अपनी एक अंतर्निहित नाजुकता है और इसके पर्यावरण की वहनीय क्षमता की एक सीमा है। हमें प्लानिंग, डिजाइन और गवर्नेंस में इस बात का ध्यान रखना चाहिए। दुर्भाग्य से विकास का कोई ब्लूप्रिंट नहीं है। यही शिमला की समस्याओं का मूल कारण है।

मॉनसून के दौरान राज्य में कुल 386 मौतों में से 110 भूस्खलन के कारण हुईं। लैंडस्लाइड से सबसे ज्यादा 51 मौतें अकेले शिमला में हुईं। 100 से अधिक इमारतें और आवासीय घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इसके अलावा, 200 से ज्यादा इमारतें असुरक्षित हो गईं लिहाजा खाली कर दी गईं। कई इमारतों में दरारें आ गई हैं और बाकी कई खतरनाक रूप से लटकी हुईं दिखाई दे रही हैं। पिछले चार दशकों में, शिमला में तेजी से विस्तार हुआ है ताकि बढ़ती आबादी के साथ-साथ अस्थायी आबादी और पर्यटकों की बढ़ी हुई आमद को समायोजित किया जा सके। इससे वाहनों की संख्या, पानी की आपूर्ति, पार्किंग और परिवहन सहित बुनियादी ढांचे और नागरिक सुविधाओं पर बहुत दबाव पड़ा है, जिनकी वहनीय क्षमता इस कदर नहीं है। विकास और संरचनात्मक सुरक्षा के बीच संतुलन बिगड़ा है।
पूरी रपट- डाउन टू अर्थ